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________________ २२४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ शासन-देवियोंमें अम्बिकाकी दो मूर्तियां मिलती हैं। एकमें देवी अलंकारोंसे सज्जित है। वह बायें हाथसे एक बालकको पकड़े हुए है। दूसरी ओर दो खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियां हैं। एक दूसरी प्रतिमामें एक खण्डित मुखवाला सिंह है। एक देवी-मूर्ति है जिसके गलेमें रत्नहार है। सिरके पीछे भामण्डल है। गोदमें बालक है। देवीके शीर्ष भागपर तीर्थंकर-प्रतिमा बनी हुई है। परिकरमें आकाश-विहारी देव-देवियां हैं। ___थानेके पास 'खैरदय्या' का स्थान है । ढाई फुट ऊंचे एक शिलाफलकमें देवी बनी हुई है। उसके पृष्ठभागमें आम्रवृक्षका सुन्दर अंकन किया गया है। देवीके सिरके ऊपर आम्रवृक्षमें गुच्छक लटक रहे हैं। देवी ललितासनमें बैठी हुई है। उसकी गोदमें एक बालक है । मूर्तिके शीर्ष भागपर . भगवान् नेमिनाथकी प्रतिमा विराजमान है। उसके दोनों पाश्ों में पार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभकी खड्गासन प्रतिमाएँ हैं । यह देवी-मूर्ति निश्चय ही अम्बिकाकी है। इसे ही हिन्दू लोग 'खैरदय्या' या 'खैरमाई के नामसे पूजते हैं। इस प्रकार यहाँ और भी जैन पुरातत्त्व पर्याप्त परिमाणमें मिल सकता है। ज्ञात होता है कि १२वीं-१३वीं शताब्दीमें यह स्थान जैन संस्कृतिका केन्द्र था। सम्भवतः यहाँ उपलब्ध होनेवाला पुरातत्त्व इसी कालका है। धर्मशालाएं ___ यहां दो धर्मशालाएं हैं। बिजली और नल आदिकी सुविधा है। बड़ा नगर होनेसे सभी वस्तुएं सुविधापूर्वक मिल जाती हैं । वार्षिक मेला यहाँपर शरत्पूर्णिमा अर्थात् असोज शुक्ला पूर्णिमाको वार्षिक मेला होता है। उस दिन बड़ी मूर्तिका मस्तकाभिषेक होता है। व्यवस्था यहाँकी पंचायत प्रति तीसरे वर्ष दिगम्बर जैन प्रबन्धकारिणी सभाका चुनाव करती है। वही इन मन्दिरों और स्थानीय संस्थाओंकी समस्त व्यवस्था करती है। बहोरीबन्द स्थिति अतिशय क्षेत्र बहोरीबन्द मध्यप्रदेशके जबलपुर जिलान्तर्गत सिहोरा तहसीलमें स्थित है। इसका पोस्ट आफिस बहोरीबन्द तहसील सिहोरा है। यह सेण्ट्रल रेलवेके सिहोरा रोड स्टेशनसे २४ किलो मीटर है तथा सिहोरा रोडपर है। जबलपरसे यह ६४ कि. मी. दूर है। यह कैमूर पहाड़ीपर स्थित है। कैमूर पहाड़ी पूर्वकी ओर मैदानसे ५२ फुटके लगभग ऊंची है। कहीं-कहीं यह कुछ ऊंची और भी है। इसके चरणोंको सुहार नदी पखारती है । बहोरीबन्दका नामकरण सम्भवतः बहुत-से बाँधोंके कारण पड़ा है। इस पहाड़ीके चारों ओर ४५ बांध या जलाशय हैं, जिनमें वर्षाका पानी एकत्र हो जाता है। इनमें से कुछ जलाशय तो झील बन गये हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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