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मध्यप्रदेशके विवम्बर जैन तीर्थ
२८७ भगवान् पाश्वनाथ कायोत्सर्गासनमें खड़े हैं। सर्पके फण, भगवान्का मुख और उँगलियां खण्डित हैं। गन्धर्वोके ऊपरी और निचले भागोंमें लघु तीर्थंकर-मूर्तियां हैं। चरण-चौकीपर चक्र अंकित है। । भगवान् महावीरकी एक खण्डित पाषाण मूर्ति भी है। इसके दोनों ओर मातंग यक्ष और सिद्धायनी यक्षी बने हुए हैं। पादपीठपर सिंह लांछन अंकित है।
(२) प्रथम तीर्थकरकी यक्षी चक्रेश्वरी, (३) पाश्र्वनाथ मूर्तिके ऊपरी भागमें यक्षी सिद्धायनी सहित तीर्थकर वर्धमान, (४) एक शिलाफलकपर विद्यादेवियों सहित तीर्थंकर। देवियोंका अंकन कुण्डिका सहित किया गया है। (५) छतका शिलाखण्ड, जिसमें कीर्तिमुख दीख पड़ते हैं, (६) एक स्तम्भपर महावीरको खड्गासन मूर्ति और उसके ऊपर पार्श्वनाथ मूर्ति, (७) एक शिलाफलकमें महावीरको खड्गासन मूर्ति अष्ट प्रातिहार्योंसे युक्त, (८) एक शिलाफलकपर २४ तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ, (९) भगवान् शान्तिनाथ । अधोभागमें दो उपासक प्रणाम मुद्रा में, (१०) भगवान् शान्तिनाथ, (११) ऐरावत गजारूढ़ चतुर्भुज इन्द्र, (१२) पद्मप्रभ तीर्थकर, (१३) सुमतिनाथ, (१४) ऐरावतपर आसीन इन्द्र, (१५) महावीरकी मूर्ति यक्ष-यक्षो सहित । कई द्वारपाल मूर्तियाँ हैं । इनके अतिरिक्त और भी कई मूर्तियाँ हैं।
गन्धर्वपुरी ग्राममें जो जैन मूर्तियां हैं, वे प्रायः जमीनमें से निकली हैं। अब भी कभी-कभी खेतोंमें हल चलाते समय और पुराने खण्डहरोंमें जैन मूर्तियां मिल जाती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि गन्धर्वपुरी प्राचीन कालमें प्रसिद्ध जैन तीर्थ रहा होगा। वर्तमानमें भी इस ग्राममें एक दिगम्बर जैन मन्दिर है । यह मन्दिर प्राचीन है किन्तु जीर्णोद्धारके कारण नया दीखता है। इसमें इधरउधरसे लायी हुई ६ प्राचीन मूर्तियाँ हैं । इनका पाषाण सलेटी है। ये सभी तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं।
. जैन मन्दिरके सामने एक प्याऊ है। उसके चबूतरेमें एक पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति जड़ी हुई अब भी दिखाई पड़ती है। जैन मन्दिरके निकट एक कब्रिस्तान है। कब्रोंके बनानेमें अधिकतर जैन मन्दिरोंकी सामग्रीका ही उपयोग हुआ है। हरिजनोंके मन्दिरमें भी जैन मन्दिरोंके पाषाण एवं मूर्तियोंके खण्ड लगे हुए हैं। सोमवतीके दूसरे तटपर गन्धर्वसेनके मन्दिरके पास सीढ़ियोंमें भी ऐसी सामग्री लगी है। गांवमें और गाँवके बाहर मन्दिरोंके भग्नावशेष बिखरे हुए हैं। यह समस्त सामग्री १०वीं-११वीं शताब्दीकी है और परमारकालीन है।
चूलगिरि
सिद्धक्षेत्र
चूलगिरि सिद्धक्षेत्र है। यहाँसे इन्द्रजीत, कुम्भकर्ण तथा अन्य अनेक मुनि मुक्त हुए हैं। प्राकृत निर्वाण काण्डमें इस सम्बन्धमें निम्नलिखित उल्लेख प्राप्त होता है
'बड़वाणीवरणयरे दक्खिणभायम्मि चूलगिरिसिहरे ।
इंदजिय कुम्भकरणो णिव्वाणगया णमो तेसिं' ॥१२॥ __ अर्थात् बड़वानी नगरसे दक्षिणकी ओर चूलमिरि शिखरसे इन्द्रजीत, कुम्भकर्ण आदि मुनि मोक्ष गये। मैं उनको नमस्कार करता हूँ। इस गाथाका हिन्दी रूपान्तर इस प्रकार है
'बड़वानी बड़नयर सुचंग । दक्षिणदिशि गिरिचूल उतंग। इन्द्रजीत अरु कुम्भजु कणं । ते बन्दों भवसायर तर्ण ॥'