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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ समय तक रहे। इन दोनों आध्यात्मिक सन्तोंके पुण्य प्रसाद और प्रभावसे इस स्थानका द्रुत गतिसे विकास हुआ, क्षेत्रके रूपमें इसकी ख्याति हुई और अनेक नवीन मन्दिर-मन्दरियोंका निर्माण करनेकी प्रेरणा जगी। - यहाँका एक चामत्कारिक जलकुण्ड अवश्य उल्लेखनीय है। यहां एक शुष्क गड्ढा था। पूज्य वर्णीजीकी कृपासे वह जलपूर्ण हो गया और एक जलकुण्ड बन गया। वह जलकुण्ड अब भी विद्यमान है । जनताने उसका नाम वर्णी-कुण्ड रख लिया है। क्षेत्र-वर्शन
जबलपुर-नागपुर सड़क किनारे एक विशाल अहातेके मध्यमें क्षेत्रका कार्यालय, धर्मशाला तथा क्षेत्रस्थित संस्थाओंके भवन अवस्थित हैं। यहाँ एक जिनालय और मानस्तम्भ भी है । इसके पृष्ठभागमें पहाड़ी है, जिसपर मन्दिरोंकी श्वेत पंक्ति, उन्नत शिखर और उनके ऊपर लहराती ध्वजाएं बरबस ध्यान आकर्षित कर लेती हैं। - कार्यालयसे कुछ दूर चलनेपर पहाड़ीकी चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है। पहाड़ीपर चढ़नेके लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। चढ़ाई सुगम है।
- मन्दिर नं. १-एक छोटे-से कमरेमें वेदीपर भगवान् पद्मप्रभकी श्वेतवर्ण पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। पादपीठपर कमलका चिह्न अंकित है। प्रतिष्ठा-संवत् वीर नि. संवत् २४८३ है । इस मन्दिरके पास एक कमरा खाली है।
मन्दिर नं. २-इससे कुछ सीढ़ियां चढ़नेपर पाश्वनाथ मन्दिर मिलता है। यह मूर्ति कृष्ण पाषाणकी है और पद्मासन है। इसको अवगाहना २ फुट ७ इंच है। यह वीर संवत् २४८३ में प्रतिष्ठित हुई। इस चबूतरानुमा वेदीपर २ पाषाणकी और ४ धातु-प्रतिमाएं विराजमान हैं । यहाँ भगवान् पार्श्वनाथके वीर सं. २४८३ में प्रतिष्ठित चरण-चिह्न भी विराजमान हैं।
मन्दिर नं. ३-भगवान्को कृष्ण पाषाणको पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसकी माप ४ फुट २ इंच है और वीर सं. २४८३ में प्रतिष्ठित हुई है। इसके आगे चरण-चिह्न बने हुए हैं। काँचकी एक छोटी आलमारीमें धातुको ११ छोटी-छोटी मूर्तियां रखी हुई हैं।
___ मन्दिर नं. ४-भगवान् महावीरकी प्रतिमा पद्मासन मुद्रामें ध्यानावस्थित है। श्वेत पाषाणको यह प्रतिमा १ फुट ३ इंच ऊंची है और विक्रम संवत् २०२ में प्रतिष्ठित हुई है। इसके आगे एक धातु-प्रतिमा विराजमान है। ___इस क्षेत्रपर प्रत्येक तीर्थंकरको एक मन्दरिया बनी हुई है। इस प्रकार २४ तीर्थंकरोंकी २४ टोंकें बनी हुई हैं, किन्तु ये सब न तो एक ही स्थानपर हैं और न मधुवन या पपौराके बाहुबली मन्दिरके समान किसी एक मूर्तिको केन्द्र बनाकर गोलाकार बनी हुई हैं। यहाँ ये २४ मन्दिरियां कुछ गुच्छकोंमें बंटी हुई हैं। इनकी सभी मूर्तियां आकारमें १ फुट ९ इंच ऊंची, पद्मासन हैं और वीर संवत् २४८४ में इनकी प्रतिष्ठा हुई है। इन मूर्तियोंका वर्ण तीर्थंकरोंके मूल वर्णानुसार ही है। अतः सब मूर्तियोंमें समानता होनेपर भी वर्णमें कहीं-कहीं वैषम्य है। मन्दरियाँ जहाँ जैसे हैं,उनका वर्णन वैसे ही किया जायेगा। साथ ही मन्दरियोंकी क्रम-संख्या मन्दिरोंसे पृथक् रखी जायेगी। - मन्दरिया नं. १ ऋषभदेव प्रतिमा, स्वर्ण वर्ण ।
अजितनाथ
॥ ३ सम्भवनाथ ॥