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भारतके दिगम्बर जैन तीर्य शताब्दियोंसे भी अधिक समय तक व्यवस्थित ढंगसे चलता रहा। इसके पश्चात् यहाँके पीठ और भट्टारकोंका क्या हुआ, इसका कोई उल्लेख हमारे देखनेमें नहीं आया। जैन पुरातत्त्व
मालव भूमि जैन पुरातत्त्वकी दृष्टिसे अत्यन्त समृद्ध है। मालवामें भी निमाड़ क्षेत्र जैन अवशेषोंसे अत्यधिक सम्पन्न है। जब मालवापर आक्रमण होने लगे और वहांके गगनचुम्बी जिनालय धूलि-धूसरित होने लगे, उससे पूर्व ही कई स्थानोंकी प्रतिमाएं अन्य सुरक्षित मन्दिरोंमें भेज दी गयीं। तालनपुरमें मण्डपदुर्गसे आयी कई प्रतिमाएं रखी हैं। किन्तु अधिकांश स्थानोंपर जैन पुरातत्त्व भग्न दशामें मिलता है। इन अवशेषोंमें मन्दिरों और मूर्तियोंके अवशेष सम्मिलित हैं। मूर्तियां खण्डित और अखण्डित दोनों ही प्रकारकी मिलती हैं। कई स्थानोंसे महत्त्वपूर्ण शिलालेख भी उपलब्ध हुए हैं।
उज्जैनके कुछ उत्साही बन्धुओंने जिनमें श्री सत्यन्धरकुमार सेठीका नाम विशेष उल्लेखनीय है-मालवाकी इन बिखरी हुई कलाकृतियोंको एकत्रित करनेका साहस किया और जैसिंहपुरा दिगम्बर जैन मन्दिर उज्जैनमें इन एकत्रित पुरावशेषों और कलाकृतियोंका संकलन करके जैन संग्रहालयका रूप प्रदान किया। अब तक इस संग्रहालयमें ५१ जैन प्रतिमाओंका संग्रह हो चुका है। इस संग्रहमें तीर्थंकरों, यक्ष-यक्षियोंकी पाषाण और धातु प्रतिमाएं, धातुयन्त्र, मन्दिरोंके स्तम्भ, तोरण, अभिलेख आदि सम्मिलित हैं । सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएं भी यहाँ हैं। ये सभी प्रतिमाएं ९वीं शताब्दीसे १६वीं शताब्दीके मध्यवर्ती कालकी हैं। यहां परमार काल और उसके उत्तरवर्ती कालकी उत्कृष्ट कलाके दर्शन होते हैं। सभी जैन तीर्थंकरों और जैन शासन-देवियोंकी मूर्तियाँ पृथक या एकत्र यहाँ मिलती हैं। परमारकालीन और उत्तरकालीन जैन कला, इतिहास, पुरातत्त्व और संस्कृतिका अध्ययन करनेके लिए यह एक समृद्ध संग्रहालय कहा जा सकता है।
यहां गोंदलमऊ, बदनावर, गुना, जामनेर, उज्जैन, नागदा, मक्सी, आष्टा, सुन्दरसी, ईसागढ, धार, इन्दर, जवास, इन्दरगढ, गन्धर्वपूरी, अजितखो. नलखेडा, सकरा. उदयपुर, ससनेर. पलसावद, देवास, बीजाबाड़ा, कारछा आदि स्थानोंसे इस सामग्रीका संग्रह किया गया है । लगभग ९६ प्रतिमाओंपर अभिलेख अंकित हैं, जिनसे मूर्तिका निर्माण काल, निर्माता, संघ, गण, गच्छ, प्रतिष्ठाचार्य और भट्टारकों आदिके इतिहासपर प्रकाश पड़ता है।
इस संग्रहालयमें सभी २४ तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएं संयुक्त और स्वतन्त्र विद्यमान हैं, केवल शीतलनाथ, विमलनाथ और मल्लिनाथकी स्वतन्त्र प्रतिमाएं नहीं हैं। जैन शासन देवियोंमें चक्रेश्वरी, महामानसी, रोहिणी, अम्बिका, गोमेधा, निर्वाणी, बहुरूपिणी, सरस्वतीकी मूर्तियां यहांपर विद्यमान हैं। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथकी खण्डित-अखण्डित कुल प्रतिमाओंको संख्या ३७ है। बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथकी केवल एक ही प्रतिमा है। पाश्वनाथ और महावीरकी प्रतिमाएं सबसे अधिक हैं । तीर्थकर प्रतिमाएं पद्मासन और कायोत्सर्गासन (खड्गासन) दोनों ही मुद्राओंमें मिलती हैं । किन्तु खड्गासनको अपेक्षा पद्मासन प्रतिमाएं अधिक संख्यामें हैं।
___इस संग्रहालयमें विद्यमान सभी प्रतिमाओंका परिचय देना तो सम्भव नहीं है, किन्तु विशेष प्रतिमाओंका परिचय स्थान-क्रमसे जहाँसे ये प्रतिमाएं लायी गयी हैं-यहाँ दिया जा रहा है। बदनावर
धार जिलेकी एक तहसील है। परमार युगमें यह वर्द्धनापुर नामसे विख्यात था। मूर्तिलेखों, उदयपुर प्रशस्ति एवं मान्धाता ताम्रपत्रमें इसे 'वर्धनापुर प्रतिजागरण' कहा गया है । यह परमार