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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ २६१ तभी एक शृगालिनी अपने चार बच्चोंके साथ भूखी-प्यासी भटकती हुई उधर आ निकली। सुकुमाल नंगे पैर पैदल आये थे, उसके कारण उनके पैरोंसे रक्त बह रहा था। शृगाली आकर रक्त चाटने लगी, फिर उसने पैर तथा दूसरे अंग खाना प्रारम्भ कर दिया। वह बच्चों सहित तीन दिन तक सुकुमाल मुनिको खाती रही और सुकुमाल मुनि तीन तीन दिन तक आत्म-स्वरूपमें लीन रहकर कर्मोकी निर्जरा करते रहे। आयु पूर्ण होनेपर वे अच्युत स्वर्गके नलिनी गुल्म विमानमें महद्धिक देव हुए। ____ कहते हैं, जिस स्थानपर सुकुमाल मुनिका समाधिमरण हुआ था, वह उज्जयिनीके दक्षिण द्वारसे दिखाई देता है। उस स्थानकी रक्षा कापालिक लोग अब भी करते हैं। सम्पन्न लोग कापालिकोंको अच्छी रकम देकर अपने मृत जनोंका दाह-संस्कार वहीं करते हैं। जब सुकुमाल मुनिका निधन हुआ, उस समय देवोंने सुगन्धित जलकी वर्षा की थी, जिससे वहाँकी नदी गन्धवतो हो गयी थी। उनकी स्त्रियोंने उस समय जो रुदन कर कलकल शब्द किया था, उसके कारण वहांकी देवमूर्तिका नाम ही कलकलेश्वर हो गया था। एक पौराणिक कथा इस प्रकार भी मिलती है काकन्दीका राजा अभयघोष एक कछुएको चारों पैर बांधकर और लाठीमें लटकाकर नगरमें लाया। फिर तलवारके एक ही प्रहारसे उसके चारों पैर काट डाले । कछुआ अत्यन्त वेदना पाकर उसी रातमें मर गया और वह राजाका पुत्र चण्डवेग हुआ। एक दिन राजाके मनमें चन्द्रग्रहण देखकर वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने मुनि-दीक्षा ले ली। ___ एक बार मुनि अभयघोष विहार करते हुए उज्जयिनी पधारे और वीरासनसे ध्यानमग्न हो गये। तभी उनका पुत्र चण्डवेग उधर आ निकला। पूर्वजन्मके वैरके कारण उसे ऐसी दुर्बुद्धि जागृत हुई कि वह मुनिराजके ऊपर उपसर्ग करने लगा और उनके चारों हाथ-पैर काट दिये। मुनिराज इस उपसर्गको समभावसे सहकर आत्म-स्वरूपमें लीन रहे। कुछ ही क्षगोंमें उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और तभी मोक्ष हो गया। मुनि अभयघोषके कारण उज्जयिनीको निर्वाण भूमि होनेका भी गौरव प्राप्त हुआ। इस प्रकार उज्जयिनीमें अनेक पौराणिक और धार्मिक घटनाएं घटित हुई हैं। उनका विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि उज्जयिनीका महाकाल श्मशान अनेक घटनाओंका केन्द्र रहा है। यहाँ अनेक मुनियोंने तपस्या की, अनेक मुनियोंपर उपसर्ग हुए और कई मुनियोंको इस भूमिमें केवलज्ञान और निर्वाणकी प्राप्ति हुई। इसके कारण यह स्थान कल्याणक क्षेत्र भी है और सिद्धक्षेत्र भी है। किन्तु इस स्थानको सर्वाधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई महावीर भगवान्के ऊपर रुद्र द्वारा किये गये उपसर्गके कारण। तबसे इस स्थानको ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व प्राप्त हो गया। भगवान् महावीरके उपसर्गको घटनाको स्मृति बनाये रखनेके लिए वहां एक विशाल जैन मन्दिर बनवाया गया। वह मन्दिर यहां किस काल तक रहा, वह कब धराशायी हो गया अथवा परिवर्तित कर दिया गया, इसके लिए कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। उज्जयिनीका वैभव जैन साहित्यमें उज्जयिनीमें घटित होनेवाली घटनाओंके अतिरिक्त इस प्रकारके वर्णन विभिन्न स्थलोंपर उपलब्ध होते हैं, जिनसे उज्जयिनीकी प्राचीनता और उसकी समृद्धिपर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। 'आदिपुराण' के अनुसार भगवान् ऋषभदेवकी आज्ञानुसार इन्द्रने भारतवर्षको ५२ जनपदोंमें विभाजित किया था, उनमें एक अवन्ती जनपद भी था। उसकी राजधानी अवन्तिका
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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