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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थं बायीं ओरकी दीवारमें ऋषभदेव, कुन्थुनाथ और पार्श्वनाथको चार मूर्तियाँ हैं । प्रत्येक के साथ पुष्पवर्षी देव और चमरवाहक हैं। गर्भगृह प्रवेशद्वारके बायीं ओर एक शिलालेख अंकित है । यह ९ फुट ११ इंच चौड़ा और १ फुट ७ इंच ऊँचा है। यह ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसी शिलालेखमें महाराज छत्रसाल द्वारा क्षेत्रको दिये गये बहुमूल्य सहयोग और भेटका उल्लेख है । इसी प्रवेशद्वारके आगे एक चबूतरेपर गुलाबी पाषाणके चरणचिह्न उत्कीर्ण हैं । इनके पादपीठपर सामने की ओर आधुनिक लिपिमें 'कुण्डलगिरी श्रीधर स्वामी' लिखा हुआ है । चरणोंकी बगल में ४ फुट २ इंचका और मेरुके आकारका एक पाषाण-स्तम्भ रखा हुआ है । इसके दो भाग इस प्रकार हो गये हैं मानो यह मध्यभागसे चीर दिया गया हो। दोनों भागोंपर २० मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। इनमें से दो मूर्तियां नहीं हैं। इसके ऊपर संवत् १८९२ का एक लेख अंकित है । १९६ 1 मन्दिर में चार वेदियाँ बनी हुई हैं । मन्दिरके मुख्य प्रवेशद्वार पर दायीं ओर क्षेत्रपाल विराजमान हैं। उनकी खड़ी मुद्रा है, चार भुजाएँ हैं, जिनमें से एकमें फल, दूसरे में पुष्प, तीसरे हाथमें दण्ड और चौथे हाथसे अपने वाहन कुत्ते को पकड़े हुए हैं । यहाँसे नीचे धर्मशालाको जानेका मार्ग भी है। यहाँ अनेक जैन और जैनेतर स्त्री-पुरुष बच्चोंका मुण्डन कराने और मनौती मानने आते हैं । १२. नेमिनाथ मन्दिर - नेमिनाथ भगवान् की यह प्रतिमा सलेटी वर्णंकी है और खड्गासन है । भगवान् के ऊपर तीन छत्र हैं । उनके दोनों ओर गज बने हुए हैं। उनके नीचे भक्त हाथ जोड़े हुए हैं। चरणोंके दोनों ओर चमरेन्द्र सेवा - मुद्रामें खड़े हुए हैं। यह एक गुमटी है । १३. महावीर मन्दिर - यह भी एक गुमटी है । इसमें स्वर्णं वर्णंकी पद्मासन महावीर - मूर्ति विराजमान है । मूर्तिके सिरके पीछे प्रभावलय है, किन्तु यह खण्डित । बायीं ओर चार पद्मासन और दायीं ओर छह पद्मासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं । यह शिलाफलक १ फुट १० इंच ऊँचा है, किन्तु खण्डित है। मूर्तिकी नाक और होठ भी खण्डित हैं । १४. पार्श्वनाथ मन्दिर - भगवान् पार्श्वनाथकी कृष्णवर्ण, २ फुट ६ इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । मूर्तिपर लेख नहीं है । १५. अजितनाथ मन्दिर - यह मूर्ति पद्मासन, श्वेतवर्णं, १ फुट ४ इंच ऊँची है तथा संवत् १५८४ की प्रतिष्ठित है । १६. पद्मप्रभ मन्दिर - मूलनायक प्रतिमा श्वेत पाषाणको, १ फुट ३ इंच अवगाहनाकी पद्मासन है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १५४८ में हुई। दो वेदियाँ और हैं, जिनमें चन्द्रप्रभ भगवान्को श्वेतवर्णं प्रतिमाएँ विराजमान हैं । १७. अजितनाथ मन्दिर - अजितनाथ भगवान्की यह खड़गासन प्रतिमा एक शिलाफलकमें उत्कीर्ण है । प्रतिमा प्राचीन प्रतीत होती है किन्तु मूर्तिपर लेख नहीं है । मूर्तिके सिरके ऊपर छत्रत्रयी सुशोभित है । सिरके पीछे भामण्डल विराजमान है । भामण्डलके इधर-उधर दो हैं तथा दो भक्त हाथ जोड़े हुए बैठे हैं । भगवान्की सेवामें एक चमरवाहक और एक चमरवाहिका खड़े हैं। मूर्ति प्राचीन प्रतीत होती है । १८. शान्तिनाथ मन्दिर - शान्तिनाथ भगवान्‌की यह प्रतिमा ४ फुट ५ इंच ऊँची है और संवत् १५४८ में इसकी प्रतिष्ठा हुई है । यहाँ मन्दिर के अहातेमें कुछ प्राचीन मूर्तियाँ रखी हुई हैं। जो कुँवरपुर (बाँसा तारखेड़ा ) गाँव के मन्दिरसे लायी गयी हैं ।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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