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________________ ૨૪૪ भारतके दिगम्बर जैन तीर्य समुन्नत शिखर हैं। उसके किनारे उभारदार हैं। शीर्षभागमें आमलक, चन्द्रिका, लघु आमलक और बीजपूरक हैं। किन्तु बगलके दोनों गर्भगृहोंकी छतें कोणस्तूपाकार हैं जो सोपान-शैलीमें उठती हुई शिखर तक जा पहुंची हैं। इससे शिखरकी शोभा द्विगुणित हो गयी है। मन्दिरको देखनेसे लगता है कि यह मन्दिर अधिक विशाल रहा होगा। निश्चय ही इसमें महामण्डप बना होगा। इसके स्तम्भ तथा अन्य सामग्री मन्दिरके आसपास बिखरी हुई है। यह भी लगता है कि पूर्वकी ओर ऊपर जानेके लिए जीना रहा होगा। - मन्दिरकी बाह्य भित्तियोंपरपर अलंकरण पट्टिकाएं बनी हुई हैं, जिनमें विभिन्न तीर्थंकरोंके शासन-देवताओं और देवियों की, सुरसुन्दरियों और व्यालोंकी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इनमें कुछ हिन्दू देवताओंकी भी मूर्तियां हैं। मन्दिरके निकट दो खण्डित तीर्थंकर मूर्तियां रखी हुई हैं। इनमें एक पद्मासन मूर्ति ४ फुट ६ इंच अवगाहनाकी है। इसकी बांह और पैर खण्डित हैं। दूसरी मूर्ति भी पद्मासन है। इसका सिर नहीं है। सम्भवतः यह मूर्ति पार्श्वनाथकी है। इसका सर्पफणमण्डित सिर अलग पड़ा हुआ है। यह इसी मूर्तिका प्रतीत होता है। - मन्दिरकी बाह्य भित्तियोंपर हिन्दू देवताओंकी मूर्तियां देखकर कुछ विद्वानोंने यह आशंका व्यक्त की है कि यह मन्दिर मूलतः हिन्दू मन्दिर है। किन्तु यह आशंका निराधार है। मन्दिरके प्रवेश-द्वारपर, स्तम्भों और भित्तियोंपर जैन तीर्थंकरों और यक्ष-यक्षियोंकी मूर्तियां बनी हुई हैं। किन्तु यह अवश्य विचारणीय है कि एक जैन मन्दिरमें हिन्दू मूर्तियां उत्कीर्ण किये जानेका क्या कारण है। हमारी सम्मतिमें इसका एक ही कारण हो सकता है। वह यह कि इस जैन मन्दिरके निर्माताका दृष्टिकोण अत्यन्त उदार रहा हो। शिल्पकारोंने उसकी उदारतासे लाभ उठाकर यहाँ अपने धर्मकी मूर्तियां उत्कीर्ण कर दी हों। जैनोंमें ऐसी उदारता सदासे रही है। इसके उदाहरण अनेक स्थानोंपर मिलते हैं। किसी हिन्दू मन्दिरमें जैन देवताओं अथवा कथानकोंका अंकन किया गया हो, ऐसा उदाहरण हमारे दृष्टिपथमें नहीं आया। किन्तु जैन मन्दिरोंमें हिन्दू देवताओं और कथाओंका अंकन कई स्थानोंपर हुआ मिलता है। कुछ विद्वानोंने भ्रम या अज्ञानवश तीर्थंकर मूर्तियोंको बुद्ध, शिव और विष्णुकी मूर्तियां भी लिख दिया है। - इस मन्दिरका निर्माता कौन था और इस मन्दिरका नाम वज्रमठ कैसे पड़ गया, इस सम्बन्धमें कोई लिखित साक्ष्य प्राप्त नहीं होता। किन्तु हमें लगता है, मुसलमानोंकी क्रूर विध्वंसलीलाके बाद भी जब यह मन्दिर सुरक्षित रह गया तो जनताने इसका नाम वज़मठ रख दिया। इस मन्दिरका निर्माण ९वीं-१०वीं शताब्दीमें हुआ था। .... वज्रमठसे नगरमें आनेपर एक स्थानपर कुएंके पास तीर्थकर मूर्ति रखी हुई है। इसे हिन्दू लोग सिन्दूर पोतकर भैरोके नामसे पूजते हैं। . अठखम्भा नगरसें दूसरी ओर बना हुआ है। ये किसी प्राचीन विशाल मन्दिरके अलंकृत स्तम्भ हैं । सम्भवतः इनमें से चार स्तम्भ तो महामण्डपके आधार-स्तम्भ थे, दो अन्तरालके और दो गर्भगृहके प्रवेशद्वारके । इन स्तम्भोंका शिल्प और तक्षण अत्यन्त समृद्ध. और कलापूर्ण है। एक स्तम्भपर लेख भी है। इसके अनुसार वि. संवत् १०३९ में किसी भक्तने यहाँको यात्रा की थी। अतः अनुमान किया जाता है कि इस मन्दिरका निर्माण ईसाको नौवीं शताब्दीमें हुआ होगा। १. Report of the Archaeological Survey of India, Vol. VII, pp. 90-95. २. Report of the Archaeological Survey of India, Vol.x, pp. 31-35.
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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