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भारतके दिगम्बर वतीय अनुसार दर्शन-पूजन करने दिया जाये । फैसलेमें प्रातः ६ बजे से ९ बजे तकका समय पूजनके लिए दिगम्बर समाजको दिया गया। उसके बादका समय श्वेताम्बर समाजको दिया गया। दर्शनके लिए किसीके ऊपर समयका प्रतिबन्ध नहीं रखा गया। फैसलेमें बड़ा मन्दिर श्वेताम्बर समाजके प्रबन्धमें दिया गया और छोटे मन्दिरका प्रबन्ध दिगम्बर समाजके । तत्कालीन ग्वालियर महाराजका आदेश स्पष्ट है कि सुपुर्दगीका अर्थ मालिकी नहीं, केवल ट्रस्टोशिप है क्योंकि मन्दिरको मालिकी देवतामें निहित है। इनकी आय उनको होगो, जिनके सुपुर्द यह है। किसी सम्प्रदायका कोई व्यक्ति, जो किसी मन्दिर में दर्शन, पूजनको जाये, वह कोई नयी बात नहीं करेगा। दिगम्बरी अपनी मान्यतानुसार बड़ी मूर्तिका अभिषेक, दर्शन और पूजन करते हैं और भविष्यमें भी करते रहेंगे।
इसके बाद सदाके लिए दोनोंका विवाद समाप्त करनेके लिए ग्वालियर महाराजने बड़े मन्दिरको सुपुर्दगी और व्यवस्था श्वेताम्बर समाजसे लेकर दिनांक ४-५-१९२१ की आज्ञा द्वारा पंचकमेटीके सुपुर्द कर दी। इस कमेटीमें दो दिगम्बर, दो श्वेताम्बर और ग्वालियर हाईकोर्टके मुख्य न्यायाधीशको सम्मिलित किया गया। मुख्य न्यायाधीशकी ओरसे जिलेका कलेक्टर नियुक्त किया गया।
सन् १९२७ में ग्वालियर दरबारकी आज्ञासे नियुक्त सुपरिण्टेण्डेण्टने श्वेताम्बर-दिगम्बर पंचोंके सामने मन्दिरकी सब मूर्तियोंका विवरण तैयार किया था। उसकी पुस्तिका भी बनकर प्रकाशित हुई थी। उसमें देवरियोंकी सभी मूर्तियां दिगम्बर बतलायी हैं।
कानूनने बहुत स्पष्ट निर्णय दिये हैं किन्तु श्वेताम्बर लोगोंने मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान्की दिगम्बर प्रतिमाको श्वेताम्बर आम्नायकी बनानेके कई बार प्रयत्न किये । इस बीच ४२ दिगम्बर मूर्तियोंपर नेत्र जड़ दिये गये हैं।
वर्तमानमें स्थिति इस प्रकार है
(१) छोटे मन्दिर और उसकी धर्मशालापर दिगम्बर जैन समाजका पूर्ण अधिकार है। (२) बड़े मन्दिरमें प्रातः ६ बजेसे ९ बजे तक दिगम्बर समाजका कोई भी यात्री दिगम्बर आम्नायके अनुसार स्वतन्त्रतापूर्वक पूजा-प्रक्षाल कर सकता है। (३) दिगम्बर समाजको अधिकार है कि पूजाके समय मूलनायक श्री पार्श्वनाथकी मूर्तिपर किसी तरहका कोई आभूषण या शृंगार होवे तो उसे अलग कर देवे । (४) दिगम्बर यात्री जब भी दर्शन करना चाहें, उन्हें दर्शन करनेसे नहीं रोका जा सकता। क्षेत्र-दर्शन
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मक्सी बस्तीके मध्यमें अवस्थित है। यहां परकोटेके अन्दर दो मन्दिर और धर्मशालाएं हैं। परकोटेके मुख्य द्वारसे प्रवेश करनेपर दायीं ओर बड़ा मन्दिर ( मुख्य मन्दिर ) है तथा बायीं ओर धर्मशाला बनी हुई है। मन्दिरमें प्रवेश करनेपर सामने एक चबूतरेपर भगवान् पाश्र्वनाथकी कृष्ण वर्ण पद्मासन मूर्ति विराजमान है। मूर्तिकी अवगाहना ३ फुट ६ इंच है। चबूतरा दो फुट ऊंचा है। मूर्तिके नीचे कोई पीठासन नहीं है। मूर्तिके सिरपर सप्त फणावली सुशोभित है। यह मूर्ति अत्यन्त सौम्य, शान्त एवं मनोज्ञ है। मुखपर सहज वीतरागता अंकित है। यह बलुआ पाषाण की है और इसके ऊपर ओपदार पालिश की हुई है। मूतिके दर्शन करनेपर दृष्टि और मन उसीपर केन्द्रित हो जाते हैं और हृदय भक्तिके सरस भावोंसे परिपूर्ण हो आता है। यह प्रतिमा भगवान्के उस वीतराग रूपकी साक्षात् प्रतीक है, जब भगवान् अन्तर्बाह्य