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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्य है। इस पदका प्रयोग भी सोद्देश्य किया गया है । यतः राजगृहीके पंचपहाड़ बिलकुल गोलाकार है जैसा कि कुण्डल गोल होता है। किन्तु यह मत हमें कोई राह नहीं दिखाता। न तो राजगृहके पांच पहाड़ोंमें कुण्डल नामका कोई पर्वत ही है, और न वहांके पहाड़ कुण्डलाकार ही हैं। इसके अतिरिक्त पद-रचनामें राजगृहके चारों पवंतोंके साथ कुण्डलका उल्लेख भी नहीं किया गया। अतः कुण्डलगिरि राजगृहका कोई पर्वत रहा होगा, इस कल्पनाको प्रामाणिक माननेमें सहज ही संकोच होता है। इस विवेचनके पश्चात् हम इस निष्कर्षपर पहुंचते हैं कि जबतक कोई प्रबल और विरोधी प्रमाण प्राप्त नहीं होता, दमोह जिलेका कुण्डलपुर ही वह सिद्धक्षेत्र है जहाँसे अन्तिम अननुबद्ध केवली श्रीधर मुनि मुक्त हुए। क्षेत्र-दर्शन इस क्षेत्रपर कुल ६० मन्दिर बने हुए हैं, जिनमें से पहाड़पर ४० और नीचे मैदानमें २० बने हुए हैं। मैदानके मन्दिरोंमें केवल एक मन्दिर धर्मशालाओंके मध्य बना हुआ है। यह महावीर मन्दिर कहलाता है। शेष मन्दिर वर्धमानसागरके तटपर बने हुए हैं। धर्मशालाओंके मध्य मैदानमें एक विशाल संगमरमरका मानस्तम्भ बना हुआ है। ___यहां धर्मशालाके निकट वर्धमानसागर नामक एक विशाल सरोवर बना हुआ है। इसके किनारेपर पाषाणकी सीढ़ियां और घाट बने हुए हैं। सीढ़ियों और घाटोंका निर्माण इतिहासप्रसिद्ध महाराज छत्रसालने कराया था, ऐसा कहा जाता है। क्षेत्रकी वन्दनाके लिए जाते हुए तालाबके किनारेपर चन्द्रप्रभ भगवान्की गुमटी पड़ती है। यही प्रथम मन्दिर है। क्षेत्रकी वन्दना यहींसे प्रारम्भ होती है। - मन्दिर नं. १.-चन्द्रप्रभ मन्दिर-भगवान् चन्द्रप्रभकी श्वेतवर्ण, १ फुट २ इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है, जिसकी प्रतिष्ठा संवत् १८८९ में हुई। २. नेमिनाथ मन्दिर-भगवान् नेमिनाथकी पद्मासन, श्वेतवर्ण १ फुट ऊंची प्रतिमा है। प्रतिष्ठा संवत् १९०१ में हुई। यह एक गुमटी है। इसके पास एक छोटी छतरीमें चरण विराजमान हैं। ३. एक गुमटीमें डेढ़ फुटके एक शिलाफलकमें चरणचिह्न उत्कीर्ण हैं । चरण ८ इंच लम्बे हैं और एक दीवार में जड़े हुए हैं। इसके आगे पहाड़की चढ़ाई प्रारम्भ हो जाती है । पक्की सीढ़ियां बनी हुई हैं। कुछ सीढ़ियां चढ़नेपर एक द्वार मिलता है। उसके बाद लगभग २०० सीढ़ियां चढ़नेके बाद फिर एक द्वार आता है। यह एक प्रकारसे विश्रामस्थल है। यहाँसे लगभग २०० सीढ़ियां चढ़नेके बाद चन्द्रप्रभ मन्दिर मिलता है। ४. चन्द्रप्रभ मन्दिर-इसमें चन्द्रप्रभकी श्वेतवर्ण पद्मासन, २ फुट ११ इंच उत्तुंग प्रतिमा विराजमान है। इसकी प्रतिष्ठा संवत् १५४८ में हुई। बायीं ओर एक वेदीमें चन्द्रप्रभ २ फुट ९ इंच ऊँचे स्वर्ण-वणं विराजमान हैं। इस मन्दिरके बाहर चारों कोनोंपर गुमटियां बनी हुई हैं। इनमें श्यामवर्ण, १ फुट ७ इंच ऊँची, पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसमें लांछन और लेख नहीं हैं। ____५. पार्श्वनाथ मन्दिर-यहाँ तीन दरको वेदी है। मध्यमें कृष्णवर्ण पद्मासन पार्श्वनाथ विराजमान हैं। अवगाहना २ फुट ९ इंच है और प्रतिष्ठाकाल है संवत् १९०२ । बायीं ओर
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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