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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ ২২৩ इस शिलालेखके अनुसार संवत् ९०९ में नरसिंहदेवका शासन चल रहा था। नरसिंहदेवके शासनकालसे पूर्वका एक शिलालेख संवत् ९०२ का त्रिपुरी (तेवर ) से प्राप्त हुआ है। यह उस समयका है, जब गयकर्णदेवका शासन चल रहा था और नरसिंहदेव उसका युवराज था। यह शिलालेख १४३ इंच लम्बा १३ इंच चौड़ा है। यह ज्येष्ठ सुदी १ बुधवार संवत् ९०२ का है। उपर्युक्त शिलालेखोंसे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि संवत् ९०२ में गयकर्णदेव शासन कर रहा था और संवत् ९०७ में उसके पुत्र नरसिंहका शासन चल रहा था। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि संवत् ९०२ और ९०७ के मध्यवर्ती कालमें गयकर्णकी मृत्यु हुई और नरसिंहदेव शासनारूढ़ हुआ। अब एकमात्र यह निर्णय करना शेष रह सकता है कि यहां किस संवत्से अभिप्राय है। यह निश्चित होनेपर इन राजाओंका राज्यकाल और बहोरीबन्दकी मूर्तिका प्रतिष्ठा-काल निश्चित करनेमें कोई कठिनाई नहीं होगी। ___गयकर्णकी रानीका नाम अल्हनदेवी था। वह मालवाके उदयादित्यकी पौत्री थी। उदयादित्यका शासन-काल अनुमानतः सन् १०५० से ११२० माना जाता है। यह रानो मालवनरेश लक्ष्मीधरकी भतीजी थी। लक्ष्मीधरने सन् ११०४ में त्रिपुरीपर विजय प्राप्त की। नरसिंहदेव चन्देल-नरेश मदनवर्माका समकालीन था। मदनवर्माका इतिहाससम्मत शासन-काल सन् १५२९ से ११६३ तक माना जाता है। इन समकालीन नरेशोंके शासन-कालके साथ कलचुरि नरेशोंके शिलालेखोंमें उल्लिखित कालकी संगति बैठ सकती है, बशर्ते इन कलचुरि नरेशोंके शिलालेखों या ताम्रलेखोंके संवतों पर समुचित ध्यान दें। इन नरेशोंके ये लेख संवत् ७९३, ८९६, ८९८, ९०२, ९०७, ९०९, ९२८ के हैं और वाराणसी, जबलपुर, तेवर, भेड़ाघाट, कुम्भी, भरहुत आदि स्थानोंपर प्राप्त हुए हैं । राजिमसे प्राप्त एक शिलालेखमें इस संवत्को समस्याका समुचित समाधान प्राप्त होता है । वह लेख इस प्रकार है ___ "कलचुरि संवत्सरे ८९६ माघ-मासे शुक्ल-पक्षे रथाष्टम्यां बुधदिने।" इस लेखमें संवत्सरका नाम कलचुरि संवत्सर दिया है। किसी-किसी शिलालेखमें इसको चेदि संवत्सर या चेदि संवत् भी कहा है। चेदि संवत्का प्रारम्भ इतिहासकारोंने ई. सन् २४९ में माना है। गयकर्णदेवके शासन-कालका चेदि संवत् ९०२ का जो शिलालेख उपलब्ध हुआ है, वह उसके शासन-कालके लगभग अन्तिम वर्षका या अन्तिम वर्षसे २-३ वर्ष पूर्वका है क्योंकि चेदि संवत् ९०७ का लेख गयकर्णके पुत्र नरसिंहका प्राप्त हुआ है। अतः गयकर्णका राज्य अनुमानतः ई. सं १११५ से ११५३ तक माना जा सकता है। . इस परिप्रेक्ष्यमें बहोरीबन्दके शान्तिनाथके मूर्तिलेखपर विचार किया जाये तो ज्ञात होगा कि इसमें जो संवत् दिया गया है वह चेदि संवत् नहीं है, अपितु शक संवत् है। इस मूर्तिलेखका वास्तविक संवत् कितना है, यह अभी तक अनिर्णीत है। प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता और इतिहासकार कनिंघम. भण्डारकर, मिराशी आदि विद्वान भी इस संख्याको सही नहीं पढ सके और न इसका निर्णय ही कर सके। उन्होंने इसे अपठनीय कहकर छोड़ दिया। किन्तु हमारा अनुमान है कि इस मूर्तिलेखमें जो शक संवत् दिया है, वह १०७० है। लेख घिस जानेके कारण यह अस्पष्ट हो गया है। कुछ विद्वान् इसे विक्रम सं. १०१० मानते हैं । किन्तु उपलब्ध शिलालेखोंसे इसकी संगति नहीं बैठती है। गयकर्णका अन्तिम शिलालेख चेदि सं. ९०२ ( ई. सं. ११५१) का उपलब्ध हुआ है और उसके पुत्र नरसिंहके नामका उल्लेख एक शिलालेखमें चेदि सं. ९०७ (११५६ ई. सं.)
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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