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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
देवकी श्वेत वर्णकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके अतिरिक्त इसमें ३ पाषाणकी तथा कुछ धातु की मूर्तियां विराजमान हैं ।
५९. समवसरण मन्दिर— यह गोलाकार नवीन मन्दिर बहुत भव्य बन रहा है । इसके मध्यमें गन्धकुटी है, जिसमें चार कृष्णवर्णं मूर्तियां विराजमान हैं। इनकी अवगाहना २ फुट है । चारों ओर २४ तीर्थंकरोंकी टोंकें बनायी गयी हैं। चारों दिशाओंमें चार मानस्तम्भ हैं । समवसरणकी रचना अत्यन्त आकर्षक और भव्य है । द्वादश सभाओंकी रचना भी शास्त्रोक्त पद्धतिसे की गयी है । वस्तुतः समवसरण मन्दिर, मन्दिरोंकी मालामें हीरक-मणि प्रतीत होता है।
६०. महावीर मन्दिर - धर्मशालाओंके मध्य में और क्षेत्रके मुख्य द्वारके निकट यह मन्दिर अवस्थित है । इसमें भगवान् महावीरकी पद्मासनमें विराजमान श्वेत वर्णकी मूलनायक प्रतिमा है । भगवान् के समवसरणमें १२ धातुकी ओर ६ पाषाणकी प्रतिमाएँ हैं ।
बड़े वाबाकी विशाल प्रतिमा, कलाकी दृष्टिसे देखनेपर, १०-११वीं शताब्दी की प्रतीत होती है । उसी मन्दिरके गर्भगृहमें बादमें लगायी गयी तीर्थंकर प्रतिमाएँ ११वीं - १२वीं शताब्दीकी हैं ।
ऊपर वर्णित प्रतिमा-लेखोंसे हम पाते हैं कि विक्रम संवत् १६११ (१५५४ ईस्वी) के आसपास यह स्थान तीर्थक्षेत्र के रूपमें विख्यात था और तबसे यहाँ मन्दिर और वेदीका निर्माण और मूर्ति प्रतिष्ठा समय-समय पर होती रही है। मन्दिर क्रमांक ४, ९, १६, १८, २२, २८, ३१ और ३६ में संवत् १५४८ की जो प्रतिमाएं हैं, वे वैशाख सुदी ३ सं. १५४८ को जीवराज पापड़ीवाल 'द्वारा प्रतिष्ठित यहाँ लाकर रखी गयी हैं ।
मानस्तम्भ
महावीर मन्दिरके सामने, धर्मशालाओंके मध्य प्रांगण में मानस्तम्भ खड़ा है, मानो क्षेत्रका समुन्नत गौरव ही मस्तक उठाकर खड़ा हो। यह श्वेत मकराना पाषाणका बना हुआ है। इसकी शीर्ष वेदीपर ४ पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियां विराजमान हैं । गजरथ महोत्सवपूर्वक इसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा फरवरी सन् १९७५ में हो चुकी है, जिसमें लाखों व्यक्ति सम्मिलित हुए थे ।
क्षेत्रपर स्थित संस्थाएं
क्षेत्रको एकान्त और शान्ति ध्यान, अध्ययन और साधनाके लिए अत्यन्त उपयुक्त है । इसी दृष्टिसे वीर संवत् २४४४ में ब्र. गोकुलदासजीने समाजके सहयोगसे क्षेत्रपर एक उदासीनाश्रमकी स्थापना की थी । आश्रममें कुछ उदासीन त्यागी व्रती रहते हैं और ध्यानाध्ययनमें काल-यापन करते हैं ।
यहाँ एक सरस्वती भण्डार भी है ।
धर्मशालाएँ
क्षेत्रपर कुल ११ धर्मंशालाएँ हैं । सब मिली हुई हैं । सबमें मिलाकर कुल १०० कमरे हैं । क्षेत्रपर जल और बिजलीकी पर्याप्त सुविधा है । यहाँ २ सरोवर, ३ कुएँ एवं ८ बावड़ी हैं। सबपर पक्के घाट बने हुए हैं। क्षेत्रके पास ८० एकड़ कृषि भूमि है ।
वार्षिक मेला
यहाँ प्रतिवर्ष माघ सुदी ११ से १५ तक विशाल मेला लगता है। महावीर जयन्ती और दीवालीपर भी काफी जन-समुदाय एकत्र होता है ।