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________________ २५३ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं जिन्होंने संस्कृतिकी विभिन्न धाराओंको ही मोड़ दिया । जैन संस्कृतिका उज्जयिनी के साथ गहरा सम्बन्ध रहा है, इसलिए जैन संस्कृति के इतिहास में उज्जयिनीको विशिष्ट स्थान प्राप्त है । जैन साहित्य में उज्जयिनी भगवज्जिनसेन कृत 'आदिपुराण' के अनुसार भगवान् ऋषभदेवने भारतको ५२ जनपदों में विभाजित किया था, उनमें अवन्ती जनपद भी था । प्राचीन कालमें इसकी राजधानी उज्जयिनी थी । मालवाका ही प्राचीन नाम अवन्ती था । ईसाकी सातवीं-आठवीं शताब्दीसे अवन्तीका नाम मालवा हो गया । उज्जयिनीका सम्बन्ध अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीरके साथ भी रहा है । यहाँके अतिमुक्तक श्मशान में तपस्या-रत भगवान् महावीरके ऊपर रुद्रने घोर उपसर्गं किया था। आचार्य गुणभद्रकृत 'उत्तरपुराण' में वर्णित इससे सम्बन्धित कथाका सारांश इस प्रकार है एक बार विभिन्न देशों में विहार करते हुए भगवान् महावीर उज्जयिनी नगरी पधारे और वहाँ अतिमुक्तक श्मशान में आतापन योग धारण करके ध्यानमग्न हो गये । उन्हें देखकर महादेव रुद्रने उनके धैयंकी परीक्षा करनी चाही । उसने रात्रिमें भगवान्‌ के ऊपर घोर उपसगं किया। उसने अनेक भयंकर वैतालोंका रूप धारण किया। उन वैतालों में कोई भयंकर मुख फाड़ रहा था, मानो निगल जाना चाहता था । कोई दूसरे वैतालका पेट फाड़कर उसमें प्रवेश करना चाहता था । कोई भयंकर अट्टहास कर रहा था, कोई नृत्य कर रहा था, कोई बीभत्स रूप बनाकर किलकारियाँ मार रहा था । इन उपसर्गोंका जब भगवान् पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तब वह सर्प, हाथी, सिंह, अग्नि और भीलोंकी सेना भयंकर रूप बनाकर उपसर्गं करने लगा और भगवान्को समाधिसे विचलित करने का घोर प्रयत्न करने लगा । किन्तु धीर-वीर भगवान् ध्यानसे तनिक भी विचलित नहीं हुए । रुद्रने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। वह भगवान् के चरणोंमें नमस्कार करके बार-बार अपने अपराधोंकी क्षमा-याचना करने लगा। फिर उसने भक्तिमें गद्गद होकर भगवान्की स्तुति की, नृत्य किया और भगवान् के महति और महावीर ऐसे दो नाम रखकर स्वस्थानको चला गया । श्वेताम्बर मान्यतानुसार उस उपसर्ग-भूमिमें नन्दिवर्धनने एक विशाल जिनालयका निर्माण कराया, जिससे जनताको भगवान्पर हुए घोर उपसगं और उनकी अविचल धीरता - वीरताकी स्मृति बनी रहे । पुराणप्रसिद्ध सुकुमालकी मृत्यु यहीं हुई थी। उनकी स्मृति में एक जिनालयंका निर्माण अवन्ति सुकुमाल के पुत्रने कैराया था । सम्भवतः बादमें इस मन्दिरको परिवर्तित करकेमहाकालका मन्दिर बना दिया गया । महाकाल मन्दिरके प्रांगणमें एक समाधि भी बनी हुई है, जिसे 'कोर्टि तीर्थं' कहते हैं । महाकालके कारण उज्जयिनीका एक नाम महाकाल वन भी है। हिन्दू मान्यतानुसार द्वादश ज्योतिर्लिंगों में महाकालकी गणना की गयी है । महावीरकी उपसर्ग-भूमि होनेके अतिरिक्त उज्जयिनीमें एक ऐसी घटना हुई, जिसने सम्पूर्ण जैन इतिहासको ही झकझोर दिया और भगवान् महावीरसे चले आ रहे एक और अखण्ड जैन १. ब्रह्मपुराण अ. ४३, अनर्घ राघव अंक ७ । २. उत्तरपुराण, पर्व ७४, श्लोक ३३१ । ३. स्थविरावलि चरित, ११।१७७, परिशिष्ट पर्व, ११।१६७-१७७ । अध्याय २२ । ४. " ५. शिवपुराण, १ - ३८, ४६ ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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