SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ___ ज्ञात हुआ, यहां ३ जैन मूर्तियाँ १२-१२ फुटकी कायोत्सर्ग मुद्रावाली थीं। उनमें से एक मूर्ति पुरातत्त्व विभागके संग्रहमें भूमिपर लेटी हुई है। यह आदि तीर्थंकर ऋषभदेवकी प्रतिमा है। इसके कन्धोंपर जटाओंको त्रिवलियां लहरा रही हैं। चरणोंके दोनों ओर गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी है। दूसरी मति गांवके मध्य चमरपुरीकी मात नामक एक पतली गलीके किनारे किसी प्राचीन मन्दिरके भग्नावशेषोंके टीलेपर खड़ी है। घुटनोंके नीचेका भाग जमीनमें दबा हुआ है। जमीनसे ऊपर जो भाग निकला हुआ है, उसको ऊंचाई ९ फुट ६ इंच है। सम्भवतः २ फुट ६ इंच के लगभग जमीनमें दबी हुई है । भामण्डलका आधा भाग वहीं पड़ा हुआ है। छत्र नहीं हैं, वक्षपर श्रीवत्स लांछन है। भगवान्के दोनों पार्यों में चमरेन्द्र हैं, जिनकी अवगाहना ६ फुट ५ इंच है। इन्द्र सभी अलंकार धारण किये हुए हैं, यथा मुकूट, रत्नहार, भुजबन्द, कुण्डल, केयूर, कड़े, मेखल आदि । वे जनेऊ भी धारण किये हुए है। एक ओरका चमरेन्द्र कमरसे नीचे टीलेमें दबा हुआ है। मूर्तिके ऊपरका भाग दो खण्डोंमें पड़ा हुआ है। पुष्पमालधारी गन्धर्ववाला भाग, छत्रसे ऊपरका भाग और भामण्डल ये सब भी वहां पड़े हुए हैं। इस मूर्तिपर कोई लांछन या लेख है या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि चरण-चौकोका भाग भूगर्भमें दबा हुआ है। किन्तु यह मूर्ति निश्चित रूपसे ऋषभदेव तीर्थकरकी है। इसकी पहचान दो साधनोंसे की गयी। एक तो जटाओंसे और दूसरे ऋषभदेवकी शासन-रक्षिका यक्षी चक्रेश्वरीकी मूर्तिसे, जो यहीं अवस्थित है। गन्धावल (गन्धर्वपुरी) में प्राप्त प्रतिमाओंमें चक्रेश्वरीदेवीकी इस मूर्तिकी उपलब्धि वस्तुतः बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस विंशतिभुजा देवीके अधिकांश हाथ खण्डित हैं किन्तु अवशिष्ट हाथोंमें लिये हुए मातुलिंग फल, वज्र आदिके अतिरिक्त दो हाथोंमें चक्र स्पष्ट दीख पड़ते हैं जिनके कारण इसे चक्रेश्वरी माननेमें कोई बाधा नहीं है। देवी रत्नाभरण धारण किये हुए है। इसके शीर्षभागमें पाँच कोष्ठकोंमें पांच पद्मासन तीर्थकर मूर्तियां विराजमान हैं । सिंहके पृष्ठभागमें प्रभावली अंकित है जिसके दोनों ओर विद्याधर-युगल प्रदर्शित हैं। देवीका घुटनोंसे नीचेका भाग भूमिमें धंसा हुआ है। भूमिके ऊपर इसका आकार ४ फुट है। देवीके एक और देवीका वाहन गरुड़ दीख पड़ता है जो अपने बायें हाथमें सर्प पकड़े हुए है। दूसरी ओर सेविकाको एक खण्डित मूर्ति है । इसने दायें हाथमें शक्ति धारण कर रखी है। इन तीन विशाल मूर्तियोंमें से तीसरी मूर्तिके सम्बन्धमें कहा जाता है कि वह मूर्ति गांवमें एक स्थान पर पड़ी हुई थी। कुछ वर्ष पहले रातमें ४०-५० व्यक्ति आये और मूर्तिको ट्रकमें रखकर ले गये । वे व्यक्ति कौन थे, मूर्तिको कहां ले गये, इसका किसीको पता नहीं है। इसके सम्बन्धमें आज तक किसीने कोई चिन्ता नहीं की। ___ग्राम पंचायत द्वारा संगृहीत मूर्तियों में हैं-चक्रेश्वरी, गौरी, अम्बिका, यक्षी, आदिनाथ और महावीरकी खड्गासन मूर्तियां, शीतलनाथको यक्षी मानवी, पार्श्वनाथ तीर्थंकर मूर्तिका पादपीठ, शीतलनाथका यक्ष, ब्रह्मेश्वर, तीर्थंकर-मस्तक। एक चबूतरेमें कई ऐसे शिलाफलक जड़े हुए हैं जिनपर तीर्थकर मूर्तियां अंकित हैं। इसी प्रकार एक तीर्थकर मूर्तिका ऊपरी भाग जिसमें सुरों द्वारा पुष्पवर्षा प्रदर्शित है तथा एक महावीर मूर्ति भी जड़ी हुई है। पुरातत्त्व विभागने जो मूर्तियां संगृहीत को हैं, उनमें कुछ मूर्तियाँ इस प्रकार हैं (१) १२ फुट ऊंची प्रतिमाके अतिरिक्त यहाँ जैन प्रतिमाओंको संख्या बहुत है। एक पार्श्वनाथ प्रतिमा है जिसके दोनों ओर धरणेन्द्र-पद्मावती त्रिभंग मुद्रामें खड़े हैं। मूर्तिके सिरके पीछे भामण्डल है. तथा सिरके ऊपर विछत्र शोभित हैं। छत्रके नीचे सपंफण मण्डलसे सुशोभित
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy