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________________ भारतके दिगम्बरवन तीर्थ फल है। इसी प्रकार यक्ष भी चतुर्भुज है। उसके दायें ऊपरी हाथमें शक्ति, नीचेके हाथमें फल है। इस मूर्तिके बगलमें दायीं ओर एक आलेमें ३ इंच लम्बे चरण रखे हुए हैं। इसके बराबर चबतरा है। दूसरी ओर २ फट ६ इंच चौडा पाषाण चत्वर है जो सम्भवतः मनियोंके विश्रामके प्रयोजनके लिए बनाया गया होगा। ऐसी ही चत्वर-पट्टिका कक्ष १ में भी है। ____ उत्तरी कमरेकी एक भित्तिपर गुप्त-संवत् १०६ का अभिलेख अंकित है। यह मध्यप्रदेशमें अब तक उपलब्ध जैन अभिलेखोंमें सबसे प्राचीन है। यह अभिलेख ८ पंक्तियोंमें है और इस प्रकार पढ़ा गया है १. "नमः सिद्धेभ्यः श्री संयुतानां गुणतोयधीनां गुप्तान्वयानां नृपसत्तमानाम् (1) २. राज्ये कुलस्याभिविवर्धमाने षड्भिर्युते वर्षशतेऽथ मासे (।) १. सुकार्तिके बहुल दिनेऽथ पंचमे। ३. गुहामुखे स्फुटविकटोत्कटाभिमां (।) जितद्विषो जिनवर पार्श्वसंज्ञिकां जिनाकृतीं शमदमवान ४. चीकरत् (॥ ) २. आचार्य भद्रान्वयभूषणस्य शिष्यो ह्यसावार्यकुलोद्गतस्य (।) आचार्य गोश ५. म्मं मुनेः सुतस्तु पद्मावत (स्या ) श्वपतेभंटस्य ( ॥ ) ३. परैरजेयस्य रिपुघ्नमानिनः ___ ससंघ६. लस्येत्यभिविश्रुतो भुवि (1) स्वसंज्ञया शंकरनामशब्दितो विधानयुक्त यतिमा ७. गंमास्थितः (॥ ) ४. स उत्तराणां सदृशे कुरूणां उदग्दिशादेशवरे प्रसूतः (1) ८. क्षयाय कर्मारिगणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तदपाससर्ज (॥) ५. इसका आशय यह है-सिद्धोंको नमस्कार हो। वैभवसम्पन्न, गुणोंके समुद्र, गुप्त-वंशके राजाओंके राज्यमें संवत् १०६ के कार्तिक मासकी कृष्णपंचमीके दिन गुफाके द्वारपर विस्तृत सर्पफणसे युक्त शत्रुओंको जीतनेवाले जिनश्रेष्ठ पाश्वनाथकी मूर्ति शमदमयुक्त शंकरने बनवायी जो आचार्य भद्रके अन्वयका भूषण और आर्यकुलोत्पन्न आचार्य गोशमं मनिका शिष्य था। दूसरों द्वारा अजेय, शत्रुओंका विनाश करनेवाले अश्वपति संघिल भट और पद्मावतीका पुत्र था। शंकर इस नामसे विख्यात था और यतिमार्गमें स्थित था। वह उत्तरकुरुओंके सदृश उत्तर दिशाके श्रेष्ठ देशमें उत्पन्न हुआ था। उसके इस पावन कार्यमें जो पुण्य हुआ हो, वह सब कर्मरूपी समूहके क्षयके लिए हो। . . इस शिलालेखसे ज्ञात होता है कि गुप्त-नरेश कुमारगुप्तके शासनकालमें शंकर नामक किसी धर्मात्मा व्यक्तिने इस गुफामें भगवान् पार्श्वनाथकी मूर्ति प्रतिष्ठित करायी थी। ___ इस गुफासे निकलकर आगे जानेपर रेस्ट हाउस मिलता है। पहाड़ीपर मार्ग बना हुआ है जो प्राचीन जैन मन्दिर तक जाता है। यह मन्दिर गुफा नं. २० से लगभग ३ फाग दूर पड़ता है। इस मन्दिरमें गर्भगृह और अर्धमण्डप हैं । गर्भगृहका आकार ६ फुट १० इंच ४५ फुट १० इंच है। इसकी छत एक हो शिलासे निर्मित है। इसके कोर ऐरन तिगोवा और सांचीके समान गढ़े हुए हैं। इसकी पृष्ठभित्तिके सहारे वेदी है। पूर्वकालमें मध्यमें प्रतिमा रही होगी, किन्तु आजकल उसका स्थान रिक्त पड़ा हुआ है। बायीं ओर ४ फूट ६ इंच ऊंचे एक शिलाफलकपर भगवान् सुपार्श्वनाथकी खड्गासन मूर्ति है। इसके मस्तकपर पंच फणावलि है, जिसमें २ फण खण्डित हैं। इसके ऊपर छत्र हैं। इसके दोनों पाश्वों में आकाशमें उड़ते हुए गन्धर्व पुष्पमालाएं लिये हुए हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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