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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं
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"रगणो श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वयेन उक्ताचार्य श्री गुणचन्द्र तस्य देवमंडलाचार्य श्री जिनवद्दत्तरपदे मंडलाचार्यं श्री सकलचन्द्र तद्गुरु मातृच्छविराचार्य श्री हेमकीर्ति गुरूपदेशात् जे सव ।” गुप्तकालीन मानस्तम्भ - यहाँ चार मानस्तम्भोंके शीर्ष-भाग अथवा चैत्य हैं | ये अजीत-खो, गुना, इन्दरगढ़ और ईसागढ़से लाये गये हैं । ये चारों गुप्तकालीन माने जाते हैं। इनमें चारों दिशाओं में पद्मासन मुद्रामें चार ध्यानस्थ तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं । ये शैली आदिमें उदयगिरिमें प्राप्त रामगुप्तके अभिलेखवाली प्रतिमाओंसे साम्य रखती हैं ।
यहाँ कुछ ऐसी देवी प्रतिमाएँ भी विद्यमान हैं, जिनके नीचे देवियोंके नाम प्रायः सुननेमें नहीं आये । जैसे मूर्ति क्रमांक १५६ में चार जैन देवियाँ बालक लिये हुए हैं। उनके नीचे उनके नाम दिये गये हैं - १. देवीदामी, २. रसादगुणदेवी, ३. विभारवती और ४. त्रिसलादेवी । मूर्ति क्रमांक १४१ में एक शिलाफलक में ६ देवियाँ उत्कीर्ण हैं। उनके नाम इस प्रकार दिये हैं- वारिदेवी, सिमिदेवी, उमादेवी, सुवयदेवी, वर्षादेवी और सवाईदेवी ।
इसी प्रकार एक ताम्रयन्त्र पर सहस्र किरणवाला सूर्य अंकित है । उसपर ६४ जैन शासन देवियोंके नाम उत्कीर्णं हैं जिनमें से कुछ नाम इस प्रकार हैं- जयंकरी, विद्या, सौभारी, चन्दा, काराही, मुण्डधारिणी, भैरवी, चक्राणी, क्रुधी, उमुंखी, प्रेतवासिनी, कटकी, मलिनि, वाकाली, यक्षमा, विरूपाक्षा, निशाचरी, कालरानी, प्रेतसी, जिनेश्वरी, सिद्धयोगिनी, विकटा, दुर्घटी, व्याघ्रा, विशाखा, भक्षिणी, कुण्डला, कंकाली, धूर्तेश्वरी, चर्चरी आदि ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जेसिंहपुरा जैन मन्दिरमें स्थित यह जेन पुरातत्त्व संग्रहालय परमार कालीन जैन पुरातत्त्व सामग्रीकी दृष्टिसे अत्यन्त समृद्ध है । परमार युगको जैन पुरातत्त्व सामग्री इतने प्रचुर परिमाणमें और इतनी महत्त्वपूर्ण अन्यत्र दुर्लभ है। परमार कालकी कला, पुरातत्त्व और इतिहासका अध्ययन करनेके लिए यह विशेष और नानाविध उपादानोंसे सम्पन्न है । इस संग्रहके लिए इसके संयोजक विशेष धन्यवादके पात्र हैं । विक्रम विश्वविद्यालय पुरातत्व संग्रहालय में संग्रहीत जैन सामग्री
इस संग्रहालय में उज्जैन जिले तथा उसके आसपाससे प्राप्त जैन सामग्री संग्रहीत की गयी है । इस सामग्रीमें प्रायः अभिलिखित तीर्थंकर मूर्तियां, शासन देवियोंकी मूर्तियां, पाषाण-स्तम्भ आदि हैं । यह सम्पूर्ण सामग्री परमार काल या उसके उत्तरवर्ती कालकी है । परमार कालका समस्त कला वैशिष्ट्य, शैली और शिल्प आदि इनमें दृष्टिगोचर होते हैं । यहाँ ऐसी कुछ मूर्तियोंका परिचय दिया जा रहा है
१. भग्न तीर्थंकर प्रतिमा - इस प्रतिमाका मुख तथा उसके ऊपरका ही भाग अवशिष्ट है । मुख-मुद्रा अत्यन्त सौम्य है । ध्यानावस्थित तीर्थंकरके मुखपर मन्द स्मितिकी झलक है । केश घुंघराले हैं । कर्णं स्कन्धचुम्बी और नेत्र अर्धोन्मीलित हैं । मुखके दोनों पार्श्वोपर गन्धर्व दम्पति 'नृत्य मुद्रामें अंकित हैं। यह भक्ति नृत्य अत्यन्त भावपूर्ण है । ऊपरी भागमें ऐरावत के ऊपर इन्द्र आसीन हैं। गजराजका एक पैर ऊपर उठा हुआ है, जिससे प्रतीत होता है कि वे भगवान्का अभिवादन कर रहे हैं । प्रतिमाका जितना भाग अवशिष्ट है, उससे ही प्रतीत होता है कि यह अति भव्य मूर्तियों में से एक है ।
२. पार्श्वनाथ प्रतिमा - काले पाषाणकी यह प्रतिमा सम्भवतः संग्रहालयकी सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा है। प्रतिमाके वक्षपर श्रीवत्स चिह्न अंकित है । मूलतः यह प्रतिमा दिगम्बर सम्प्रदायकी रही होगी, जैसा कि उसके चरण- पीठ पर अभिलिखित लेखसे ज्ञात होता है कि वह मूलसंघान्वयी