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________________ २८० भारतके विषम्बर जैन तीर्थ चक्रायुधका राज्यारोहण शक सं. ७०७ के लगभग अनुमान किया गया है। ध्रुवराजने वत्सराजपर इसके बाद ही उक्त चढ़ाई की होगी।" ___ "श्वेताम्बराचार्य उद्योतनसूरिने शक संवत् ७०० के समाप्त होनेसे एक दिन पहले 'कुवलयमाला' ग्रन्थ जावालिपुर या जालौर ( मारवाड़ ) में समाप्त किया था। उस समय वहां वत्सराजका राज्य था । हरिवंशपुराणकी समाप्तिके समय शक संवत् ७०५ में उत्तरमें मारवाड़ इन्द्रायुधके अधिकारमें था और पूर्वमें मालवा वत्सराजके अधिकारमें था। तथा इसके पांच वर्ष पहले कुवलयमालाकी समाप्तिके समय अर्थात् शक संवत् ७००में मारवाड़का अधिकारी भी वत्सराज था। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पहले मारवाड़ और मालवा इन्द्रायुधके अधिकारमें थे। उससे वत्सराजने ये दोनों प्रान्त छीन लिये-मारवाड़ शक संवत् ७०० से पहले और मालवा शक सं. ७०५ से पहले। राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द द्वितीयके छोटे भाई ध्रुवराजने चढ़ाई करके मालवा उससे छीनकर पुनः इन्द्रायुधको दे दिया और वत्सराजको मारवाड़की ओर भागनेको मजबूर किया।" "४. वीर जयवराह-यह पश्चिममें सौरोंके अधिमण्डलका राजा था। सौरोंके अधिमण्डलका अर्थ है सौराष्ट्र । सम्भवतः यह चौलुक्य वंशका राजा था और 'वराह' उसको उसी तरह कहा गया होगा, जिस तरह कीर्तिवर्मा (द्वितीय) को 'महावराह' कहा गया है। चौलुक्योंके दानपत्रोंमें उनका राजचिह्न वराह मिलता है। धराश्रय भी कुछ राजाओंके नामके साथ संलग्न मिलता है। धराश्रयका अर्थ भी वराह है। काठियावाड़पर पहले चौलुक्योंका अधिकार था, किन्तु शक सं. ६७५ में राष्ट्रकूटोंने उनसे वह अधिकार छीन लिया। सम्भवतः हरिवंशके रचनाकालमें चौलुक्य वंशकी किसी शाखाका अधिकार काठियावाड़पर रहा होगा। अतः जयवराह इस शाखाका कोई सामन्त राजा होगा और उसका पूरा नाम जयसिंह होगा।" 'प्रेमीजीके मतानुसार इसी वर्धमानपुरमें हरिवंशपुराणको रचनाके १४८ वर्ष पश्चात् हरिषेणने कथाकोषकी रचना की थी। यद्यपि पुन्नाट संघने काठियावाड़से दूर कर्नाटकमें जन्म लिया था, किन्तु जिस चौलुक्य और राष्ट्रकूट वंशका राज्याश्रय जैन धर्मको प्राप्त होता रहा, उन्हीं वंशोंके राजाओंके अनुरोधपर पुन्नाट संघके कुछ मुनि काठियावाड़में आ गये और स्थायी रूपसे उधर ही विहार करने लगे। वर्धमानपुरकी जिस नलराज द्वारा बनवायी हुई पार्श्वनाथ वसतिमें हरिवंशपुराणकी रचना हुई, यह नलराज नाम भी कर्नाटकके सम्बन्धका आभास देता है। इस प्रकारके नाम कर्नाटकके शिलालेखोंमें प्रायः मिलते हैं।" ___ इस प्रकार प्रेमीजी काठियावाड़के बढमाणको प्राचीन वर्षमानपुर मानते हैं। डा. ए. एन. उपाध्येका मत-"स्वयं हरिषेणके मतानुसार पुन्नाट विषय दक्षिणापथ में था। राइस, आर. नरसिंहाचारी, वी. ए. सालेटोर, एम. जी. पाई, प्रो. वी. काणे आदिके १. परभडभिडडिभंगो पणईयणरोहिणी कलाचंदो। सिरिवच्छरायणामो णरहत्थी पत्थिवो जइआ ॥-जैन साहित्य संशोधक, खण्ड ३, अंक २। २. हरिषेण कथाकोषकी भूमिका । ३. मैसूर एण्ड कुगं फ्रॉम दि इंस्क्रिप्शंस, पृष्ठ २६ । ४. ई. सी. २, पृष्ठ-३७, ७३ । ५. दि एन्सीएण्ट किंगडम ऑफ पुन्नाट, इण्डियन कल्चर, वोल्यूम ३, पृष्ठ-३०३-१७ । ६. रुलर्स ऑफ पुन्नाट । ७. पूना, १९४१, पीपी ३०८-२६ ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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