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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ शान्तिकी जैसी अभिलाषा और जिनेन्द्रभक्ति धार्मिकजनोंमें देखी जाती है, वैसी अनेक देवों में भी होती है, ऐसा माना जाता है । अत: यह अस्वाभाविक नहीं है । निश्चय ही इन तीर्थं भूमियों पर आकर विविध आधि-व्याधियोंसे व्याकुल प्राणियोंको शान्ति प्राप्त होती है । क्षेत्र-दर्शन २१६ क्षेत्रमें प्रवेश करनेके लिए विशाल प्रवेश-द्वार बना हुआ है और उसके ऊपर नौबतखाना है । क्षेत्र स्थित मन्दिरोंके चारों ओर अहाता बना हुआ है। यहाँ कुल नौ मन्दिर हैं जिनका विवरण इस प्रकार है मन्दिर क्रमांक १ – जीर्णोद्धार कार्यं होकर नवीन आकर्षक वेदीका निर्माण हुआ है। फरवरी १९७६ में वार्षिक मेलाके अवसरपर वेदी प्रतिष्ठा होकर श्री जिनबिम्ब विराजमान किये गये हैं । इस मन्दिर में तीन आधुनिक और दो प्राचीन प्रतिमाएँ विराजमान हैं । मूल नायक श्री नेमिनाथ भगवान्‌की लाल पाषाण ( मूँगा वर्ण ) की प्रतिमा भव्य एवं चित्ताकर्षक है । एक फुट आठ इंच ऊँचे एक शिलास्तम्भमें तीर्थंकर मूर्तियां हैं जो प्राचीन हैं । एक पद्मासन प्राचीन प्रतिमा है जो १ फुट ५ इंच ऊँची है। तीर्थंकरके दोनों पावोंमें चमरवाहक खड़े हुए हैं । चन्द्रप्रभ भगवान्की दो पद्मासन प्रतिमाएँ हैं, जिनमें एक वह अतिशय सम्पन्न प्रतिमा है, जिसपर एक बार पसीनेकी भाँति जलकण दिखाई दिये थे । मन्दिर क्रमांक २ – बहुत समयसे खाली पड़ा है, जीर्णोद्धारककी राह देख रहा है । मन्दिर क्रमांक ३ – नवीन आकर्षक वेदीका निर्माण सन् १९६९ में क्षेत्रकी वर्तमान प्रबन्ध समितिने कराया है, जिसमें मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथकी श्वेत वर्णं पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। मूर्ति लेखके अनुसार इस प्रतिमाकी प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १८८५ में हुई थी। इसके समवसरणमें मूलनायक के अतिरिक्त पाँच प्रतिमाएँ और विराजमान हैं जिनमें तीन प्रतिमाएँ प्राचीन हैं। इनमें एक फुट दो इंच ऊँचे एक पाषाण- फलकमें २० तीर्थंकर मूर्तियां बनी हुई है, जिनमें दो पद्मासन और शेष खड्गासन हैं। यह विदेह क्षेत्रके २० तीर्थंकरोंकी परिकल्पना है । २ फुट ५ इंच ऊँची एक शिखराकृतिमें एक पद्मासन और दो खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । २ फुट ५ इंच ऊँची अवगाहनाको एक खड्गासन तीर्थंकर मूर्ति है। इसके परिकरमें आकाश -विहारी, गन्धर्व और चमरवाहक दीख पड़ते हैं । मन्दिर क्रमांक ४ - खाली किया गया है। जीर्णोद्धारका कार्य हो रहा है । यहाँ भगवान् महावीर स्वामीकी विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठा कराकर विराजमान किये जानेकी योजना है जिसके लिए यहाँ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आयोजित होगी। जीर्णोद्धार श्री सिंघई रतनचन्द पाटन द्वारा हो रहा है । मन्दिर क्रमांक ५ – जीर्णोद्धार कार्य सम्पन्न होकर नवीन चित्ताकर्षक वेदीका निर्माण सम्पन्न हुआ है। अभी फरवरी १९७६ में आयोजित वार्षिक मेलामें वेदी प्रतिष्ठा होकर श्री जिनबिम्ब विराजमान किये गये हैं । मूलनायक के रूपमें सुन्दर काले पाषाणकी २ फुट ६ इंच ऊँची तीर्थंकर चौबीसी विराजमान है जिसमें मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथ हैं। इस वेदीमें विराजित तीनों प्रतिमाएं एक-से काले पाषाण की चुनी गयी हैं। चौबीसीके दोनों ओर काले पाषाणकी तीर्थंकर मूर्तियां विराजमान । वेदीमें दोनों ओर इस प्रकार विशाल दर्पण लगाये गये हैं, जिससे उनमें अनेक प्रतिमाएँ दिखाई देती हैं ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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