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मध्यप्रदेशकै दिगम्बर जैन तीर्थ
१८७ इसे 'डुबरीकी मढ़िया' या 'पतियानदाई' के नामसे जानते हैं। यह मन्दिर छोटा ही है-कुल ६ फुट १० इंच लम्बा और ६ फुट ६ इंच चौड़ा, और भीतरसे कुल ५ फुट लम्बा और ४ फुट चौड़ा. है। इसकी छत पूर्व-गुप्त-कालके मन्दिरोंकी शैलीकी बनी हुई है। यह ७ फुट ८ इंच लम्बी और ७ फुट ४ इंच चौड़ी एक पाषाण-शिलासे बनायी गयी है। मन्दिरको सुरक्षित रखनेका बहुत-कुछ श्रेय इसी छतको दिया जा सकता है। इस मन्दिरके पाषाण इसी पहाड़ोके हैं। भरहुतके प्रसिद्ध स्तूपमें भी इसी पहाड़ीके पत्थर काममें आये हैं । - यह मन्दिर उत्तराभिमुख है । इसका द्वार १ फुट १०॥ इंच चौड़ा और ३॥ फुट ऊँचा है। द्वारके दोनों ओर मकरवाहिनी गंगा और कूमवाहिनी यमुनाका मनोहर अंकन है। इन देवियोंके एक हाथमें कलश और दूसरे हाथमें चमर प्रदर्शित हैं। त्रिभंग मुद्रामें खड़ी हुई इन देवियोंका अंकन कलाकारको कुशलताका द्योतक है। देवियोंके रत्नाभरणोंकी संयोजना भी कलापूर्ण है। दोनों देवियोंके पार्श्वमें चतुर्भुज यक्ष-मूर्ति प्रदर्शित है। देवियोंके ऊपरी भागमें कल्पवल्लरीका अंकन किया गया है।
___ द्वारके तोरणमें तीन कोष्ठक बने हुए हैं। मध्य कोष्ठकमें आदिनाथ तीर्थंकर पद्मासन मुद्रामें आसीन हैं। उनकी चरण-चौकीपर वृषभ लांछन अंकित है तथा दोनों ओरके कोष्ठकोंमें फणावलियुक्त पाश्र्वनाथ विराजमान हैं। पीठिकापर सर्प लांछन बना हुआ है। तीनों ही प्रतिमाएं पद्मासनमें हैं तथा ५ फुट ऊंची हैं।
मन्दिरकी वेदी वर्तमानमें प्रतिमारहित है। कनिंघमने जब सन् १८७४ में इस स्थानकी यात्रा की थी, उस समय उन्होंने इस वेदीपर एक शिलाफलकमें उत्कीर्ण चौबीस जैन यक्षियोंकी मूर्तियाँ देखी थीं। वह मूर्ति आजकल प्रयाग संग्रहालयमें सुरक्षित है। उस मूर्तिका कई दृष्टियोंसे असाधारण महत्त्व है। सबसे प्रथम यह कि चौबोस यक्षियोंकी मूर्ति है, अर्थात् यह ऐसी दुर्लभ प्रतिमा है जिसमें समस्त तीर्थकर यक्षियां एक स्थानपर अंकित हैं और दोनों पार्यों में तीर्थंकरमूर्तियां उत्कीर्ण हैं। दूसरा महत्त्व यह है कि यह चौबीस यक्षियोंका स्वतन्त्र मन्दिर था। जैन शासन-देवियों और यक्षियोंके स्वतन्त्र मन्दिरोंके निर्माणके इतिहासकी दृष्टिसे इस मूर्ति और मन्दिरका अपना विशेष महत्त्व है। अस्तु । इस मूर्तिका विवरण इस प्रकार है
६८ फुट x ३९ इंच ऊँचे एक शिलाफलकमें २४ यक्षियोंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। मध्यमें मुख्य देवी अम्बिकाकी खड़ी मूर्ति है। देवी त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है। वह अलंकारोंसे सज्जित है। देवी चतुर्भुजी है किन्तु दुर्भाग्यसे उसकी चारों ही भुजाएं खण्डित हैं। सिरपर वह मुकुट धारण किये हुई है। मस्तकके पीछे प्रभावली है। नाक खण्डित होनेके बावजूद मुख-सौन्दर्यमें कमी नहीं आने पायी है। देवीके अलंकारों और शाटिकाकी चुन्नटोंमें कलाका जो सूक्ष्म अंकन हुआ है और शिल्प-सौन्दर्यकी जो अभिव्यक्ति हुई है, वह अन्यत्र कहीं देखनेमें नहीं आयी। इसका आकार ४१ फुट है। . देवीके कण्ठ में हँसुली, रत्नहार एवं तिलड़ी मौक्तिक माला है। भुजाओंमें भुजबन्ध हैं। कटि-प्रदेशमें कई प्रकारकी कटि-मेखलाएँ सुशोभित हैं। आभूषणोंकी खुदाई इतनी स्पष्ट है कि एकएक लड़ी और एक-एक कड़ी गिनी जा सकती है। देवी पैरोंमें कड़े और पाजेब धारण किये हुई है। देवीके दायीं ओर एक बालक सिंहपर आरूढ़ है तथा बायीं ओर एक बालक देवीका हाथ पकड़े हुए खड़ा है। ये दोनों बालक देवोके पुत्र प्रियंकर और शुभंकर हैं। दोनोंके निम्न भागमें स्त्री-पुरुष अंजलिबद्ध अंकित हैं।