________________
मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
२५९ .... यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि सोमदत्त पूर्वभवमें मृगसेन धीवर था। किन्हीं मुनिसे उसने नियम लिया था कि वह जालमें फंसी हुई पहली मछलीको छोड़ दिया करेगा। अगले दिन जब वह जाल लेकर सिप्रा नदीपर गया तो उसने जालमें फंसी पहली मछलीको अपने व्रतके अनुसार जलमें छोड़ दिया और पहचानके लिए उसने मछलीके गलेमें एक धागा बांध दिया। उसने दुबारा जाल डाला तो फिर वही मछली आ गयी। उसने उसे फिर छोड़ दिया। इस प्रकार वही मछली चार बार जालमें आयी और उसने चारों ही बार उसे छोड़ दिया। उस दिन फिर कोई और मछली जालमें नहीं आयी । जब वह घर पहुंचा तो उसकी स्त्री घण्टाने मछली न लानेपर उस
उसे बहत बरा-भला कहा और घरसे निकाल दिया। बेचारा मगसेन उस शिशिर ऋतु में एक शून्यागारमें जाकर लेट गया। वहां उसे साँपने काट लिया और मर गया। उसकी स्त्री घण्टा भी उसे ढूँढ़ती हुई आयी। अपने पतिको मरा हुआ देखकर उसने भी प्रतिज्ञा की कि जो नियम मेरे पतिका था, वह मैं भी लेती हूँ। फिर उसने साँपके बिलमें हाथ डाल दिया। सांपने उसे भी काट लिया और वह भी शान्त भावोंसे मरी। दोनों मरकर सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। वहाँसे आयु पूरी होनेपर मृगसेनका जीव सोमदत्त हुआ और घण्टाका जीव विषा हुआ। सोमदत्तने चार बार मछलीपर दया करके उसे छोड़ दिया था। उसीका फल यह हआ कि उसकी हत्याका चार बार प्रयत्न किया गया, किन्तु फिर भी वह बच गया। ... उज्जयिनी नगरीसे सम्बन्धित एक यह कथा भी उल्लेखनीय है-मणिपति नामक एक राजाने मुनि-दीक्षा लेकर घोर तप किया। एक बार विहार करते हुए वे उज्जयिनीके श्मशानमें पहुंचे और वहाँ शयनप्रतिमासे स्थित हो गये। कृष्ण-पक्षकी चतुर्दशीकी अंधियारी रात थी । एक कापालिक वैताल विद्या-सिद्धिके लिए तीन मुरदोंकी तलाश करता हुआ वहाँ आया। उसने देखा एक मुरदा पड़ा हुआ है। वह दो और मुरदे ढूँढ़कर घसीट लाया और उन तीनोंके सिरोंको मिलाकर उसने चूल्हा बनाया तथा आग जला दी। आगमें मुनिका शरीर जलने लगा। इससे उनका सिर हिल गया । सिरको हिलते हुए देखकर कापालिक भयभीत होकर भाग गया। दूसरे दिन प्रातः
ल किसी व्यक्तिने अर्द्धदग्ध मुनिको देखा। वह नगरमें गया और धार्मिक श्रावक जिनदत्तको अर्द्धदग्ध मुनिके सम्बन्धमें समाचार दिया। जिनदत्त धर्मवात्सल्यके कारण त्वरित गतिसे श्मशान पहुंचा और वहांसे मुनिको अपने घर ले आया और किसीसे लक्षपाक तेल लाकर मुनिका उससे उपचार किया। कुछ ही दिनोंमें मुनिका शरीर स्वर्ण-जैसा हो गया। चातुर्मास प्रारम्भ हो रहा था, अतः उन्होंने जिनदत्तकी प्रार्थनापर उसीके चैत्यालयमें चातुर्मास करना स्वीकार कर लिया। ... एक दिन जिनदत्तने मुनि महाराजवाले प्रकोष्ठमें जमीन खोदकर उसमें मणिरत्नोंसे भरा हुआ एक ताम्रकुम्भ दबा किया। कुम्भ जमीनमें गाड़ते हुए जिनदत्तके पुत्र कुबेरदत्तने देख लिया। वह अत्यन्त दुर्व्यसनी था। किसी दिन अवसर पाकर कुबेरदत्तने वह कुम्भ निकाल लिया। मुनि महाराजने कुम्भ गाड़ते हुए भी देखा था और कुम्भ निकालते हुए भी देखा किन्तु मुनिराज इस
से उदासीन रहे।
____चातुर्मास समाप्तिके बाद मुनिराजने वहाँसे विहार कर दिया। उनके जानेके बाद जिनदत्तने भूमि खोदी, किन्तु वहाँ कुम्भ न पाकर वह चिन्तित हो उठा। उसका सन्देह मुनिके ऊपर गया। उसने अपने स्त्री-पुत्र आदिको भेजकर पुनः मुनिराजको किसी बहानेसे बुला लिया और नाना कथोपकथनों द्वारा अपना सन्देह उनके ऊपर व्यक्त किया। मुनिराज भी उसी प्रकार कथाओं द्वारा उसका सन्देह दूर करनेका प्रयत्न करते रहे।