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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं
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कालमें एक महत्त्वपूर्ण नगर था । वर्तमानमें यहाँ वैष्णव, शैव और जैन धर्मोके लगभग १२ ध्वस्त मन्दिर हैं । इन अवशेषोंमें असंख्य मूर्तियाँ भग्न और अखण्डित दशामें मिलती हैं । तेरहवीं शताब्दीके मध्यमें आक्रान्ताओंने इन मन्दिरों और मूर्तियों का निर्दयतापूर्वक विध्वंस किया था । धार और उज्जयिनीके परमार शासकोंके कालमें कला, साहित्य और स्थापत्यके क्षेत्रमें इस नगरको भी समृद्धिसम्पन्न बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । इस नगरकी स्थापना सम्भवतः गुप्त युग में हुई थी । वर्तमान किलेसे गुप्तयुगके मृत्पात्र और मृण्मूर्तियाँ ( टेराकोटा ) भी मिली हैं । इसलिए यह कहा जा सकता है कि गुप्त युगसे परमार युग तक यह नगर व्यापारिक केन्द्र रहा होगा ।
बदनावरसे २७ जैन प्रतिमाएँ लाकर इस संग्रहालयमें रखी गयी हैं । इनके अतिरिक्त अभी बदनावर में अनेक जैन प्रतिमाएँ पड़ी हुई हैं। संग्रहालय में स्थित ये प्रतिमाएँ ९वीं शताब्दीसे १४वीं शताब्दी तककी हैं, जैसा कि उनके मूर्तिलेखोंसे प्रकट होता है । इन मूर्तियों का शिल्प अत्यन्त उत्कृष्ट कोटिका है। कुछ मूर्तियोंकी चरण-चौकीपर संवत् १२१९, १२२८, १२२९, १२३४, १३०८, १३२६ अंकित हैं ।
मूर्ति क्रमांक ११ संगमरमरसे निर्मित एक प्रस्तर खण्ड में महावीर पद्मासन मुद्रामें ध्यानावस्थित हैं। दो चमरवाहिका दोनों पाश्वोंमें खड़ी हैं । प्रतिमाके शीषंभागके दोनों ओर दो गज तथा अधोभागमें दोनों ओर दो सिंह अत्यन्त कलात्मक बन पड़े हैं ।
मूर्ति क्रमांक १६ – काले पाषाणके १ फुट ३ ॥ इंच ऊँचे और चौड़े शिलाफलकपर चक्रेश्वरी देवीका भव्य अंकन है । देवी गरुड़ासना है और चक्र धारण किये हुए है । देवीके मस्तक भागपर पद्मासनमें ऋषभदेव अंकित हैं । प्रतिमाकी पाद-चौकीपर इस प्रकार लेख अंकित है - "संवत् १३०८ माघ सुदी ९ श्री वागड़ संघ आचार्य श्री कल्याणकीर्ति वन्द्येन वघेरवाल सा - सुत काष्ठासंघ कनक सिरि सुतपामावदा भार्या भागदा द्वितीय भार्या काकु प्रणमति नित्यम् ।"
मूर्ति क्रमांक १८ - लाल पाषाणफलकपर चौबीसी बनी हुई है । मध्यमें भगवान् पद्मासनमें विराजमान हैं, शेष २३ तीर्थंकर खड्गासन मुद्रामें हैं ।
मूर्ति क्रमांक ३७ - तीन जेन यक्षियोंकी मूर्तियाँ हैं जो हिरण, मयूर और हंसपर आसीन हैं । सम्भवतः ये देवियाँ क्रमशः वासुपूज्य भगवान्को यक्षिणी गौरी ( गोमेधकी ), सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथकी यक्षिणी महामातसी ( कन्दर्पा ) और अठारवें तीर्थंकर अरनाथकी यक्षिणी तारावती ( काली ) प्रतीत होती है । तारावतीके अतिरिक्त चौथे तीर्थंकर अभिनन्दननाथकी यक्षिणी वज्रशृंखला (दुरितारि ) तथा चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथकी यक्षिणी अनन्तमती (विजृम्भिणी ) भी हंसवाहना होती हैं ।
मूर्ति क्रमांक ५१ - मन्दिरका एक सिरदल है, जिसकी नीचेकी पट्टीपर खड्गासन तीर्थंकर अंकित हैं तथा ऊपरको पट्टीपर हंस पंक्ति, कलश द्वारा अभिषेक करते हुए गज और नृत्यरत युवक-युवती हैं। लोक-जीवनका यह अंकन अत्यन्त कलापूर्ण और मनोहारी है ।
मूर्ति क्रमांक २९ - संगमरमर पाषाणकी १ फुट १० इंच ऊँची और ९ इंच चौड़ी अवगाहनावाली ऋषभदेव प्रतिमा है । पादपीठपर वृषभ लांछन अंकित है । शिरोभागके दोनों ओर गन्धर्व आकाशसे पुष्पवर्षा कर रहे हैं । मूर्तिके दोनों ओर दो चमरवाहिका खड़ी हैं। चरणोंके पास एक भक्त दम्पति करबद्ध खड़े हैं । तीर्थंकर की मुखमुद्रापर असीम सौम्यता और अनन्त करुणाके भाव अंकित हैं। मूर्ति क्रमांक ६१ - पद्मावतीकी मूर्ति । आकार ३ फुट १ इंच x २ फुट १० इंच है। परमारकालीन लिपिमें देवीका नाम सुमेधा अंकित है। देवी वस्त्रालंकारोंसे सज्जित है । कर्णं कुण्डल,