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________________ २०८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ मन्दिर नं. ९-भगवान् शान्तिनाथको यह पद्मासन मूर्ति मटमैले रंगको है। पाषाणपर कुछ काली धारियां हैं । वीर संवत् २४८३ में प्रतिष्ठित हुई है। चरण-चौकीपर अष्ट मंगल द्रव्य बने हुए हैं। मूर्तिके आगे चरण विराजमान हैं। __ मन्दिर नं. १०-एक गुफामें मुनिराज सुकोशल स्वामीकी तपस्याका दृश्य उत्कीर्ण है। मुनिराज सुकोशल आत्मध्यानमें लीन हैं । एक सिंहनी और उसके शावक मुनिराजका सानन्द भक्षण कर रहे हैं। मन्दिर नं. ११--श्वेत पाषाणको मल्लिनाथ भगवान्की यह प्रतिमा पद्मासन है। वीर संवत् २४८३ में इसकी प्रतिष्ठा हुई। मन्दिर नं. १२-कमलासनपर भगवान् पाश्र्वनाथकी १ फुट १० इंच ऊंची मूर्ति पद्मासनमें विराजमान है । वीर संवत् २४८४ में इसकी प्रतिष्ठा हुई। इसके आगे भगवान् चन्द्रप्रभकी संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित मूर्ति विराजमान है। इस मन्दिरके बगलसे नीचे धर्मशालाके लिए पगडण्डी भी जाती है। उक्त प्रकारसे पर्वतपर १२ मन्दिर और २४ मन्दरियां बनी हुई हैं, अर्थात् पहाड़ीपर कुल ३६ (१२+ २४) मन्दिर हैं। मन्दिर नं. १३–यह मन्दिर धर्मशालाके निकट मैदान में है। यह महावीर मन्दिर कहलाता है। एक बड़े हॉलमें चबूतरानुमा वेदीमें भगवान् महावीरकी श्वेत मकरानेकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी अवगाहना ४ फुट है। इसकी प्रतिष्ठा वीर संवत २४८४ में हई। मन्दिर भव्य एवं विशाल है। मूलनायकके आगे दो सिंहासनोंमें एक पाषाणको तथा ५ धातुकी प्रतिमाएं विराजमान हैं। मन्दिरके आगे संगमरमरका विशाल मानस्तम्भ है जिसके शीर्षपर चार तीर्थकर-प्रतिमाएं विराजमान हैं। क्षेत्रस्थित संस्थाएं क्षेत्रपर पूज्य वीजीकी प्रेरणासे स्थापित वर्णी जैन गुरुकुल और छात्रावास हैं। विद्यालय और छात्रावासके भवन गुरुकुलके अपने हैं । यहाँ निकट ही मेडिकल कालेज है। इस दृष्टिसे गुरुकुलके महत्त्व और उपयोगिताका सहज ही मूल्यांकन किया जा सकता है। धर्मशालाएँ क्षेत्रस्थित धर्मशालाओं में ६० कमरे हैं। धर्मशालाओंमें प्रकाशके लिए बिजलीको व्यवस्था है । जलके लिए कई कुएं और हैण्डपम्प हैं। क्षेत्रपर आवश्यक वस्तुओंको व्यवस्था है, जैसे बरतन, बिस्तर आदि । जबलपुर, भेड़ाघाट आदिके लिए बस और टैम्पो यहाँ बराबर मिलते हैं। व्यवस्था यहाँको व्यवस्थाके लिए 'पिसनहारी मढ़िया ट्रस्ट' नामक एक ट्रस्ट है । इसके पदाधिकारियों और संदस्योंका चुनाव जबलपुरके जैन समाज द्वारा होता है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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