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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ सम्प्रदायके अपने नाम हैं। पाशुपतोंको मत्तमयूर शाखा वाममार्गी शाखा है। इस सम्प्रदायका प्रभाव यहां पायी जानेवाली अश्लील मूर्तियोंके रूपमें स्पष्ट परिलक्षित होता है। एक ऐसी मूर्ति यहां प्राप्त हुई है, जिसमें कृष्ण बांसुरी बजा रहे हैं और उन्हें नग्न गोपियां घेरे हुई हैं। खजुराहोके मन्दिरोंमें पायी जानेवाली अश्लील मूर्तियोंके समान यहाँ भी मिथुन-मूर्तियां प्रचुर संख्यामें प्राप्त
जैन धर्म
त्रिपुरीमें अब तक जो पुरातन कलाकृतियां अथवा अवशेष उपलब्ध हुए हैं, उनसे यह प्रतीत होता है कि उस कालमें जैन कला विकासके उच्च शिखरपर थी। मध्ययुग जैन कलाका स्वर्णकाल कहा जा सकता है। इस कालमें मध्यप्रदेशमें, विशेषतः त्रिपुरीके आसपास जैन शिल्पको नया रूप, नया आयाम और वैविध्य प्राप्त हुआ। इस कालमें अनेक स्थानोंपर जैन तीर्थ बने। वहाँ अनेक मन्दिर और मूर्तियां निर्मित हुई। यहां तक कि एक-एक तीर्थपर १०-२० मन्दिरोंसे लेकर ७०-८० मन्दिर तक बन गये । केवल संख्याकी दृष्टिसे ही नहीं, कला-सौष्ठवको दृष्टिसे भी इन मन्दिरों और मूर्तियोंका महत्त्व असाधारण है।
यद्यपि कलचुरियोंका आदिपुरुष बोधराज जैन धर्मानुयायी था, किन्तु उसके कालमें त्रिपुरीमें कलचुरियोंका अस्तित्व प्रमाणित नहीं होता। जैन कला सदा स्वतन्त्र रही है। उसे कभी राजाश्रय नहीं मिला, वह सर्वसाधारणको भक्ति और सद्भावनाके बलपर ही विकसित हुई है।
त्रिपुरीमें जो जैन कला-सामग्री प्राप्त हुई है, उसमें तीर्थंकरों और यक्ष-यक्षियोंकी मूर्तियाँ शामिल हैं । अधिकांश जैन कलावशेष सड़कों, पुलों, निजी मकानों और मन्दिरोंमें लगा दिये गये हैं, कुछ कलाकृतियां रायपुर आदिके संग्रहालयोंमें पहुंचा दी गयी हैं।
वर्तमान तेवर गाँवके पूर्व में बालसागर नामक एक विशाल सरोवर है। उसके चारों ओर पक्की चहारदीवारी बनी हुई है। सरोवरके मध्यमें एक टोलेपर एक शैव मन्दिर बना हुआ है। उसमें पुत्रसहित एक मातृ-मूर्ति नेमिनाथ तीर्थकरकी यक्षिणी अम्बिका देवीकी है। उसकी चरणचौकीपर लिखा है-'मानादित्यकी पत्नी सोम तुम्हें रोज प्रणाम करती है।' इस मन्दिरमें दीवारोंके बाह्य भागमें जैन देवी चक्रेश्वरीकी कई मूर्तियां लगी हैं।
यहाँकी एक जैन प्रतिमा हनुमान् ताल ( जबलपुर ) के दिगम्बर जैन पार्श्वनाथ बड़ा मन्दिरमें विराजमान है। इस प्रतिमाको हम कलचुरिकालीन कलाकी प्रतिनिधि रचना अथवा कलाकी उत्कृष्ट कृतियोंमें से एक कृति कह सकते हैं। यह प्रतिमा ५ फुट ऊंचे और ३|फुट चौड़े एक शिलाफलकपर बनी हुई है। प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें है। दृष्टि नासाग्र है। केश कुंचित हैं। पिंगला, अहरवला, ...., ...., मासवर्धनी, ..., रिढालीदेवी, गणेश, छत्रसंवरा, अजिता, चण्डिका, ...., गहनी, ब्रह्माणी, माहेश्वरी, टंकारी, रूपिणी, पग्रहंसा, हंसिनी, ...., ...., ..., ....ईश्वरी, ठाणी, इन्द्रजाली, तपनी, ...., गांगिणी, ऐंगिणी, उत्ताला, णालिनी, लम्पटा, डेड्डरी, ऋतसमादा, गान्धारी, जाह्नवी, डाकिनी, बन्धणी, दर्पहारी, ...., रंगिणी, जहा, टीक्किणी, घण्टाली, ढड्ढरी, ... वैष्णवी, भीषणी, सतनुसम्बरा, क्षत्रर्मिणी, ..., फणेन्द्री, वीरेन्द्री और ठाकिणी।
___ इन मूर्तियोंपर १०वीं शताब्दीकी लिपिमें देवियोंके नाम खुदे हुए हैं । यहाँ एक मूर्ति कुषाणकालकी है और लाल पाषाणकी मूर्तियाँ ८वीं शताब्दीकी है। इससे ज्ञात होता है कि यहाँ १०वीं शताब्दीसे पूर्व भी मन्दिर थे।