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________________ मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १९३ कुण्डल नामके कई स्थान हैं-(१) कुण्डलपुर अथवा कुण्डग्राम, वैशाली (वर्तमान बसाढ) के निकट जिसका वर्तमान नाम वासुकुण्ड है। इसका नाम महावीर-कालमें कुण्डग्राम था। दिगम्बर जैनाचार्योंने इसका नाम कुण्डलपुर भी लिखा है। (२) नालन्दाके निकट कुण्डलपुर। वस्तुतः गांवका नाम कुण्डलपुर नहीं है, बड़ागांव है। वैशालीके कुण्डग्रामके स्थानपर इसी गांवको कुण्डलपुर क्षेत्र मानकर यहाँ मन्दिर बना दिया गया था। (३) कुण्डलपुर, महाराष्ट्रके सतारा जिलेमें पूना-सतारा रेलमार्गपर किर्लोस्कर गढ़ी स्टेशनसे पांच कि. मी. है। यह तीर्थक्षेत्र है। यहाँ पहाड़पर झरी पार्श्वनाथ और गिरि पाश्वनाथ नामक दो मन्दिर हैं। (४) कुण्डलगिरि-दमोह जिलेका वर्तमान क्षेत्र । इन उक्त चारों स्थानोंको तीर्थ-क्षेत्र माना जाता है। किन्तु आश्चर्य है कि कुछ समय पूर्वतक इनमें से किसीको भी सिद्धक्षेत्र नहीं माना जाता था। इधर कुछ वर्षोंसे दमोह जिलेके कुण्डलगिरिको सिद्धक्षेत्र घोषित करनेके प्रयत्न किये जा रहे हैं। इन चारों में से कौन-सा कुण्डल सिद्धक्षेत्र है, यह सिद्ध करना अभी शेष है। दमोह जिलेके ण्डलगिरिको सिद्धक्षेत्र मानने के लिए प्रमाण-रूपमें वे चरणचिन्ह उपस्थित किये जाते हैं जिनकी चौकीपर आगेकी ओर लिखा है-'कुण्डलगिरी श्रीधर स्वामी'। किन्तु इन चरणोंको देखकर लगता है कि ये १२वीं-१३वीं शताब्दी या उसके बादके हैं और लेख तो विशेष प्राचीन प्रतीत नहीं होता। यह कोई प्रतिष्ठा-लेख भी नहीं लगता क्योंकि अन्य लेखोंके समान इसमें प्रतिष्ठा-काल, प्रतिष्ठाचार्य और प्रतिष्ठाकारक किसीका भी उल्लेख नहीं है। यह सब क्यों नहीं दिया गया, यह नहीं कहा जा सकता। कुछ वर्ष पूर्व तक यह लेख किसी व्यक्तिको दृष्टिमें भी नहीं आया था। इन सब कारणोंसे इस लेखको अधिक प्रामाणिक माननेकी स्थिति नहीं बनती। फिर भी इस क्षेत्रको सिद्धक्षेत्र मानने में इसकी प्राकृतिक स्थिति सहायक बन सकती है। यह स्थिति अन्य किसी कुण्डलपुरको प्राप्त नहीं है। तिलोयपण्णत्तिमें जिस स्थानका नाम कुण्डलगिरि दिया गया है, उसीका उल्लेख पूज्यपादने निर्वाण-भक्तिमें प्रबल कुण्डलके नामसे दिया है। इस उल्लेखमें प्रबल तो विशेषणपद है, स्थानका नाम तो कुण्डल ही है। किन्तु तिलोयपण्णत्तिके कुण्डलगिरि-उल्लेखसे लगता है कि यह क्षेत्र कोई नगर न होकर पर्वत है । वैशाली कुण्डग्राम और नालन्दाके निकटवाला कुण्डलपुर तो गाँव हैं, पर्वत नहीं। इसलिए उन्हें तो विचारकोटिमें रखा ही नहीं जा सकता। सतारा जिलेका कुण्डल और दमोह जिलेका कुण्डल इन दोनोंपर विचार करते समय हमें संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें दिये गये निर्वाण-क्षेत्रोंके क्रमको एकदम उपेक्षित या गौण नहीं समझ लेना चाहिए। इसमें द्रोणिमान्, कुण्डल और मेढ़क इस क्रमसे तीन तीर्थ दिये हुए हैं । लगता है, यह क्रम निरुद्देश्य नहीं है। यदि हम इस क्रमको सोद्देश्य और सार्थक मान लें तो द्रौणिमान् और मेढ़कके मध्य कुण्डलकी अवस्थिति स्वीकार करनी होगी। भौगोलिक दृष्टिसे वर्तमानमें द्रोणगिरि और मेढ़क अर्थात् मुक्तागिरिके मध्यमें कुण्डलपुर अवस्थित है। अतः संस्कृत निर्वाण-भक्तिका सिद्धक्षेत्र प्रबल कुण्डल और तिलोयपण्णत्तिमें वर्णित श्रीधर केवलीका निर्वाण-क्षेत्र कुण्डलगिरि वस्तुतः दमोह जिलेका यह वर्तमान कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र है। कई विद्वानोंने एक नयी प्रस्थापना की है। उनका अभिमत है कि निर्वाण भक्तिके उपर्युक्त श्लोकमें राजगृहीके चार पर्वतोंका तो उल्लेख किया गया है किन्तु पांचवें पर्वतका नामोल्लेख तक नहीं किया गया। इससे लगता है कि प्रबल कुण्डल पद राजगृहीके पांचवें पर्वतके लिए प्रयुक्त हुआ ३-२५
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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