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________________ २७२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ भट्टारक विशालकीर्तिदेव, उनके शिष्य शुभ कीर्तिदेव, उनके शिष्य आचार्य धर्मभूषणदेव....आचार्य सागरचन्द्र उनके शिष्य रत्नकीर्तिदेवने इस प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करायी। मूर्ति-लेख इस प्रकार है "संवत १२२३ माघ सुदी ७ भौम श्री मलसंघ भदारक श्री विशालकीर्तिदेव तस्य शिष्य श्री शुभकीर्तिदेव....आचार्य श्री सागरचन्द्र तस्य शिष्य रत्लकीर्ति श्री मेड़तवालान्वये साह भोगा भार्या सावित्री पुत्र माखिल भार्या विल्ह पुत्र परम भार्या पद्मावति व्याप्त विणी पुत्र....प्रणमति नित्यम्।" ___ इस लेखके अनुसार इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा संवत् १२२३ माघ सुदी ७ मंगलवारको मूलसंघके भट्रारक रत्नकीर्तिने करायी थी। अतः यह प्रतिमा दिगम्बर आम्नायकी है। ३. तीर्थंकर प्रतिमा-१२वीं शताब्दीकी पद्मासनमें स्थित एक तीर्थंकर प्रतिमा ओखलेश्वर (उज्जैन) के निकट क्षिप्रा नदीमें-से निकालकर यहां लायी गयी। यह मटमैले पाषाणकी है। ___४. ऋषभदेव प्रतिमा-यह प्रतिमा भग्न है तथा इसका केवल अधोभाग है। यह पद्मासन मुद्रामें है । इसके पादपीठपर वृषभका लांछन अंकित है। इस प्रतिमाका निर्माण-काल संवत् १२९९ है। मूर्ति-लेख इस प्रकार है " "संवत् १२९९ चैत्र सुदी ६ शनी आचार्य श्री सागरचन्द्र श्री खण्डेलवालान्वये सा० भरहा भार्या गौरी प्रणमति नित्यं ।" ५. तीर्थंकरकी मृणमूर्ति-कायथा ग्रामसे उपलब्ध तीर्थकरकी ४ इंच अवगाहनावाली इस मृण्मूर्तिका निर्माण-काल ईसाको ४थी या ५वीं शताब्दी माना जाता है। सिरपर उष्णीषयुक्त केश हैं। यहां कुछ जैन प्रतिमाएं १५वीं शताब्दीके उत्तरकालकी हैं जिनमें दो प्रतिमाएं पीत वर्णकी, तीन प्रतिमाएँ श्वेत वर्णको तथा दो प्रतिमाएं कृष्ण वर्णकी हैं। ये सभी प्रतिमाएँ श्वेताम्बर आम्नायकी मानी जाती हैं। ६. अष्टभुजी चक्रेश्वरी देवी-चक्रेश्वरी देवीकी यह प्रतिमा गरुड़के ऊपर आसीन है । गरुड़को मानवाकारमें प्रदर्शित किया गया है । वह अपने हाथोंको ऊपर उठाये हुए हैं। देवी पद्मासन मुद्रामें है। उसकी अष्ट भुजाएं हैं, जिनमें पांच भुजाएँ भग्न हैं। दो हाथोंमें चक्र और एक हाथमें वज्र लिये हुए हैं। देवीके मस्तकके ऊपर तीर्थंकरकी पद्मासन प्रतिमा है। एक वृक्षका भी अंकन किया गया है। उसकी शाखाओंपर दो वानर किलोल करते हुए प्रदर्शित हैं। ऊपर दोनों पार्यों में आकाशचारी गन्धर्व दम्पती है। पीठासनमें दो स्त्री-पुरुष देवीकी पूजा करते हुए बैठे हैं। मध्य भागमें नवग्रहोंका भव्य अंकन किया गया है। ७. पाषाण-स्तम्भ-यहां तीन स्तम्भ भी संग्रहीत हैं। ये उज्जैनसे प्राप्त हुए हैं। एक स्तम्भमें खड्गासन मुद्रामें पार्श्वनाथकी मूर्ति है। उनके दोनों पार्यों में दो तीर्थंकर प्रतिमाएँ ध्यानमुद्रामें पद्मासनसे आसीन हैं। यह प्रतिमा ११वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है। ___ दूसरे स्तम्भमें दो ओर पद्मासन मुद्रामें १२ तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं। प्रतिमाएँ प्रायः ३ इंच अवगाहनाकी हैं। स्तम्भके दो भाग खण्डित हैं। सम्भवतः उन दोनों भागोंमें भी १२ तीर्थंकर प्रतिमाएं रही होंगी। तीसरे स्तम्भमें पद्मासन मुद्रामें ध्यानमग्न तीर्थंकर प्रतिमा है। प्रतिमाके आसपास छोटेछोटे स्तम्भोंकी आकृति बनी हुई है। जैन मन्दिरों में विराजमान प्राचीन प्रतिमाएं____ जयसिंहपुराके दिगम्बर जैन मन्दिर में भूगर्भसे प्राप्त कुछ जैन प्रतिमाएं रखी हुई हैं। ये सभी प्रतिमाएं अखण्डित हैं, कलापूर्ण हैं। इनका काल भी ११वीं-१२वीं शताब्दी है। ये प्रतिमाएँ परमारोंके शासन कालमें निर्मित हुई थीं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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