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________________ १९५ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थं मुनिसुव्रतनाथको श्वेतवर्णं, पद्मासन, संवत् १९०२ में प्रतिष्ठित और २ फुट ३ इंच अवगाहनावाली प्रतिमा है। दायीं ओर आदिनाथकी कृष्णवणं, २ फुट ३ इंच उन्नत, पद्मासन और संवत् १९०२ में प्रतिष्ठित प्रतिमा विराजमान है । ६. पार्श्वनाथ मन्दिर - मन्दिर विशाल है । पार्श्वनाथकी कृष्णवर्णं, संवत् १८८८ में प्रतिष्ठित, २ फुट ९ इंच ऊँची, पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । बायीं ओर श्वेतवर्णके चन्द्रप्रभ हैं । अवगाहना २ फुट ५ इंच है और प्रतिष्ठाकाल संवत् १८८८ है । दायीं ओर इसी वर्णं और कालकी ऋषभदेव प्रतिमा है । ७. नेमिनाथ मन्दिर - २ फुट ८ इंच ऊँची, कृष्ण पाषाणकी, संवत् १८८२ में प्रतिष्ठित पद्मासन मूर्ति है । बायीं ओर ऋषभदेव और दायीं ओर महावीरकी श्वेतवर्णं प्रतिमाएँ हैं । ८. पार्श्वनाथ मन्दिर – संवत् १८७१ में प्रतिष्ठित और ३ फुट १० इंच ऊँची, कृष्णवणं, पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इधर-उधर वेदी खाली है । ९. अजितनाथ मन्दिर - अजितनाथ भगवान्‌की श्वेतवर्णं, पद्मासन, १ फुट ९ इंच ऊँची और संवत् १५४८ में प्रतिष्ठित प्रतिमा विराजमान है । १०. चन्द्रप्रभ मन्दिर - भगवान् चन्द्रप्रभ श्यामवर्णं, १ फुट २ इंच उन्नत और पद्मासन विराजमान हैं । वक्षपर श्रीवत्स सुशोभित है । लेख नहीं है । इसके पाश्वमें भगवान् अनन्तनाथकी पद्मासन, संवत् १८९७ में प्रतिष्ठित और २ फुट १ इंच ऊँची प्रतिमा विराजमान है। यहाँ दो प्राचीन मूर्तियाँ भी विराजमान हैं । ११. बड़े बाबाका मन्दिर - इस मन्दिरकी मूलनायक प्रतिमा भगवान् ऋषभदेवकी है। यह लाल वर्णंकी पद्मासन है । इसकी ऊँचाई १२ फुट ६ इंच तथा चौड़ाई ११ फुट ४ इंच है । इसके दोनों पावों में पार्श्वनाथ भगवान्‌की ११ फुट १० इंच ऊँची खड्गासन मूर्तियाँ हैं। पार्श्वनाथके ऊपर सप्त फणावली सुशोभित है । ऋषभदेव प्रतिमाको ही 'बड़े बाबा' कहते हैं। बड़े बाबाके अभिषेक के लिए दोनों ओर लोहेकी सीढ़ियां लगी हुई हैं। ऋषभदेव भगवान् के मुखपर सौम्यता, भव्यता और दिव्य स्मित है । ध्यानपूर्वक कुछ देर देखते रहनेपर मुखपर अद्भुत लावण्य, अलौकिक तेज और दिव्य आकर्षण प्रतीत होता है । भगवान् की छातीपर श्रीवत्स सुशोभित है, कन्धोंपर जटाओंकी दो-दो लटें दोनों ओर लटक रही हैं । भगवान् के सिंहासनके नीचे दो सिंह बने हुए हैं, जो आसनके सिंह हैं। ये तीर्थंकरके लांछन नहीं हैं । पादपीठके अधोभागमें अर्थात् वेदीके सामनेके भागमें ऋषभदेवके सेवक यक्ष गोमुख और यक्षी चक्रेश्वरी उत्कीर्ण हैं । यक्ष द्विभुजी है । उसके एक हाथमें परशु और दूसरे हाथमें बिजौरा फल है। यक्षका मुख गाय जैसा है । दायीं ओर चक्रेश्वरी है । वह चतुर्भुजी है। उसके ऊपरके दो हाथोंमें चक्र हैं | नीचे दायाँ हाथ वरद मुद्रामें है । बायें हाथमें शंख है । इस गर्भगृहमें दायीं ओर की दीवारपर छह शिलाफलकोंपर तीर्थंकर मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, जिनमें क्रमशः बायीं ओरसे दायीं ओरको ऋषभदेव, अभिनन्दननाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ तथा छठे फलकमें ऊपर कुन्थुनाथ तथा नीचे ऋषभदेव हैं। इनमें पहली, तीसरी और चौथी प्रतिमाएँ खड्गासन हैं, शेष पद्मासन हैं । बड़े बाबाके सामने दीवार पर - वाम भाग में ऋषभदेवकी खड्गासन प्रतिमा है । दूसरी प्रतिमाका चिह्न ज्ञात नहीं हो सका । दक्षिण भाग में ऋषभदेव और चन्द्रप्रभकी खड्गासन मूर्तियाँ हैं ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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