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________________ २५८ भारतके दिगम्बर जन तीर्य किन्तु श्रेष्ठी हार माननेवाला प्राणी नहीं था। उसने एकान्तमें अपनी पत्नीसे परामर्श करके एक नवीन योजना बनायी। उसने सन्ध्याके समय धूप-पुष्पादि सामग्रीसे सज्जित थाल देते हुए सोमदत्तसे कहा-"कुल-परम्परासे हमारे यहाँ विवाहके बाद नाग-पूजाकी रीति चली आयी है। तुम यह सामग्री लेकर नागमन्दिर चले जाओ।" सरलहृदय सोमदत्त पूजाका थाल लेकर चला । मार्गमें उसका साला महाबल मिल गया। उसे जब पता चला कि सोमदत्त अकेले ही नागमन्दिर जा रहे हैं तो उसे पिताका यह कार्य बड़ा अरुचिकर लगा और सोमदत्तसे थाल लेकर महाबल नागमन्दिरको चल दिया। - श्रेष्ठीने एक बधिकको नागमन्दिर में पहलेसे ही छिपा दिया था। उसे आदेश था कि सन्ध्याके समय जो व्यक्ति पूजाका थाल लेकर आवे, उसे तुम तलवार द्वारा मार देना। महाबलने ज्यों ही नाग-मन्दिरमें प्रवेश किया, प्रतीक्षारत बधिकने एक ही प्रहारमें उसके शरीरके दो खण्ड कर दिये। सोमदत्त घर पहुंचा। उसे जीवित देखकर गुणपाल बड़े आश्चर्यके साथ पूछने लगा"क्यों, तुम नागमन्दिर गये नहीं ?" सोमदत्त बोला-"आर्य, मैं नागमन्दिर जा रहा था। मार्गमें महाबल मिल गये । वे मुझसे जबरदस्ती थाल लेकर मन्दिर चले गये।" यह सुनते ही श्रेष्ठी वहांसे एक पलका भी विलम्ब किये बिना नागमन्दिरकी ओर भागा। उसे जिस दुर्घटनाकी आशंका थी, वही उसे अपनी आंखोंसे देखनी पड़ी। उसका एकमात्र पुत्र महाबल दो खण्डोंमें मृत पड़ा हुआ था। मन्दिरकी देव-भूमि रक्तस्नात थी। भवितव्य होकर ही रहती है। वह दुर्बुद्धि अपनी पुत्रीका सुहाग मिटाने चला था किन्तु उसके पापोंकी झंझावातने उसीके कुल दीपकको बुझा दिया। _____ आश्चर्य है, इतनी बड़ी दुर्घटनासे भी उसकी हियेकी गांठ न खुल सकी। उसके सिरपर प्रतिशोधका भयंकर पिशाच चढ़ा हुआ था। उसने अपनो स्त्रीसे कहा-"सोमदत्त मेरा जामाता नहीं, शत्रु है। इसे जल्दीसे जल्दी विष देकर समाप्त कर दो।" स्त्रीने बड़े जतनसे मोदक बनाये। उनमें सुगन्धि और नाना भांतिके मेवा पड़े हुए थे। इनके साथ हलाहल विष भी मिश्रित था। - गुणश्री मोदक बनाकर पड़ोसमें कहीं चली गयी और अपनी पुत्रीसे कहती गयी-"बेटी ! मैंने जामाताके लिए ये मोदक तैयार किये हैं । तू अपने हाथसे उन्हें खिला देना।" तभी गुणपाल आ गया और पुत्रोसे बोला-"बेटो, मुझे राजाने बुलाया है। कुछ खानेको हो तो ले आ। पता नहीं, वहां कितना समय लग जाये।" पुत्रोने वे ही मोदक लाकर पिताको परोस दिये। श्रेष्ठी शीघ्रताके कारण ध्यान नहीं दे सका अथवा उसे ज्ञान नहीं था। वह उन मोदकोंको खा गया। खाते ही उसका प्राणान्त हो गया । गुणश्री पड़ोसके मकानमें बैठी हुई रुदनके शब्दकी प्रतीक्षा कर रही थी। उसके कानोंमें करुण विलापका स्वर पहुंचा। वह मनमें हर्ष सँजोये त्वरित गतिसे घर पहुंची। किन्तु जिसके मरणके लिए नाना उपाय किये गये थे, वह सोमदत्त श्वसुरके निधनपर आँसू बहा रहा था और मरण-योजनाओंका सूत्रधार मृत पड़ा था। श्रेष्ठिनी पछाड़ खाकर गिर पड़ी और विलाप करती हुई एक-एक कर उन क्रूर चालोंका बखान करने लगी जो दम्पतिने सोमदत्तकी हत्याके लिए चली थीं। अन्तमें अपनो पुत्रो और जामातासे क्षमा याचना करते हुए उसने विष-मिश्रित मोदक खा लिया, जिससे उसके भी प्राण-पखेरू उड़ गये। . राजाने सारी घटनाएं सुनी तो वह सोमदत्तके सौभाग्यकी सराहना करने लगा। उसने अपनी पुत्रोका विवाह उसके साथ कर दिया और आधा राज्य भी दे दिया। अन्तमें सोमदत्तने मुनि-दीक्षा ले ली और तप करके सर्वार्थसिद्धिमें अहमिन्द्र पद प्राप्त किया।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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