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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ २७९ 5. अर्थात् शक संवत् ७०५ में जब उत्तर दिशाको रक्षा इन्द्रायुध नामक राजा, दक्षिणको कृष्णका पुत्र श्रीवल्लभ, पूर्व दिशाकी अवन्ति नरेश वत्सराज और पश्चिमके सौराष्ट्रको बीर जयवराह रक्षा करता था, तब इस ग्रन्थकी रचना हुई। । इसी प्रकार आचार्य हरिषेणने भी ग्रन्थके अन्तमें प्रशस्तिमें सूचना दी है कि उन्होंने यह ग्रन्थ शक संवत् ८५३, विक्रम संवत् ९८९ में राजा विनयपालके राज्यमें पूर्ण किया। . ऐतिहासिक दृष्टिसे ये सूचनाएँ अत्यन्त उपयोगी हैं और वि. स्मिथ, आर. जी. भण्डारकर, सी. वी. वैद्य, ऐच. सी. ओझा, अलतेकर आदिने अपने ग्रन्थोंमें इनका उपयोग किया है। किन्तु इस सम्बन्धमें इतिहासकार अभी तक निर्धान्त नहीं हैं और स्थानके सम्बन्धमें अभी तक अन्तिम निर्णय नहीं हो पाया। स्थानका निर्णय करनेके लिए सुप्रसिद्ध जैन इतिहासकारों-पं. नाथूराम प्रेमी, डॉ. ए. एन. उपाध्ये, डा. हीरालाल जैनने प्रयत्न किया है किन्तु वे सब एक निष्कर्षपर नहीं पहुंच सके । इस सम्बन्धमें इन विद्वानोंने जो तक अपने पक्षके समर्थनमें दिये हैं, वे यहां दिये जा रहे हैं। - पं. नाथूराम प्रेमी-आचार्य जिनसेन और हरिषेण पुन्नाट संघ के थे। पुन्नाट कर्नाटकका प्राचीन नाम है । हरिषेणने अपने कथाकोषमें कई स्थानोंपर पुन्नाटको दक्षिणापथमें बतलाया है। यदि वर्धमानपुरको कर्नाटकमें माना जाये तो उसके पूर्वमें अवन्ति या मालवाको अवस्थिति ठीक नहीं बैठ सकती। परन्तु काठियावाड़में माननेसे ठीक बैठ जाती है। अब हमें उल्लिखित चारों राजाओंके सम्बन्धमें विचार करना है-. - "१. इन्द्रायुध-स्व. चिन्तामणि विनायक वैद्यने बतलाया है कि इन्द्रायुध भण्डिकुलका था और उक्त वंशको वर्मवंश भी कहते थे। इसके पुत्र वक्रायुधको परास्त करके प्रतिहारवंशी राजा वत्सराजके पुत्र नागभट द्वितीयने (जिसका राज्य-काल विन्सेण्ट स्मिथके अनुसार वि. सं. ८५७-८८२ है तथा म. म. ओझाजीके अनुसार वि. सं. ८७२ से ८९० है ) कन्नौजका साम्राज्य उससे छीना था। बढमाणके उत्तरमें मारवाड़का प्रदेश पड़ता है। इसका अर्थ यह हुआ कि कन्नौजसे लेकर मारवाड़ तक इन्द्रायुधका राज्य फैला हुआ था।" "२. श्रीवल्लभ-यह दक्षिणके राष्ट्रकूट वंशके राजा कृष्ण प्रथमका पुत्र था। इसका प्रसिद्ध नाम गोविन्द (द्वितीय ) था। कावीमें मिले हुए ताम्रपर्ट में भी इसे गोविन्द न लिखकर वल्लभ ही लिखा है। वर्धमानपुरकी दक्षिण दिशामें इसीका राज्य था। शक संवत् ६९२ का अर्थात् हरिवंशपुराणकी रचनाके १३ वर्ष पहलेका उसका एक ताम्रपत्र भी मिला है।" "३. वत्सराज-यह प्रतिहार वंशका राजा था और उस नागावलोक या नागपट द्वितीयका पिता था जिसने चक्रायुधको परास्त किया था। यह पूर्व दिशा और अवन्तिका राजा था। ओझाजीने लिखा है कि वत्सराजने मालवाके राजापर चढ़ाई की थी और मालवराजको बचानेके लिए ध्रुवराज उसपर चढ़ दौड़ा था। उस समय तो मालवा वत्सराजके अधिकारमें था। १. जैन साहित्य और इतिहास-पृ. ४२०-३९ । २. दक्षिणापथदेशस्य पुन्नाटविषयं ययौ । -हरिषेण कथाकोष, कथा १३१, पृ. ३१८ । पुन्नाटविषये रम्ये दक्षिणापथगोचरे। , कथा १४५, पृ. ३३९ । ३. हिन्दू भारतका उत्कर्ष, पृ. १७५ । ४. इण्डियन एण्टीक्वेरी, वाल्यु. ५, पृ. १४६ । ५. एपीग्राफिया इण्डीका, वोल्यूम ६, पृ. २०९।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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