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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ नाम भी देखने में नहीं आया । बल्कि एक नया ही अन्वय मिला। वह है वर्धमानपुरान्वय। इससे प्रतीत होता है कि १२वीं-१३वीं शताब्दीमें एक विख्यात जैन केन्द्रके रूपमें वर्धमानपुरको मान्यता प्राप्त थी और भट्टारक अपना मूलगण गच्छ भूलकर यहांकी मूर्तियोंपर अपने आपको वर्धमानपुरान्वयका लिखवानेमें गौरवका अनुभव करते थे।
गन्धर्वपुरी मागं और अवस्थिति . गन्धर्वपुरी मध्यप्रदेशके देवास जिलेमें सोनकच्छ तहसीलके मुख्यालयसे लगभग ९ कि. मो. उत्तरकी ओर सोमवती नदी, जो कालो सिन्धमें गिरती है, के तटपर स्थित है। उज्जैनसे यह ७८ कि. मी. है । सोनकच्छसे यहाँके लिए बस, टेम्पो जाते हैं । पक्की सड़क है।
इस नगरके नामके सम्बन्धमें एक किंवदन्ती प्रचलित है कि महाराज गर्दभिल्ल यहाँ शासन करते थे। उन्हींके नामपर इस नगरका नाम गन्धावल हो गया। कुछ समय पूर्व स्थानीय एक देवालयमें एक पाषाणमूर्ति रखी हुई थी, जिसे स्थानीय लोग गर्दभिल्लकी मूर्ति कहते थे। इस किंवदन्ती और गर्दभिल्ल मूर्तिकी बातमें कितना तथ्य है, यह कहा नहीं जा सकता। किन्तु अभी तक इन बातोंको पुष्टि किसो प्रमाण द्वारा नहीं हो पायो है। वर्तमानमें इस गाँवका नाम गन्धर्वपुरी है। पुरातत्त्वका महत्त्वपूर्ण केन्द्र
प्राचीन कालमें गन्धावल एक समृद्ध नगर और जैनोंका महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। इसका कारण स्पष्ट है । वह ऐसे, प्राचीन व्यापारिक मार्गपर अवस्थित है जहाँसे एक ओर उज्जैन, नागदा आदिको सड़क जाती है, दूसरी ओर देवास और इन्दौरको तथा तीसरी ओर भोपाल और विदिशाको मार्ग है। व्यापारिक केन्द्र होनेके कारण यहाँ अनेक देवालयोंका निर्माण भी हुआ। किन्तु कालके कराल आघातोसे वह नगर बच नहीं पाया और अब वह भग्नावस्थामें बिखरा पड़ा है। हिन्दू और जैन दोनों ही धर्मोके देवालयोंके अवशेष चारों ओर पड़े हुए हैं। सोमकर्ण या सोनवतीके प्रवाहने गांवके दो भाग कर दिये हैं। उनमें बड़े हिस्से में अनेक जैन मूर्तियां तथा एक जैन मन्दिर है। गांवकी खास बस्ती भी यहीं है। इस ग्रामके कुओं, उद्यानों और खेतोंमें अनेक
माएँ पड़ी हुई हैं। ग्रामवासियोंने मन्दिरोंके स्तम्भों. पाषाणों और यहां तक कि प्रतिमाओंका उपयोग अपने घर बनानेमें स्वतन्त्रतापूर्वक किया है। अनुमान किया जाता है कि यहां पायी जानेवाली प्राचीन प्रतिमाओंकी संख्या दो सौसे कहीं अधिक होगी।
मध्यप्रदेश शासनके पुरातत्त्व विभागने बहुत सी मूर्तियां संग्रह करके ग्राम-पंचायत भवनके समीप कटीले तारोंकी बाड़ बनाकर वहाँ रखी हैं। ग्राम-पंचायतने भी बहुत-सी मूर्तियां गांवके मध्य एक ऊंचे चबूतरेपर, जिसे शीतला माताका चबूतरा कहते हैं, एकत्रित कर रखी हैं। दोनों ही स्थानोंपर सुरक्षा और सम्मानको कोई व्यवस्था नहीं है । पुरातत्त्व विभाग द्वारा संग्रहीत मूर्तियोंकी देखभालके लिए सरकारने एक चौकीदार रखा है। ग्राम पंचायत द्वारा एकत्रित मूर्तियोंकी देखभालके लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। शीतला माताका चबूतरा होनेके कारण अशिक्षित ग्रामवासी मूर्तियोंपर सिन्दूर लगा देते हैं। इससे उनके लेख आदि दब गये हैं, पढ़े नहीं जाते।