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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं २७३ फुट ऊँचे एक स्तूपाकार पाषाण स्तम्भमें अत्यन्त सुन्दर चतुर्मुखी चौबीसी है । चतुर्मुखी या सर्वतोभद्रका प्रतिमाएँ बहुत से स्थानोंपर मिलती हैं । उनमें प्रत्येक दिशामें एक खड्गासन अथवा पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा होती है । किन्तु प्रत्येक दिशामें चौत्रीस तीर्थंकरोंवाली चतुर्मुखी चौबीसी प्रायः देखनेमें नहीं आती । अतः इस प्रतिमाको विरल एवं अद्भुत प्रतिमाओं में स्थान दिया जा सकता है । एक पाषाणफलक २ फुट ऊँचा तथा २ फुट ३ इंच चौड़ा है । उसके ऊपर २४ तीर्थंकर मूर्तियां बनी हुई हैं। २ फुट ९ इंच ऊँचे और २ फुट ३ इंच चौड़े लकड़ीके एक चौकोर कुण्डाकार फ्रेममें पीतलकी छोटी-छोटी प्रतिमाएँ छोटी-छोटी प्रतिमाकार कुलिकाओं में रखी हुई हैं। चारों दिशाओं में ५४ -५४ प्रतिमाएँ हैं । इनमें कुछ प्रतिमाएँ नहीं हैं। यह रचना भी अपनेमें अद्भुत है । यहाँ साधु परमेष्ठीकी स्वतन्त्र प्रतिमाएँ देखने में आयीं । १ फुट ९ इंच ऊंचे एक शिलाफलक में कृष्णवणं नग्न साधुमूर्तियाँ हैं । ये खड़ी मुद्रामें हैं । बायें हाथमें कमण्डलु है तथा दायें हाथमें माला और पीछी है । ऊपर छत्र शोभित हैं । बदनावर मार्ग और अवस्थिति बदनावर मध्यप्रदेश के धार जिलेमें एक प्राचीन कसबा है । यह इन्दोरसे ९० कि. मी. दूर मह-नीमच रोडपर बलवन्ती नदीके किनारे बसा हुआ है। इस नदीके कारण इस नगरके दो भाग हो गये हैं । उत्तरी भागको खेड़ा कहते हैं । यह सड़क द्वारा दक्षिणमें धार से, उत्तर-पश्चिममें रतलामसे जुड़ा हुआ है तथा पश्चिम रेलवेके बड़नगर स्टेशनसे ( अजमेर - खण्डवा रेल मार्गपर ) प्रायः १८ कि. मी. दूर है । ऐसे प्रमाण मिले हैं जिनसे सिद्ध होता है कि इस नगरकी स्थापना गुप्त कालमें हुई थी। जैन कला केन्द्र मध्यकालीन शिलालेखोंमें इस नगरके वर्धनपुर, वर्धनापुर, वर्धमानपुर नाम भी प्राप्त होते हैं । बुधनावर नाम भी मिलता है जो अपभ्रंश नाम है । यहाँ खुदाईमें अनेक मूर्तियाँ तथा पुरातत्त्व सामग्री उपलब्ध हुई हैं । यहाँपर जो मूर्तियां मिली हैं, वे प्रायः सभी परमार कालकी हैं और वे वि. सं. १२०२ से १३३६ तक की हैं । नगरमें और नगरके बाहर चारों ओर पुरातत्त्व सामग्री और पुरावशेष विपुल परिमाणमें बिखरे पड़े हैं । इससे इस नगर के विगत वैभवपर प्रकाश पड़ता है । मुगलकाल में यहाँ सूबेदारका महल बना हुआ था। आइने अकबरीके अनुसार यहाँ उस समय एक किला भी बना हुआ था। उसके अवशेष अब भी हैं। इस स्थानसे गुप्तकालीन मृत्पात्र और मृण्मूर्ति प्राप्त हुई हैं, जो इस नगरको प्रमाणित करते हैं । मध्य कालमें यहाँ अनेक मन्दिर बने हुए थे । उनमें से दो विशेष उल्लेखनीय हैं - ( १ ) बेजनाथ महादेव और ( २ ) नागेश्वर महादेव । ३-३५
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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