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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मिला था, जिसका कुछ अंश इस प्रकार पढ़ा गया था। ___....अन स्वामी मन्दिरं मालवच्छरदम् षत्रिंशत् संयुतेषु तितेषु नवमे शतेषु । - इसका अर्थ उन्होंने माल्व संवत् ९३६ निकाला था। मालव संवत्का अर्थ विक्रम संवत् होता है। इसका अर्थ यह है कि यहाँका कोई मन्दिर ई. सन् ८७९ में निर्मित हुआ था। एक शिलाखण्डपर उन्हें संवत् १०६५ ( ई. सन् १०१०) अभिलिखित मिला था। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि यहाँके मन्दिर ९.१०वीं शताब्दीमें निर्मित हुए। हिण्डोलासे पर्वतके ऊपर एक पगडण्डी मालादेवी मन्दिरकी ओर गयी है। लगभग दो फलांग चलनेपर मालादेवी मन्दिर पहुंचते हैं। यह मन्दिर अत्यन्त विकसित नागर शैलीका है। इसकी कला और खजुराहोके मन्दिरोंकी कलामें बहुत साम्य प्रतीत होता है। इस मन्दिरकी पृष्ठभित्ति पहाड़को काटकर बनायी गयी है तथा अन्य दीवारों आदिमें यहाँके ही पाणाणोंका प्रयोग किया गया है। यह तलच्छन्द और ऊवच्छन्द दोनों ही दृष्टियोंसे विलक्षण है। तलच्छन्दमें इसकी लम्बी भुजा पूर्वसे पश्चिमकी ओर फैली हुई है। इसमें गर्भगृह, अन्तराल, प्रदक्षिणापथ, महामण्डप और अर्धमण्डप हैं। अतः यह मन्दिर पंचायतन शैलीका मन्दिर माना जाता है। इसके ऊर्ध्वच्छन्दमें भी विलक्षणता है। अधिष्ठानके ऊपर जंघा या मन्दिरकी बाह्य दीवारें हैं जिनमें गवाक्ष हैं। जंघापर मूर्तियोंकी तीन पट्टिकाएँ हैं। इसकी छतें कोणस्तूपाकार हैं जो क्रमशः उन्नत होती गयी हैं और उनकी समाप्ति उत्तुंग शिखरमें होती है। यह पर्वतशृंखला-सी प्रतीत होती है। शिखरकी चोटीपर आमलक, उसपर चन्द्रिकाएं, फिर छोटा आमलक, उसपर कलश और अन्ततः बीजपूरक हैं । मन्दिर में प्रवेश करनेके लिए सोपान-पथ है। इसका गर्भगृह १३ फुट १० इंच ४१५ फुट ६ इंच है । मध्य शिलासनपर भगवान् शान्तिनाथकी ५ फुट ३ इंच उन्नत पद्मासन मूर्ति है। सिरके ऊपर छत्रत्रय है। दोनों शीर्ष कोणोंपर आकाशचारी गन्धर्व हाथमें माला लिये हुए हैं। शेष भाग खण्डित हैं। दायीं ओर एक शिलाफलकमें ५ फुट ५ इंच उन्नत खड्गासन मुद्रामें तीर्थंकर-प्रतिमा है । सिरपर छत्र हैं । कोनोंपर गज और मालावाहक गन्धर्व हैं । अवोभागमें चमरेन्द्र और यक्ष-यक्षी बने हुए हैं। इस फलकमें तीर्थकरोंको अनेक खडुगासन मूर्तियां बनी हैं। दायीं ओरको दीवारके सहारे ४ फुट ५ इंच उन्नत दो पद्मासन प्रतिमाएं रखी हैं। मुख्य मूतिके बगलमें बायीं ओर ३ फुट २ इंच समुन्नत पद्मासन प्रतिमा है। गर्भगृहका प्रवेशद्वार अत्यन्त अलंकृत है। महामण्डपमें दायीं ओरकी दीवार में शान्तिनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। यह १० फुट लम्बी और ४ फुट चौड़ी है। एक पद्मासन और एक खड्गासन मूर्ति और है। एक मूर्ति भगवान् पुष्पदन्तकी है। पद्मासन मूर्ति ३ फुट २ इंच ऊंची है। सिरके पीछे अलंकृत भामण्डल है । कारका भाग भग्न है। इनके अतिरिक्त २ पद्मासन एवं २ खड्गासन मूर्तियां हैं। बायीं ओरकी दीवारमें एक शिलाफलकमें भगवान् शान्तिनाथको ५ फुट ३ इंच उन्नत खड्गासन प्रतिमा विराजमान है । अधोभागमें वीरासनसे दो इन्द्र हाथ जोड़े हुए बैठे हैं। इसका ऊपरका भाग खण्डित है । ये सब मूर्तियां दीवारमें बने हुए ताकोंमें विराजमान हैं। महामण्डपमें ऊपरी भागमें चारों ओर पृथक् कोष्ठकोंमें चैत्यालय बने हुए हैं। हर मन्दिरके द्वारके ललाट-बिम्बपर शान्तिनाथ तीर्थंकरकी यक्षी महामानसी बनी हुई है। उसके ऊपरी भागमें चैत्यालय है। चौखटोंपर मिथुन-मूतियां हैं तथा चौखटोंके अधोभागमें खड़ी
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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