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________________ २७० भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ गलहार और भुजबन्धका अंकन अत्यन्त सुन्दर है। देवीके शिरोभागपर मध्यमें पार्श्वनाथ और दोनों कोनोंपर चार पद्मासन तीर्थंकर-प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं । अपरके दोनों कोनोंपर किन्नर गज बने हुए हैं। चरण-चौकीपर अभिलेख अंकित हैं। इसमें वर्द्धमान पुरान्वये तथा संवत् १२०२ लिखे हैं। गोंदलमऊ __मूर्ति क्रमांक ४५-"कृष्ण वर्णकी यह पाश्वनाथ प्रतिमा अत्यन्त भव्य है। सर्प-फण कलापूर्ण है। इसकी अभिलिखित चौकीका लेख इस प्रकार पढ़ा गया है-ओं ह्रीं अदअसी अवुस हयां नमोः। श्री श्रीसेननाथ आचार्येन देया सुतस्य भार्या करमदेवा श्री नन्दी समादेदियन दीसना वीरादिनाथ पीलाचार्यान्वय पद्मप्रभु दैव प्रणमति संवत् ११६० वैशाख सुदी ९ स्थितिकेन।" सुन्दरसी एक शिलाफलकपर पंचबालयतियोंकी प्रतिमाएं हैं। मध्यवर्ती प्रतिमा खड्गासन है तथा शेष चार प्रतिमाएँ चारों कोनोंपर पद्मासन मुद्रामें स्थित हैं। यहाँसे प्राप्त एक पाश्वनाथ प्रतिमा ( मूर्ति क्रमांक ९) अति कलापूर्ण है। पाश्वनाथ पद्मासनमें ध्यानमग्न हैं। सिरके ऊपर सप्त-फणावकि है । प्रस्तर मटमैला है। सिरके पृष्ठ भागमें प्रभा-मण्डल बना हुआ है जो अति भव्य लगता है। ऊपरी भागमें किन्नर मृदंग, बाँसुरी, झांझ और दुन्दुभि लिये हुए नृत्यरत हैं। अधोभागमें चरणोंके पास आराधक युगल करबद्ध बैठा हुआ है । अनुमानतः यह मूर्ति १४वीं शताब्दीकी है। गुना मति क्रमांक २-शान्तिनाथ भगवान्की खड्गासन प्रतिमा ४ फुट ६ इंच लम्बी और २ फुट ६ इंच चौड़ी एक शिलापर उत्कीर्ण है। मूतिके धुंघराले कुन्तल, स्कन्धचुम्बी कर्ण, आजानुबाहु, श्रीवत्स लांछन और पुष्पाकार प्रभामण्डल कलाके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। शिरोभागमें दोनों ओर दो गज कलश लिये अभिषेकरत हैं। उनसे ऊपर दो नभचारी गन्धर्व पुष्पहार लिये हुए अंकित हैं। ऊपर दोनों कोनोंमें दो ध्यानमग्न तीर्थंकर विराजमान हैं। दायें-बायें दो चमरधारिणी जासीन हैं। चरणतलमें दो परिचारिकाएं कलश लिये हए खड़ी हैं। अधोभागमें दोनों कोनोंमें दो सिंह आसनके प्रतीक हैं। उनके मध्य भागमें हिरण लांछनके रूपमें अंकित है। परमारकालीन कलाका चरम विकास इस मूर्तिमें परिलक्षित होता है। इसलिए इस मूर्तिको सुन्दरतम कलाकृतियोंमें माना जाता है। मूर्ति क्रमांक ७-यह मूर्ति भी पंचबालयति प्रतिमा है। मध्यमें कायोत्सर्गासनमें एक तीर्थंकर खड़े हुए हैं तथा चार तीर्थंकर पद्मासनमें आसीन हैं। शिरोभागमें वीणा लिये हुए किन्नर दिखाई पड़ते हैं। अधोभागमें दोनों पार्यों में दो भक्त करबद्ध मुद्रामें खड़े हैं। ___ मूर्ति क्रमांक ९२-भगवान् पाश्वनाथकी पद्मासन प्रतिमा है। मस्तकके ऊपर सर्पफण है। उसके ऊपर छत्र हैं। मस्तकके पीछे भामण्डल है। छत्रोंके दोनों पाश्वोंमें दो पद्मासन प्रतिमाएं हैं। राजपुरुषोचित परिधान धारण किये हुए चमरेन्द्र खड़े हैं। नीचे यक्ष-यक्षी हैं । यह संग्रहालयकी सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा है। सुसनेर . मूर्ति क्रमांक ३३-एक सलेटी पाषाणपर अभिलिखित तीर्थंकर प्रतिमा है। लेख इस प्रकार है
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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