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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पाश्वनाथ नेमिनाथ-यह द्विमूर्तिका भी कारीतलाईसे प्राप्त हुई थी और इस समय 'फिलाडेलफिया म्यूजियम ऑफ आर्ट' में सुरक्षित है। इन सभी प्रतिमाओंका काल १०-११वीं शताब्दी माना जाता है। पंचबालयति
ऐसी प्रतिमाओंमें एक तीर्थंकरकी मूलनायक प्रतिमाके अतिरिक्त प्रायः चारों कोनोंपर चार अन्य तीर्थंकरोंकी प्रतिमाएँ उत्कीर्ण होती हैं। पंचबालयति वे तीर्थंकर हैं जो आजीवन बालब्रह्मचारी रहे। ये कुमार प्रवजित भी कहलाते हैं। उनके नाम हैं-वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर। ऐसी एक प्रतिमामें भगवान् महावीरकी पद्मासन प्रतिमाको केन्द्र बनाकर चार अन्य तीर्थंकर प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। ये सभी पद्मासन हैं। पीठिकाके मध्यमें महावीरका लांछन सिंह बना हुआ है। उसके नीचे धर्मचक्रका अंकन है। लांछनके दोनों ओर भी सिंह बने हुए हैं । महावीरका यक्ष मातंग वाम पाश्वमें करबद्ध खड़ा हुआ है और यक्षी सिद्धायिका चमर लिये हुई है। इनके दोनों ओर पूजा करते हुए भक्त प्रदर्शित हैं। सर्वतोभद्रिका - यह एक शिखराकार चैत्य है, जिसके स्तम्भमें चारों दिशाओंमें एक-एक तीर्थंकर प्रतिमा बनी हुई है। सभी प्रतिमाएं कायोत्सर्गासनमें हैं। इनमें से एक तो पार्श्वनाथकी प्रतिमा है जिसकी पहचान उसके सर्पफणसे हो जाती है। शेष प्रतिमाएँ सम्भवतः ऋषभदेव, नेमिनाथ और महावीरकी हैं।
ऐसे ही कुछ शिखराकार लघु स्तूपोंपर तीर्थंकरोंकी लघु मूर्तियां बनी हुई हैं जो सम्भवतः नन्दीश्वर जिनालय अथवा सहस्रकूट चैत्यालयके प्रतीक हो सकती हैं। शासन-देवियाँ
___तीर्थंकर प्रतिमाओंके साथ तो शासन देव-देवियोंकी मूर्तियां मिलती ही हैं, किन्तु कुछ देवियोंकी स्वतन्त्र मूर्तियां भी यहाँ हैं । ये मूर्तियां कारीतलाईसे ही प्राप्त हुई थीं। देवी अम्बिकाकी एक मूर्ति द्विभुजी है। देवी अपने वाहन सिंहपर ललितासनसे बैठी हुई है। वह बायें हाथसे अपने छोटे पुत्र प्रियंकरको गोदमें लिये हुए है । दूसरे हाथमें आम्र-गुच्छक है। बड़ा पुत्र शुभंकर अपनी माताके पैरोंके पास बैठा है। देवी नाना रत्नाभरणोंसे विभूषित है।
एक अन्य अम्बिका मूर्ति है। देवी आम्रवृक्षके नीचे त्रिभंग मुद्रामें खड़ी हुई है। उसका वाहन सिंह उसके पीछे बैठा हुआ है । आम्रवृक्षके ऊपर नेमिनाथ तीर्थंकरको प्रतिमा है।
कारीतलाईके किसी जैन मन्दिरके द्वारका एक फ्रेम है। उसकी चौखटोंके अधोभागमें अम्बिका और पद्मावती ललितासनसे बैठी हुई हैं। अम्बिकाकी गोदमें बालक है और पद्मावतीके मस्तकपर फण है । चौखटके ऊपरी भागमें तीर्थकर मूर्तियां हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ अवशेषों में से सरस्वतीकी एक अत्यन्त सुन्दर मूर्ति प्राप्त हुई है।
पतियानदाई सतना नगरसे दक्षिण-पश्चिममें लगभग ९ कि. मी. पर सिन्दूरिया पहाड़ी है। उसके एक साधारण ऊंचे टीलेपर एक प्राचीन मन्दिर जीर्ण-शीर्ण अवस्थामें खड़ा हुआ है। स्थानीय लोग