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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ पावागिरि, सिद्धवरकूट, चूलगिरि, रेशंदीगिरि, द्रोणगिरि, सोनागिरि।
पावागिरि-प्राकृत निर्वाण काण्डके अनुसार पावागिरिके शिखर पर, चलना नदीके तटपर सुवर्णभद्र आदि चार मुनीश्वर निर्वाणको प्राप्त हुए। संस्कृत निर्वाण भक्तिमें कर्मविजेता सुवर्णभद्रकी मुक्ति नदीके तटसे बतायी है। यह नदी निश्चय ही चलना नदी थी और उस स्थानका नाम पावागिरि था।
अनुश्रति है कि मालवराज बल्लालने यहाँ ९९ मन्दिर. ९९ सरोवर और ९९ कएँ बनवाये थे। इस राजाके कालके ११ मन्दिर कुछ अच्छी दशामें तथा शेष मन्दिरोंके भग्नावशेष यहाँपर अब तक मिलते हैं।
सिद्धवरकूट-यहाँसे रेवाके दोनों तटोंपर रावणके दो पुत्र तथा साढ़े पांच करोड़ मुनि मुक्त हुए थे। इनके अतिरिक्त दो चक्रवर्ती, दस कामकुमार और साढ़े तीन करोड़ मुनि भी यहाँसे मुक्त हुए थे।
कुल २४ कामदेव हुए हैं, जिनके नाम हैं-बाहुबली, अमिततेज, श्रीधर, दशभद्र, प्रसेनजित चन्द्रवणं, अग्निमुक्ति, सनत्कुमार, वत्सराज, कनकप्रभ, मेघवर्ण, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, विजयराज, श्रीचन्द्र, नल, हनुमान, बलगजा, वसुदेव, प्रद्युम्न, नागकुमार, श्रीपाल और जम्बूकुमार।
इनमें से कौन-से १० कामकुमार यहाँसे मुक्त हुए हैं, यह ज्ञात नहीं हो सका।
चक्रवतियोंमें दो चक्रवर्ती यहाँसे मुक्त हुए हैं। सम्भवतः उनके नाम हैं मघवा और सनत्कुमार।
चूलगिरि-बड़वानी नगरसे दक्षिणकी ओर चूलगिरि शिखरसे इन्द्रजीत और कुम्भकर्ण मुनियोंने मुक्ति प्राप्त की थी। यहाँपर भारतकी सबसे विशाल प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा आद्य तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेवकी है जो कायोत्सर्ग मुद्रामें एक ही पाषाणमें उत्कीर्ण ८४ फुट ऊँची है । इसे बावनगजाजी कहते हैं। इस प्रदेशमें प्राचीन कालमें एक हाथको ही कच्चा गज माननेका रिवाज था, अतः ५२ हाथको बावनगजा कहने लगे। यह पहाड़के सहारे खड़ी है। भगवान्के मुखपर जो वीतरागता और शान्तिके भाव अंकित हैं, उन्हें देखकर दर्शक स्वतः अभिभूत हो जाता है।
रेशंदोगिरि-इस क्षेत्रका नाम नैनागिरि है। रेशंदीगिरिको ही नैनागिरि मान लिया गया है। यहाँसे भगवान् पार्श्वनाथके समवसरणमें वरदत्त आदि पांच मुनियोंको मोक्ष प्राप्त हुआ है।
द्रोणगिरि-फलहोड़ी ग्रामके पश्चिममें द्रोणगिरि पर्वतके शिखरसे गुरुदत्त आदि मुनियोंकी मुक्ति हुई है । वर्तमानमें यह क्षेत्र सेंधपा ग्राम (जिला-छतरपुर ) के निकट माना जाता है।
सोनागिरि-यहांसे नंगकुमार, अनंगकुमार आदि साढ़े पांच करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं। अतः यह क्षेत्र सिद्धक्षेत्र है। यह क्षेत्र झांसी-दतियाके निकट है।
इन सिद्धक्षेत्रोंके अतिरिक्त कई स्थान ऐसे हैं, जिनको अभी तक सिद्धक्षेत्र तो नहीं माना जाता, किन्तु आर्ष ग्रन्थोंमें जहाँसे मुनिजनोंके मुक्त होनेके उल्लेख मिलते हैं। जैसे
उज्जयिनीमें अभयघोष मुनि पधारे और वीरासनसे ध्यानारूढ़ हो गये। तभी उनके पुत्र चण्डवेगने उनके ऊपर घोर उपसर्ग किया, उनके चारों हाथ-पैर काट दिये। मुनिराज समरसीभावमें निमग्न थे। उन्हें तत्काल केवलज्ञान हो गया और वहींसे कुछ ही क्षणोंमें उन्हें मोक्ष हो गया। इस प्रकार उज्जयिनी भी निर्वाण क्षेत्र है।