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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं कोनीजी २१५. मार्ग श्री कोनीजी क्षेत्र 'जबलपुर - पाटन - दमोह मागं' पर कैमूर पर्वतमालाकी तलहटी में हिरन : सरिता. तटपर अवस्थित है। जबलपुरसे पाटन बत्तीस किलोमीटर है और पाटनसे कोनीजी पाँच किलोमीटर है | मुख्य सड़कसे 'बासन' ग्राम तक जाकर बासन ग्रामसे दायीं ओरको कोनीजी तक पक्की सड़क जाती है । मध्य रेलवे के जबलपुर स्टेशनसे तथा दमोह स्टेशनसे दिन-भर मोटरें मिलती हैं । कोनीजीमें नौ शिखरबन्द दिगम्बर जैन मन्दिर हैं । प्राचीन क्षेत्र यह क्षेत्र पर्याप्त प्राचीन लगता है । यहाँके कुछ मन्दिरों और मूर्तियों पर १०वीं - ११वीं शताब्दीकी कलचुरिकालीन कलाका प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है । कलचुरि शैलीमें मन्दिर के बहिर्भाग में अलंकरण की प्रधानता रहती थी, द्वार अलंकृत रहते थे । शिखरकी ऊंचाई भी अधिक रहती थी । पंचायतन शैलीको इसी कालमें पूर्णता प्राप्त हुई । ये विशेषताएँ यहाँके कुछ मन्दिरोंमें भी देखनेको मिलती हैं । यहाँकी प्रतिमाओं में विघ्नहर पार्श्वनाथकी प्रतिमा अत्यन्त भव्य और प्रभावोत्पादक है । यहाँकी प्रतिमाएँ दोनों ही ध्यानासनोंमें मिलती हैं - पद्मासन एवं कायोत्सर्गासन । इन प्रतिमाओंकी चरण-चौकीपर अभिलेख भी उत्कीर्ण हैं | उनके अनुसार यहाँ कुछ प्रतिमाएँ १०वीं - ११वीं शताब्दीकी भी उपलब्ध हैं । यहाँ की विशेष उल्लेखनीय रचनाओं में सहस्रकूट जिनालय तथा नन्दीश्वर द्वीपकी रचना है । ये रचनाएँ अपनी विशिष्ट शैलीके कारण अत्यन्त कलापूर्णं बन पड़ी हैं । कलाकारके कुशल हाथों के कौशलकी छाप इनकी प्रत्येक मूर्तिपर स्पष्ट अंकित है । ऐसी मनोहर रचना कम ही मन्दिरोंमें देखने को मिलेगी । । बहुत वर्षों तक यह तीर्थं अत्यन्त उपेक्षित दशामें पड़ा रहा। उस कालमें वन्य पशु-पक्षियोंने मन्दिरोंको अपना सुरक्षित आवास बना लिया था । जंगली लताओं, झाड़ियों और इन पशुपक्षियोंने मन्दिरों को दुर्गम और वीरान बना दिया था मन्दिरोंकी छतें और भित्तियाँ मरम्मत के अभावमें जीर्ण-शीर्णं हो गयी थीं । जहाँ-तहाँसे वर्षाका पानी अपना मागं बना लेता था, किन्तु इधर कुछ वर्षोंसे 'पाटन जैन समाज' का ध्यान इसकी ओर आकृष्ट हुआ है और अब यहाँके मन्दिरोंकी दशा सन्तोषजनक रूपसे सुधरती जा रही है । अतिशय क्षेत्र इस क्षेत्रकी ख्याति एक अतिशय क्षेत्रके रूपमें है । यहाँका 'गर्भमन्दिर' देवी चमत्कारोंके लिए विशेष प्रसिद्ध है । शिशिर ऋतुमें भी इस मन्दिर में प्रवेश करनेपर शीतका अनुभव नहीं होता । विघ्नहर पार्श्वनाथ मन्दिरमें जैन और जैनेतर जनता मनौती मनाने आती है और उनके विश्वासके अनुरूप उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं । यहाँके नन्दीश्वर मन्दिर के प्रति जैनाजैन जनताको अत्यधिक श्रद्धा है। यह भी जनश्रुति है कि इस मन्दिरमें अष्टाह्निका पर्वमें देवगण आकर गीत-नृत्यपूर्वक पूजन किया करते थे और मन्दिर में 'केशर' की वर्षा करते थे ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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