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________________ मध्यप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थ २४३ हुई देवी-मूर्तियाँ हैं । अर्धमण्डप और महामण्डपके वितान अत्यन्त मनोरम ढंगसे अलंकृत हैं। मन्दिरको बाह्य भित्तियोंपर यक्ष-यक्षी और सुरसुन्दरियोंकी मूतियां उत्कीर्ण हैं। - मालादेवी जैन मन्दिरसे भेजी गयी एक सुर-सुन्दरीकी मूर्तिको विश्व-मूर्तिकला-प्रतियोगितामें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है । इस मूर्तिके सम्बन्ध में २८ जून १९६५के नवभारत टाइम्समें जो समाचार प्रकाशित हुआ है, इस प्रकार है-"म. प्र. के. ग्यारसपुर नामक स्थानसे उपलब्ध १७ इंचकी एक पत्थरकी मूर्तिने पिछले तीन वर्षों में विश्वख्याति प्राप्त कर ली है। भारतकी एक उत्कृष्ट शिल्पकृतिके रूपमें इस मतिने विश्व भ्रमण कर लिया है। १९६२ ई. में यह पश्चिमी जर्मनीमें आयोजित 'भारतके पांच हजार' प्रदर्शिनीमें तथा १९६३ में जापानमें और अभी पिछले दिनों अमेरिकाके प्रमुख नगरोंमें प्रदर्शित की जा चुकी है । अपने देशमें पुरातत्त्व शताब्दी समारोहमें भी इसका गौरवशाली स्थान रहा।". .. . मन्दिरके बाहर परिसरमें एक स्थानपर ४ चरणयुगल बने हुए हैं तथा १ खड्गासन तीर्थंकर मूर्ति उत्कीर्ण है। इसी प्रकार एक अन्य शिलापर १ चरणयुगल अंकित है। इन चरण-चिह्नोंसे मनमें एक सम्भावना जाग्रत होती है कि यह नगर सिद्धक्षेत्र भी हो सकता है। किन्त पौराणिक या ऐतिहासिक प्रमाणोंके अभावमें इसके सिद्धक्षेत्र होनेकी पुष्टि कर देना युक्ति-युक्त नहीं होगा। हाँ, इस सम्भावनासे इनकार नहीं किया जा सकता कि यहाँ मुनिजन तपस्याके लिए आते होंगे। पर्वतको एकान्त शान्ति, चारों ओरका अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य और पर्वतसे नोचे बहती हुई नदी आदि बातोंसे यह स्थान तपस्याके लिए अति उपयुक्त ठहरता है। मन्दिरके निकट दीवार और भवनोंके चिह्न मिलते हैं। इससे यह प्रतीत होता है कि प्राचीन कालमें मन्दिरके चारों ओर अहाता होगा तथा मुनिजनोंके उपयुक्त आवास बने होंगे। बज्रमठ मन्दिरके पृष्ठ भागसे पहाड़से उतरकर पगडण्डी द्वारा लगभग २ फलाँग चलनेपर पहाड़की तलहटीमें वज्रमठ पहुंचते हैं। उसमें एक पंक्तिमें तीन गर्भगृह हैं। मध्य गर्भगृहके बाहर अर्धमण्डप है। मन्दिरके ऊपर शिखर है । कलाको दृष्टिसे खजुराहोके पार्श्वनाथ मन्दिरके शिखरके साथ इसका बड़ा साम्य है। मध्य गर्भगृह ७ फुट ६ इंच ७ फुट ९ इंच है। चौरस वेदीपर ऋषभदेवकी ६ फुट ९ इंच उन्नत देशी पाषाणको पद्मासन प्रतिमा है। सिरके पृष्ठभागमें भामण्डल और सिरके ऊपर छत्रत्रयी है। इनके दोनों पाश्वोंमें गज हैं तथा आकाशविहारी गन्धर्व हाथमें माला लिये हुए हैं। प्रतिमाके दोनों ओर दो पद्मासन और दो खगासन तीर्थंकर-मूर्तियां हैं। चमरेन्द्र हाथीपर खड़े हैं। मूर्तिके हाथ तथा परिकरके कई भाग खण्डित हैं। ... बायीं और दायीं ओरके गर्भगृह मध्य गर्भगृहसे एक फुट छोटे हैं । बायों ओरके गर्भगृहमें एक तीर्थंकर मूर्ति खड्गासन मुद्रामें है । यह ७ फुट ९ इंच उन्नत है। सिरके ऊपर छत्र सुशोभित है। छत्रोंके दोनों पार्यों में चैत्यालय बने हुए हैं। उनमें पद्मासन प्रतिमाएं विराजमान हैं। परिकरका शेष भाग खण्डित है। ___दायीं ओरके गर्भगृहमें ४ फुट १० इंच ऊँची एवं खड्गासन मुद्रामें तीर्थकर मूर्ति विराजमान है। मूर्ति के सिरके ऊपर छत्र और उनके पाश्वमें गन्धर्व हैं। इस मूर्तिके बगलमें एक अन्य तीर्थंकर मूर्ति है जो २ फुट ऊँची और खड्गासन है। सिरपर तीन छत्र हैं। - तीनों गर्भगृहोंके द्वार अलंकृत हैं। उनमें सिरदलपर अहंन्त मूर्ति है। चौखटोंपर मिथुनमूर्तियां और अधोभागमें देवी-मूर्तियां हैं। गर्भगृह साधारण ऊंचाईवाले हैं। मध्य गर्भगृहके ऊपर
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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