SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इसमें छाछके स्थानपर तालाबकी काईका प्रयोग बताया गया है। राजाने वैसा ही किया। वह नीरोग हो गया और धन प्राप्त होनेपर उसने विशाल तालाब बनवाया, जिसका नाम 'सुमेर सागर' रखा। इसके अतिरिक्त उसने अपनी रानीके नामपर एक नगर बसाया, जिसका नाम 'ललितापुर' अथवा 'ललितपुर' रखा। ____इस प्रकारकी एक कथा पंचतन्त्र आदि प्राचीन कथा-ग्रन्थोंमें भी आती है। इन किंवदन्तियों और उनपर आधारित कथाओंसे यह निर्णय नहीं हो पाता कि क्या इस प्रकारकी घटना सम्भव है? यदि सम्भव है तो यह घटना किस स्थानपर घटित हुई है ? किन्तु इनसे यह निष्कर्ष तो निकाला ही जा सकता है कि उदयपुर, ऊन और ललितपुरकी स्थापना क्रमशः उदयादित्य, बल्लाल और सुमेरसिंहने की थी और इन्होंने इन स्थानोंपर मन्दिर. सरोवर और बावडी बनवायी थी। उदयपुरमें परमार नरेशोंके कालमें अनेक हिन्दू और जैन मन्दिरोंका निर्माण हुआ । वर्तमानमें जैन मन्दिर भग्न दशामें अवस्थित हैं। उसमें कई विशाल तीर्थकर-मूर्तियां अवस्थित हैं। ये मूर्तियाँ ११वीं-१२वीं शताब्दीकी प्रतीत होती हैं। पठारी यह स्थान भेलसासे उत्तर-पूर्वकी ओर ८० कि. मी. है और गडोरी-ज्ञाननाथ पहाड़ियोंके मध्यमें बसा हुआ है । मुगल कालमें यह जिलेका सदर मुकाम था। नगर और पहाड़ीके बीच एक तालाब बना हुआ है जिसके चारों ओर विभिन्न धर्मों के प्राचीन धर्मस्थान, सतीचौरा, समाधि और स्तम्भ बने हुए हैं। तालाबके चारों ओर पक्के घाट बने हुए हैं। नगर पहाड़ीपर बसा हुआ है। नगरके चारों ओर चहारदीवारी है। इस नगरके बाहर गुप्त-कालके मन्दिरोंके भग्नावशेष, स्तम्भ, मूर्तियां आदि बिखरे पड़े हैं। नगरमें एक स्तम्भ बना हुआ है, जिसकी ऊंचाई ४७ फुट है। गांववाले इसे भीमकी छड़ी कहते हैं। यह भी कहा जाता है कि अपने १४ वर्षोंके वनवास-कालमें पाण्डव इस स्थानपर कुछ काल तक ठहरे थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह मानस्तम्भ था जो किसी जैन मन्दिरके सामने बना हुआ था। मन्दिर नष्ट हो गया किन्तु मानस्तम्भ अभीतक बना हुआ है। शीर्षपर स्थित जैन मूर्तियां तुगलक या मुगल-कालमें हटा दी गयीं या नष्ट कर दी गयीं। पहाड़ीके दक्षिण-पूर्वमें बढ़ोह ग्रामके पास गडरमल नामक एक विशाल मन्दिर खड़ा है। मन्दिरके चारों ओर चहारदीवारी है। चहारदीवारी द्वार बना हुआ है। यह चार स्तम्भोंपर आधारित मण्डपनुमा है। मुख्य मन्दिरके पास सात लघु मन्दिर हैं । ये सब एक हो घेरेमें हैं । घेरेका प्रवेशद्वार अत्यन्त अलंकृत और कलापूर्ण है। मन्दिरकी गठन सादो किन्तु प्रभावशाली है। मन्दिरके सिरदलपर चतुर्भुजी यक्षी-मूर्ति है। उसकी एक भुजा खण्डित है। उसकी तीन भुजाओंमें ढाल, तलवार और धनुष हैं। देवीका वाहन भंसा उसके निकट बैठा हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभकी शासन-सेविका ज्वालामालिनी है। मन्दिर में एक बड़ी स्त्री-मूर्ति है। उसके बगलमें बालक है। कुछ विद्वान्, जैसा कि प्रायः देखा जाता है, उसे मायादेवी और बुद्धकी मूर्ति मानते हैं जबकि यहाँ न बौद्ध मन्दिर है, न कोई बुद्ध-मूर्ति मिली है। वास्तवमें यह मूर्ति तीर्थकर माता और बालक तीर्थंकरको है। किन्तु यह मूर्ति तीन टुकड़ोंमें खण्डित है। - इस मन्दिरके सम्बन्धमें एक अद्भुत किंवदन्ती प्रचलित है। प्राचीन कालमें पहाड़ीपर एक गुफामें एक मुनि तपस्या किया करते थे। एक गड़रिया उन पहाड़ियोंपर भेड़ चराने जाता था।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy