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उदयगिरि गुहामन्दिर
उदयगिरि पहाड़ी भेलसा ( विदिशा ) से ६ कि. मी. और सांचीसे ८ कि. मी. है। यह पहाड़ी उत्तर-पश्चिमसे दक्षिण-पूर्वकी ओर डेढ़ मील लम्बी और उत्तर-पूर्वके सिरेपर ३५० फुट ऊंची है। यहाँको चट्टानें नम, बलुआ पाषाणकी और परतदार हैं। यहांका पत्थर मकान बनानेके काम आता रहा है। पहाड़ीके उत्तर-पूर्वी भागमें पहाड़ काटकर गुफाएँ निर्मित की गयी हैं, जिनकी संख्या २० है। इनमें अधिकांश छोटे आकारकी हैं। प्रत्येक गुफाके बाहर छज्जा बना हुआ है। इनमें से दो गुफाओंमें चन्द्रगुप्त द्वितीयके अभिलेख विद्यमान हैं तथा तीसरी गुफामें गुप्त संवत् १०६ का एक अभिलेख है। अतः यह निश्चित रूपसे कहा जा सकता है कि मुख्य गुफाएँ गुप्त-कालकी हैं। इन गुफाओंमें नम्बर १ और २० की गुफाएँ जैनोंसे सम्बन्धित हैं।
__नम्बर २० की गुफा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह गुफा पहाड़ीके उत्तर-पश्चिमी सिरेपर अवस्थित है। सीढ़ियोंसे ऊपर चढ़कर गुफाके द्वारपर पहुंचते हैं। यह द्वार पश्चात्कालीन लगता है। फिर ८-१० सीढ़ियां उतरकर गुफामें पहुंचते हैं।
इस कक्षमें ४ फट २ इंच ऊंचे एक शिलाफलकपर भगवान पार्श्वनाथकी भरे वर्णकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। यह १०वीं शतीकी है जो अन्यत्रसे लाकर यहां विराजमान कर दी गयी है। इसकी नाक और कान खण्डित हैं। मस्तकके ऊपर सप्त फणावली है। उसके ऊपर छत्रत्रयी है। इसके ऊपर दुन्दुभिका और उसके भी शीर्षपर पद्मासन तीर्थंकर-प्रतिमाका अंकन है। इसके दोनों पार्यों में विभिन्न प्रकारके वाद्य-यन्त्र लिये हुए गन्धर्व-समाज है। इनसे अधोभागमें दोनों ओर दो-दो पद्मासन जिन-प्रतिमाएँ हैं। यहां शार्दूलका भी अंकन मिलता है। उनसे भी नीचे गज और माला लिये हुए देव हैं। उनसे नीचे चमरेन्द्र भगवान्को सेवामें सेवकके समान खडे हए हैं। चमरेन्द्रोंसे भी नीचेके भागमें यक्ष-यक्षी अंकित हैं। भगवानके वक्षपर श्रीवत्सका सुन्दर अंकन है। __इस कक्षसे आगे बढ़कर दूसरे कक्षमें आते हैं। यह कक्ष सामनेसे खुला हुआ है । अतः इसमें प्रकाश और स्वच्छ वायुका पर्याप्त संचार रहता है। इस कक्षमें घुसते ही दायीं ओरकी दीवारमें दो पद्मासनासीन पार्श्वनाथ भगवान् अंकित दिखाई देते हैं। किन्तु दीवारमें इनका अंकन अस्पष्टसा है। दोनोंके दोनों पावों में चमरेन्द्र खड़े हुए हैं। दोनों प्रतिमाओंके मध्यवर्ती पाषाण-स्तम्भपर विद्याधर अपने बायें हाथमें पूजाकी सामग्री लिये हुए दीख पड़ते हैं। दायें हाथमें वे क्या लिये हुए हैं, यह ज्ञात नहीं होता; बहुत अस्पष्ट है।
दूसरे भीतरी कक्षमें बायीं ओर घूमकर सामनेकी दीवारके बायें कोनेमें भगवान् आदिनाथकी ३ फुट ६ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा उत्कीर्ण है। भगवान्के मस्तकके पृष्ठभागमें भामण्डल बना हुआ है। ऊपरका भाग खण्डित है। वक्षपर श्रीवत्सका अंकन है। दोनों पावों में खण्डित चमरवाहक खड़े हुए हैं। उनसे नीचे हाथी कलश लिये हुए दिखाई पड़ते हैं। सिंहासनके सिंहोंके पाश्वमें यक्ष-यक्षी बने हुए हैं। यक्षी चतुर्भुजी है। वह ललितासनसे बैठी है। दायें ( ऊपरके ) हाथमें शक्ति, नीचेका हाथ वरद मुद्रामें, बायां हाथ (ऊपरका ) खण्डित, नीचेके हाथमें बिजौरा