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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ मन्दिर-प्रांगणके बाहर एक शिलापर लोक जीवनका सरस चित्रफलक है। एक पुरुष दीपक हाथमें लिये खड़ा है, मध्यमें किसी स्त्रीका हाथ (पंजा) बना है। उसका पैर स्त्रीको जंघापर रखा है। स्त्री उसका पादमदन कर रही है। अधोभागमें एक घोड़ेपर धनुष चढ़ाये हुए एक पुरुष और स्त्री बैठे हुए हैं। घोड़ेके सामने तूणीर-सज्जित, धनुष-बाण धारण किये हुए और कवच पहने हुए पुरुष मार्ग रोके खड़ा है। यह शिलांकन 'सत-भगिनी' का कहलाता है। लगता है यह सती-चौरा है । इस प्रकारके शिलांकन इस प्रान्तमें कई स्थानोंपर देखनेमें आये । पठारी (विदिशा) में ऐसे अनेक सती-चौरा हैं। राजस्थान उत्तरप्रदेश आदि प्रान्तोंमें स्त्रियाँ दीवारोंपर गोबरसे ऐसे सती-चौरा बनाकर पूजती हैं। ____'कोनी' का सम्पूर्ण पुरातत्त्व ११वीं-१२वीं शताब्दीका प्रतीत होता है। सहस्रकूट चैत्यालय और नन्दीश्वर जिनालय भी इनके समकालीन अथवा कुछ उत्तरकालीन लगते हैं। यह सन्तोषको बात है कि यहांके मन्दिर अपने मूल रूपमें, समयके थपेड़ों और झंझावातोंके बावजूद अब भी सुरक्षित हैं। वे जीर्ण-शीर्ण हो गये हैं तथापि इस रूपमें भी तत्कालोन इतिहास और कलाको अपनेमें संजोये हुए, प्राणीमात्रको जीवनोद्धारके लिए आह्वान करते हुए, प्रकाश स्तम्भकी भांति खड़े हैं। अब उनका जीर्णोद्धार किया जा रहा है, जो अत्यन्त आवश्यक है जिससे अब उनके उस मौलिक स्वरूपकी सुरक्षा सम्भव प्रतीत होने लगी है। वार्षिक मेला यहाँ जनवरीमें प्रति वर्ष वार्षिक मेला होता है। प्रबन्ध समिति क्षेत्रकी व्यवस्थाके लिए एक प्रबन्ध समिति सन् १९४३ से 'श्री दिगम्बर जैन-अतिशय क्षेत्र कोनीजी जीर्णोद्धार समिति'के नामसे पाटनमें है जो मध्यप्रदेश सार्वजनिक न्यास अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयत है । इसका निर्वाचन वार्षिक मेलाके अवसरपर होता है। पनागर मार्ग और अवस्थिति श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पनागर मध्यप्रदेशके जबलपुर जिलेमें जबलपुरसे उत्तरको ओर १६ कि. मी. दूर अवस्थित है। यह सागर-जबलपुरके मध्यमें मध्य रेलवेके देवरी नामक स्टेशनसे एक मील दूर है तथा कटनी-जबलपुर रोडके किनारे है। यहां पोस्ट ऑफिस, थाना, हाईस्कूल आदि हैं । यह अच्छा कसबा है। प्रति शनिवारको यहां हाट लगती है। अतिशय क्षेत्र यह कई शताब्दियोंसे अतिशय क्षेत्रके रूपमें माना जा रहा है। पहले यहाँ भट्टारकोंकी गद्दी भी थी। कहते हैं, रात्रिमें एक भट्टारकजीको स्वप्न दिखाई दिया। स्वप्नमें उन्होंने जमीनमें दबी हुई एक प्रतिमा देखी। प्रातःकाल होते ही उन्होंने अपने स्वप्नकी चर्चा श्रावकोंसे की। तब सब जैन बन्धु भट्टारकजीके साथ गाजे-बाजे और अष्ट द्रव्य लेकर कछियानेकी बाड़ीमें (स्वप्नमें
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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