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________________ २९० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ है, इस प्रकारको मान्यता प्रचलित है। यदि यह मान्यता ठीक है तो यह स्वीकार करनेमें कोई आपत्ति नहीं है कि दो सहस्राब्दी पूर्वमें भी चूलगिरि सिद्धक्षेत्रके रूपमें मान्य रहा है। भारतको सर्वोन्नत मति, बावनगजाजी चूलगिरि सतपुड़ा शैल मालाओंकी सबसे ऊंची चोटी कही जाती है। यहींपर भारतकी सबसे विशाल मूर्ति विराजमान है । यह मूर्ति आद्य तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेवकी है जो चूलगिरिके मध्यमें एक ही पाषाणमें उकेरी हुई है। यह प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रामें है और ८४ फुट ऊंची है। सर्व-साधारणमें यह मूर्ति बावनगजाजीके नामसे प्रसिद्ध है। प्राचीन कालमें इस प्रान्तमें एक हाथको ही कच्चा गज माननेको परम्परा थी। चूंकि यह प्रतिमा ५२ हाथ ऊंची है, अतः जनतामें यह बावनगजाजीके नामसे विख्यात हो गयी। श्रवणबेलगोलामें गोम्मटेश्वरकी प्रतिमा लगभग ५७ फुटकी है। सौम्यता और भावमुद्रामें संसारकी कोई भी प्रतिमा गोम्मटेश्वरकी प्रतिमाके साथ समता नहीं कर सकती। वह सारे पहाड़को काटकर निर्मित हुई है और निराधार खड़ी हुई है, जबकि बावनगजाको ऋषभदेव प्रतिमा न तो भावांकनमें उसकी समानता कर सकती है और न ही वह निराधार ही खड़ी है। बल्कि पहाड़के सहारे खड़ी हुई है। तथापि बावनगजाजीको इस प्रतिमाकी अपनी कुछ अनुपम विशेषता है और वह है इसकी विशालता। इतनी विशाल प्रतिमाका निर्माण करके जैनोंने कलाके क्षेत्रमें निश्चय ही एक महान देन दी है। इसका शिल्प-विधान भी अनूठा है । यह समानुपातिक है । इसके अंग-प्रत्यंग सुडौल हैं। मुखपर विराग, करुणा और हास्यकी संतुलित छवि अंकित है। ___ बावनगजाजीका पूरा माप इस प्रकार हैमूर्तिकी ऊंचाई ८४ फुट एक भजासे दूसरी भजाका आकार २९ फुट ६ इंच भुजासे उँगलो तक ४६ फुट २ इंच कमरसे एड़ी तक सिरका घेरा , २६ फुट पैरकी लम्बाई १३ फुट ९ इंच नाककी लम्बाई ३ फुट ११ इंच आँखकी लम्बाई . ३ फुट ३ इंच कानकी लम्बाई - ९ फुट ८ इंच एक कानसे दूसरे कानको दूरी १७ फुट ६ इंच पांवके पंजेको चौड़ाई मूर्तिका निर्माण काल ___यह मूर्ति भूरे देशी पाषाणकी बनी हुई है। इस मूर्तिपर कोई लेख नहीं है। अतः इसके निर्माता या प्रतिष्ठाकारकका नाम और प्रतिष्ठा-काल निश्चयपूर्वक कहना कठिन है। यह कैसे -आश्चर्यकी बात है कि इतनी विशाल कला-मूर्तिके निर्माता कलाकार, प्रतिष्ठाकारक और प्रतिष्ठाचायं सभी अपने यशके प्रति इतने निरीह रहे हैं कि उन्होंने अपने पीछे अपने परिचयका कोई सत्र तक नहीं छोड़ा और अपनी समस्त आकांक्षाओंके साकार रूप में यह भव्य-प्रतिमा निर्मित करके अपने आपको सर्वान्तःकरणसे भगवान् ऋषभदेवके चरणोंमें समर्पित कर दिया। वास्तवमें युगयुगों तक जगत्के लिए आत्म-कल्याणका मार्ग प्रशस्त करके वे धन्य हो गये। ३७ फुट ५ फुट
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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