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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मालव १-विक्रमादित्य आदिके कालमें इसकी राजधानी उज्जयिनी थी। राजा भोजके कालमें इसकी राजधानी धारा नगरी हो गयी। सातवीं-आठवीं शताब्दीसे पहले मालवको अवन्ती कहते थे। २-मालव या मल्लोंका देश, जिसकी राजधानी मुलतान थी। 'हर्षचरित' में वर्णितमालवराज सम्भवतः मुलतानके मल्लोंका राजा था। दशाण-महाभारतमें दशाणं नामके दो देशोंका उल्लेख मिलता है-एक पश्चिमकी ओर, जिसे नकुलने जीता था ( सभा पवं, अ. ३२) । दूसरा पूर्व में, जिसे भीमने जीता था ( सभा पर्व, अ. ३०) । पश्चिम दशाणमें पूर्वी मालवा तथा भोपाल सम्मिलित थे। इसकी राजधानी विदिशा थी। अशोकके कालमें इसकी राजधानी चैत्यगिरि या चेतियगिरि थी। पूर्वी दशार्णमें वर्तमान छत्तीसगढ़ जिला और आदिवासियोंकी पटना भी सम्मिलित थी। चेदि-बुन्देलखण्ड । इसकी सीमाएं इस प्रकार श्री-पश्चिममें काली सिन्ध, पूर्वमें टोंस । 'टाड राजस्थान' (१,४३) में चेदिकी पहचान चन्देरीसे की गयी है तथा इसे शिशुपालकी राजधानी बताया है। 'आइने-अकबरी' में बताया है कि यह एक बहुत बड़ा शहर है और इसमें एक किला भी है। डॉ. फ्यूरर, जनरल कनिंघम और डॉ. 'हू लरका मत है कि दहल मण्डल या बुन्देलखण्ड ही प्राचीन चेदि है। दहल नर्मदाका तटवर्ती भाग है। गुप्तकालमें कालंजर इसकी राजधानी थी और महाभारत कालमें शक्तिमती उसकी राजधानी थी। चेदिको इसकी राजधानी त्रिपुरीके कारण त्रिपुरी भी कहा जाता था। त्रिपुरीको वर्तमानमें तेवर कहते हैं। सिद्धक्षेत्र प्राचीन कालमें मध्यप्रदेशके सुरम्य शैल-मालाओं और नदी-तटोंपर, कलकल निनाद करते हुए अजस्र निर्झरों और वन-वीथियोंमें मुनिजन तपस्या किया करते थे। प्रकृतिको गोदमें बैठकर जब वे वीतराग योगी आत्मोपलब्धिके लिए ध्यानलीन बैठ जाते तो प्रकृति-पूत्र वन्य जीव उनके निकट निर्भय और निर्वैर होकर परस्पर केलि किया करते थे। कोटि-कोटि निग्रन्थ मुनियोंकी आत्म-साधना इस प्रदेशके पर्वत शिखरोंपर, गुहाओं और नदी-तटोंपर बैठकर या कायोत्सर्ग मुद्रामें ध्यान करते हुए सफल हुई है। उन्हें केवलज्ञान प्रकट हुआ। किन्हीं मुनियोंने केवलज्ञान प्राप्तिके पश्चात् गन्धकुटीमें विराजमान होकर जगत्के जीवोंको कल्याण और हितका उपदेश दिया और आयुकर्म पूर्ण होनेपर यहींसे मुक्त हो गये। कुछ मुनियोंके ऊपर घोर उपसर्ग हुआ और वे अन्तकृत केवली होकर सिद्ध परमात्मा बन गये। इस प्रदेशमें ऐसे कुछ स्थान हैं, जहाँ मनियोंका निर्वाण हुआ और इसलिए जो सिद्धक्षेत्र या निर्वाण क्षेत्र कहे जाते हैं। इन सिद्धक्षेत्रोंके नाम इस प्रकार हैं १. महाभारत, सभा पर्व, अ. ३२ । Me Crindle's Invasion of India by Alexander, ___. 352; Cunnnigham's Arch. S. Report V, p. 129; बृहत्संहिता अ. १४ । २. Epigraphia Indica, Vol. I, P. 70. ३. Dr. Bhandarkar's History of Dekkan, Sec. III. . 7. Journal of Asiatic Society of Bengal 1905, pp. 7-14. ५. अलबरूनीका भारत, प्रथम खण्ड, पृ २०२। हेमकोश । अनर्थ्य राघव, अंक ७ में बताया है कि कलचरि कालमें माहिष्मती चेदिमण्डलको राजधानी थी। .
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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