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________________ २०६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ समय तक रहे। इन दोनों आध्यात्मिक सन्तोंके पुण्य प्रसाद और प्रभावसे इस स्थानका द्रुत गतिसे विकास हुआ, क्षेत्रके रूपमें इसकी ख्याति हुई और अनेक नवीन मन्दिर-मन्दरियोंका निर्माण करनेकी प्रेरणा जगी। - यहाँका एक चामत्कारिक जलकुण्ड अवश्य उल्लेखनीय है। यहां एक शुष्क गड्ढा था। पूज्य वर्णीजीकी कृपासे वह जलपूर्ण हो गया और एक जलकुण्ड बन गया। वह जलकुण्ड अब भी विद्यमान है । जनताने उसका नाम वर्णी-कुण्ड रख लिया है। क्षेत्र-वर्शन जबलपुर-नागपुर सड़क किनारे एक विशाल अहातेके मध्यमें क्षेत्रका कार्यालय, धर्मशाला तथा क्षेत्रस्थित संस्थाओंके भवन अवस्थित हैं। यहाँ एक जिनालय और मानस्तम्भ भी है । इसके पृष्ठभागमें पहाड़ी है, जिसपर मन्दिरोंकी श्वेत पंक्ति, उन्नत शिखर और उनके ऊपर लहराती ध्वजाएं बरबस ध्यान आकर्षित कर लेती हैं। - कार्यालयसे कुछ दूर चलनेपर पहाड़ीकी चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है। पहाड़ीपर चढ़नेके लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। चढ़ाई सुगम है। - मन्दिर नं. १-एक छोटे-से कमरेमें वेदीपर भगवान् पद्मप्रभकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। पादपीठपर कमलका चिह्न अंकित है। प्रतिष्ठा-संवत् वीर नि. संवत् २४८३ है । इस मन्दिरके पास एक कमरा खाली है। मन्दिर नं. २-इससे कुछ सीढ़ियां चढ़नेपर पाश्वनाथ मन्दिर मिलता है। यह मूर्ति कृष्ण पाषाणकी है और पद्मासन है। इसको अवगाहना २ फुट ७ इंच है। यह वीर संवत् २४८३ में प्रतिष्ठित हुई। इस चबूतरानुमा वेदीपर २ पाषाणकी और ४ धातु-प्रतिमाएं विराजमान हैं । यहाँ भगवान् पार्श्वनाथके वीर सं. २४८३ में प्रतिष्ठित चरण-चिह्न भी विराजमान हैं। मन्दिर नं. ३-भगवान्को कृष्ण पाषाणको पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी माप ४ फुट २ इंच है और वीर सं. २४८३ में प्रतिष्ठित हुई है। इसके आगे चरण-चिह्न बने हुए हैं। काँचकी एक छोटी आलमारीमें धातुको ११ छोटी-छोटी मूर्तियां रखी हुई हैं। ___ मन्दिर नं. ४-भगवान् महावीरकी प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें ध्यानावस्थित है। श्वेत पाषाणको यह प्रतिमा १ फुट ३ इंच ऊंची है और विक्रम संवत् २०२ में प्रतिष्ठित हुई है। इसके आगे एक धातु-प्रतिमा विराजमान है। ___इस क्षेत्रपर प्रत्येक तीर्थंकरको एक मन्दरिया बनी हुई है। इस प्रकार २४ तीर्थंकरोंकी २४ टोंकें बनी हुई हैं, किन्तु ये सब न तो एक ही स्थानपर हैं और न मधुवन या पपौराके बाहुबली मन्दिरके समान किसी एक मूर्तिको केन्द्र बनाकर गोलाकार बनी हुई हैं। यहाँ ये २४ मन्दिरियां कुछ गुच्छकोंमें बंटी हुई हैं। इनकी सभी मूर्तियां आकारमें १ फुट ९ इंच ऊंची, पद्मासन हैं और वीर संवत् २४८४ में इनकी प्रतिष्ठा हुई है। इन मूर्तियोंका वर्ण तीर्थंकरोंके मूल वर्णानुसार ही है। अतः सब मूर्तियोंमें समानता होनेपर भी वर्णमें कहीं-कहीं वैषम्य है। मन्दरियाँ जहाँ जैसे हैं,उनका वर्णन वैसे ही किया जायेगा। साथ ही मन्दरियोंकी क्रम-संख्या मन्दिरोंसे पृथक् रखी जायेगी। - मन्दरिया नं. १ ऋषभदेव प्रतिमा, स्वर्ण वर्ण । अजितनाथ ॥ ३ सम्भवनाथ ॥
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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