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________________ मध्यप्रवेशके दिगम्बर जैन तीर्थ २३५ सिक्कोंको गुप्तवंशके तत्तत् नरेशोंका माना जाता है, किन्तु रामगुप्तके विदिशा, ऐरन, उज्जयिनी आदिमें मिले शिलालेख और सिक्कोंको गुप्तवंशी रामगुप्तके होनेमें सन्देह प्रकट किया जाता है। यद्यपि ये सिक्के गुप्तकालीन ब्राह्मी लिपि, बनावट, शैली, भारमान और सिक्कोंपर गरुड़ चिह्न सभीमें गुप्तवंशी नरेशोंके सिक्कोंके समान हैं । अस्तु ! विदिशा संग्रहालयमें दुर्जनपुरासे प्राप्त चन्द्रप्रभ प्रतिमा २ फुट १ इंच ऊंची है और पद्मासन मुद्रामें आसीन है। इसकी चरण-चौकीपर उत्कीर्ण लेख इस प्रकार है _ 'भगवतोऽहंतः चन्द्रप्रभस्य प्रतिमेयं कारिता महाराजाधिराज श्रीरामगुप्तेन उपदेशात् पाणिपात्रिकचन्द्रक्षमाचार्यक्षमाश्रमणप्रशिष्य आचार्य सर्पसेन क्षमण शिष्यस्य गोलक्यान्त्या सत्पुत्रस्य चेलूक्षमणस्य ।' अर्थात्, भगवान् चन्द्रप्रभ तीर्थंकरको यह प्रतिमा महाराजाधिराज श्री रामगुप्तने मुनि श्री चन्द्रक्षमाचार्य क्षमाश्रमणके प्रशिष्य एवं सर्पसेन क्षमणके शिष्य गोलक्यान्तिके पुत्र चेलू क्षमणके उपदेशसे प्रतिष्ठित करायो। ___ इस मूर्ति-लेखसे ज्ञात होता है कि इस मूर्तिकी प्रतिष्ठा महाराजाधिराज रामगुप्तने करायी थी। विदिशा संग्रहालयमें सुरक्षित पुष्पदन्त प्रतिमाकी पीठिकापर भी लगभग यही लेख अंकित है। तीसरी प्रतिमाके लेखमें केवल दो पंक्तियां अवशिष्ट हैं। ___चन्द्रप्रभ भगवान्की उक्त प्रतिमाके अतिरिक्त इस संग्रहालयमें स्थित अन्य कुछ जैन प्रतिमाओंका परिचय इस प्रकार है (१) धरणेन्द्र-पद्मावती, (२) नेमिनाथ ४ फुट २ इंच ऊँचे शिलाफलकमें। मुख्य मूर्तिके परिकरके रूपमें २ पद्मासन, २ खड्गासन जिन-मूर्तियाँ-समय १०वीं शताब्दी। (३) नेमिनाथ ४ फुट ५ इंच शिलाफलकमें। मुख्य मूर्तिके परिकरमें २ पद्मासन, २ खड्गासन, नीचे अम्बिका, समय १०वीं शताब्दी, (४) तीर्थंकर प्रतिमा ३ फुट १ इंच ऊँची। बायीं ओरका भाग खण्डित । परिकर में छत्र, गन्धर्व, चमरवाहक ( खण्डित ) दोनों ओर खड्गासन जिन-प्रतिमा । (५) आदिनाथसलेटी वर्ण, पद्मासन, २ फुट ३ इंच ऊंची, चमरवाहक खण्डित है। काल १३वीं शताब्दी। अमरावद ( रायसेन ) से प्राप्त। (६) जैन प्रतिमाका शीर्ष, १२वीं शताब्दी। तीन अलंकृत शिखर तथा ३ पद्मासन मूर्तियाँ । (७) गैलरीमें नेमिनाथकी २ फुट ३ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा । प्रतिमाकी केश-लटें लटक रही हैं। प्रतिमाके शिलाफलकपर दोनों पावों में २-२ खड्गासन मूर्तियाँ हैं। इनमें एक मूर्ति खण्डित है। (८) पार्श्वनाथकी ५ फुट ११ इंच ऊंची खड्गासन प्रतिमा । प्रतिमाका सिर नहीं है । फण थोड़ा खण्डित है । परिकरमें गज, गन्धर्व, छत्र, यक्ष-यक्षी हैं । (९) शान्तिनाथको ४ फुट ६ इंच उन्नत खड्गासन मूर्ति । सिर नहीं है। परिकरमें भामण्डल, छत्र, चमरेन्द्र और १० खड्गासन मूर्तियां हैं। (१०) नाग-नागी परस्पर लिपटे हुए हैं। सम्भवतः यह युगल धरणेन्द्र-पद्मावतीका प्रतीक है। इसके दोनों पार्यो में कायोत्सर्गासन प्रतिमाएं हैं। (११) १ फुट ४ इंच ऊँचे शिलाफलकमें यक्ष और यक्षी। शीर्ष भागपर मध्यमें पद्मासनस्थ जिन-प्रतिमा तथा दोनों पाश्ॉमें खड्गासन प्रतिमा। (१२) आदिनाथकी ४ इंच ऊंची प्रतिमा खण्डित है। यह उदयगिरिसे प्राप्त हुई है। (१३ ) तीर्थंकर प्रतिमा ८ फुट ७ इंच ऊँची खड्गासन । प्रतिष्ठा-काल वि. संवत् १२१४ । प्रतिमाको बाँह और चमरवाहक खण्डित हैं। (१४) ६ इंच ऊँची खड्गासन जिन-प्रतिमा। (१५) खड्गासन जिन-प्रतिमा। (१६) ६ फुट ६ इंच ऊँची पाश्वनाथकी खड्गासन प्रतिमा मध्यमें तथा उसके चारों ओर २३ तीर्थंकर मूर्तियां। इस चतुर्विंशति पट्टमें छत्र, गज, चमरवाहक परिकरमें हैं। (१७) ३ फुट ऊंची तीर्थंकर-मूर्ति है। दोनों ओर चमरवाहक हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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