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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन ती २२५ जनश्रुतिके अनुसार किसी जमानेमें यहां एक बड़ा नगर बसा हुआ था। इसकी पुष्टि इस बातसे भी होती है कि यहाँ पहाड़ीपर प्राचीन कालकी टूटी ईंटें और मिट्टीके टूटे बरतन चारों: ओर बिखरे हुए हैं। प्रसिद्ध ग्रोक इतिहासकार टोलमी (पटोलमी) ने सम्भवतः इसी स्थानको: थोलवन लिखा है। इस ग्रीक उच्चारणको इंगलिशमें बोलवन कहा जा सकता है जो कि बहुल-: वनके अतिनिकट है । बहोरीबन्द ही बहुलवन हो सकता है। ___टौलमीने लिखा है कि यह परिहार नरेशोंके आधिपत्यमें था। पुरातत्त्व यह स्थान मध्यकालमें एक प्रसिद्ध सांस्कृतिक केन्द्र था, ऐसा प्रतीत होता है। यह तथा इसके आसपासका सम्पूर्ण क्षेत्र सांस्कृतिक और धार्मिक केन्द्र था। इस क्षेत्रमें भारतकी तीनों संस्कृतियां-जैन, ब्राह्मण और बौद्ध उन्नतिकी सद्भावपूर्ण स्पर्द्धा रत थीं। इस प्रदेशमें जो पुरातत्त्व सामग्री उपलब्ध हुई है, वह सम्राट अशोकके कालसे लेकर कलचुरि राजाओं तथा उसके बादके भी काल तककी है। बहोरीबन्दसे उत्तरकी ओर दो मील दूर तिगवा नामक गांव है। यहाँ अनेक देवालयोंके अवशेष बिखरे हुए हैं। केवल एक मन्दिर बचा हुआ खड़ा है। इसमें केवल गर्भगृह है और चार स्तम्भोंपर आधारित है। इसके आगे अर्घमण्डप है। इसकी शैली उदयगिरि और ऐरनके गुप्तकालीन देवालयोंसे मिलती-जुलती है। यहाँ ३६ मन्दिरोंकी नींव तो अब भी देखी जा सकती है। कहते हैं, रेलवेका कोई ठेकेदार इन मन्दिरके ईंट-पत्थर तक उखाड़कर ले गया। इस इलाकेमें रेलवेके ठेकेदारोंने ईंट-पत्थरोंके लोभमें कई प्राचीन भव्य मन्दिरोंको तुड़वा दिया। तिगवांका अर्थ तीन गांवोंका समूह है। इस समूहमें इस गांवके अतिरिक्त अंगोवा और देवरी थे। ये तीनों गाँव बहोरीबन्दके उपनगर थे, ऐसा कहा जाता है। ___ उस गांवसे तीन मील दूर कैमूर पहाड़ीकी शृंखलामें रूपनाथ है। यहाँ पहाड़पर सम्राट अशोकका शिलालेख है तथा पहाड़पर-से तीन जलधाराएँ गिरती हैं और उनके कारण तीन कुण्ड बन गये हैं। इनके नाम रामकुण्ड, लक्ष्मणकुण्ड और सीताकुण्ड हैं। महादेवका भी प्रसिद्ध मन्दिर है। किन्तु इस स्थानको ख्याति मिली है मौर्य सम्राट अशोकके अभिलिखित शासनादेशके शिलालेखके कारण। इसके निकट ककरहटा ग्राममें प्राङ्मौर्यकालीन सभ्यताके अवशेष प्राप्त हुए हैं। पुरातन सभ्यताके केन्द्रोंकी इस कड़ीमें बहोरीबन्द भी है जो जैन धर्म और जैन संस्कृतिका केन्द्र था। यहाँपर भगवान् शान्तिनाथको एक हजार वर्ष प्राचीन प्रतिमा है। यह १३ फुट ९ इंच ऊँची और ३ फुट १० इंच चौड़ी है। लगभग ३ फुट ८ इंच ऊंचे. सिंहासनपर यह विराजमान है। इसकी चरण-चौकीपर सात पंक्तियोंका एक महत्त्वपूर्ण लेख है । वह काफी घिस गया है। यह इस प्रकार पढ़ा जा सकता है____ "स्वस्ति संवत् १० फाल्गुन बदि ९ भौमे श्रीमद् गयकर्णदेव विजयराज्ये राष्ट्रकूटकुलोद्भवमहासामन्ताधिपति-श्रीमद्गोल्हणदेवस्य प्रवधमानस्य श्रीमद्गोल्लापूर्वाम्नाये वेल्लप्रभाटिकायामुरुकृताम्नाये तर्कतार्किकचूडामणिः श्रीमन्माधवनन्दिनानुगृहीतः साधुः श्रीसर्वधरः तस्य पुत्रः धर्मदानाध्ययने रतः महाभोजः । तेनेदं कारितं रम्यं शान्तिनाथस्य मन्दिरम् । . स्वलात्यमसंज्जक सूत्रधारः श्रेष्ठिनामा तेन वितानं च महाश्वेतं निर्मितमतिसुन्दरं श्रीचन्द्रकराचार्याम्नाये समस्तविद्याविनयानन्दितविद्वज्जनाः प्रतिष्ठाचार्याः श्रीमन्तः सुभद्राः चिरं जयन्तु।" ३-२९
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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