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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ जैन पुरातत्व कुछ लोगोंको धारणा है कि यह महाभारत कालका वह विराटनगर है जो विराट-नरेशकी राजधानी था और जहां पांचों पाण्डव द्रौपदीके साथ अपने अज्ञातवासके समय रहे थे। इसी धारणाके कारण जनताने यहाँ पाण्डवों और द्रौपदीकी मूर्तियाँ बनवायी हैं। यहाँ द्रौपदीके नामपर एक मन्दिर भी बना हुआ है। यह भ्रमित धारणा नामसाम्यके कारण हुई है। महाभारतमें जिस विराटनगरका वर्णन आया है, वह मत्स्यदेशमें था। मत्स्यदेशमें वर्तमान अलवर, भरतपुर जिले तथा जयपुरके कुछ भाग सम्मिलित थे । पाण्डवोंने जिस विराटनगरमें अज्ञातवास किया था, वह विराटनगर जयपुरसे उत्तरकी ओर ६४ कि. मी. और दिल्लीसे दक्षिणकी ओर १६८ कि. मी. है। यह नगर इन्द्रप्रस्थके निकट था। पाण्डवोंने अपने अज्ञातवासके लिए इस नगरको इसलिए पसन्द किया था कि यह इन्द्रप्रस्थके निकट था। यहां रहकर वे अपने शत्रु दुर्योधनकी गतिविधियोंपर नजर रख सकते थे।' यहाँको पाण्डु पहाड़ीपर मीलों तक खण्डहर हैं। पहाड़ीपर प्राकृतिक गुफाएं हैं। इनमें एक गुफाका नाम भीमगुफा है। इस पहाड़ीपर सम्राट अशोकका एक शिलालेख भी उपलब्ध हुआ है। यहाँ मौर्य और मित्रवंशी राजाओंके कालके सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। कुछ लोग दिनाजपुरको विराटनगर मानते हैं । उसके निकट कान्तनगरमें विराट-नरेशका उत्तर गोगृह और मिदनापुरमें दक्षिण गोगृह मानते हैं । यह मान्यता भी आधारहीन है। बरहटा गांवके बाहर दो मोल लम्बे-चौड़े भू-भागमें प्राचीन सामग्री बिखरी हुई है। यहाँके मालगुजार ठाकुर सबलसिंहने यहाँ कुछ समय पूर्व खुदाई करायी थी। फलतः यहाँ अनेक प्राचीन मूर्तियाँ निकली थीं। ये मूर्तियाँ उनके निजी मकानमें अभी भी सुरक्षित हैं । यहाँ एक अर्ध-भग्न प्राचीन जैन मन्दिर है। मन्दिरका हॉल ३५ फुट लम्बा और २५ फुट चौड़ा आज भी टूटी-फूटी अवस्थामें खड़ा हुआ है। इसकी छत गिर चुकी है। यहां कुल ८ तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । इनकी अवगाहना प्रायः ५-६ फुट है। ये पद्मासन मुद्रामें हैं और श्याम वर्ण देशी पाषाणकी बनी हुई हैं। यहाँपर जो पांच तीर्थकर मूर्तियाँ हैं उन्हें जैनेतर लोग पाँच पाण्डव भगवान् कहकर पूजते हैं। 'पांच-पाण्डव' के नामसे यहाँ प्रतिवर्ष मेला लगता है। मन्दिरके दरवाजेपर स्थित छह फुट ऊंची पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा बहुत मनोज्ञ है। यहाँपर पाषाणका एक तीन फुटका वृत्ताकार धर्मचक्र रखा हुआ है। ___ मन्दिरके निकट एक तालाब और कुआँ बना हुआ है। अब तक मन्दिर और मूर्तियाँ उपेक्षित दशामें पड़ी हुई हैं। ____इस स्थानके समीप ही तालाबके किनारे जो द्रौपदी-मन्दिर है वहां भी तीर्थंकर प्रतिमाएं हैं। इसके आगेकी दो मीलकी लम्बी-चौड़ी जमीन बहुत मजबूत है। जब भी वहां कोई खुदाई होती है तो प्राचीन जैन-बौद्ध मतियां निकलती हैं। यहाँको बहत-सी सामग्री तो देशके बाहर चलो गयी है। यहाँको कुछ जैन मूर्तियां नरसिंहपुरके सरकारी बागमें सुरक्षित रखी हुई हैं। १. महाभारत, विराटपर्व, सभापर्व ३० ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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