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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्य कारीतलाईको जैन मूर्तियां . वर्तमानमें कारीतलाईमें कोई अखण्डित जैन मन्दिर नहीं है। अतः जैन मूर्तियां भी व्यवस्थित रूपमें नहीं मिलती। यहाँको अधिकांश मूर्तियाँ जबलपुर और रायपुर संग्रहालयोंमें पहुँचा दी गयी हैं। कुछ प्रतिमाओंको आसपासके लोग उठा ले गये तथा अनेक प्रतिमाएं यहींपर खण्डित-अखण्डित दशामें पड़ी हुई हैं। यहाँकी प्रतिमाओंमे अधिकांशतः तीर्थंकरों और शासनदेवताओंको प्रतिमाएँ हैं। तीर्थंकरोंमें भी प्रथम तीर्थकर भगवान् ऋषभदेवकी प्रतिमाएं अधिक हैं। शासन-देवताओंमें अम्बिका, पद्मावती और सरस्वतीकी प्रतिमाएं मिलती हैं। विशेष प्रतिमाओंमें द्विमूर्तिकाएँ, त्रिमूर्तिकाएँ, सर्वतोभद्रिका और सहस्रकूट जिनालय अथवा नन्दीश्वर जिनालयकी प्रतिकृति-प्रतिमाएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। रायपुर संग्रहालयमें यहाँकी उपर्युक्त सभी प्रकारकी जैन मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। वे गुप्त-कालसे कलचुरि-काल तकके अनूठे नमूने हैं। कारीतलाईकी जो प्रतिमाएं रायपुर संग्रहालयको प्राप्त हुई हैं, उनमें से ३९ कलाकृतियां, प्रतिमाएं आदि जैनोंसे सम्बन्धित हैं। जैन प्रतिमाओंमें ६ प्रतिमाएं ऋषभदेवकी हैं। ७ द्विमूर्तिकाएँ, ४ नन्दीश्वर जिनालय या सहस्रकूट जिनालय, पंचबालयति, सर्वतोभद्रिका, चक्रेश्वरीकी १, अम्बिकाकी २, सरस्वतीकी १ तथा अन्य प्रतिमाएं सम्मिलित हैं। इनमें से कुछ विशेष मूर्तियोंका परिचय यहाँ दिया जा रहा हैऋषभदेव प्रतिमाएँ ____ एक प्रतिमा ३ फुट ९ इंच ऊंची है और पद्मासन मुद्रामें ध्यानमग्न है । ऋषभदेवकी सभी प्रतिमाएं अष्ट प्रातिहार्ययुक्त हैं। मस्तकके ऊपर त्रिछत्र और मस्तकके पीछे भामण्डल, वक्षपर श्रीवत्स लांछन, सेवकके रूपमें सौधर्म और ईशान स्वर्गके इन्द्र तीर्थंकरके दोनों पार्यों में हाथमें चमर धारण किये हुए, गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी यक्षी चरणोंके दोनों ओर, चरण-चौकीपर मध्यमें ऋषभदेवका लांछन वृषभ, उसके नीचे धर्मचक्र और उसके दोनों ओर सिंह यह परिकर यहाँकी सभी ऋषभदेव प्रतिमाओंमें मिलता है। उपर्युक्त प्रतिमामें भी इस परिकरका सुन्दर अंकन किया गया है। इसमें सिंहयुगलके साथ गजयुगलका भी अंकन करके विशेषता प्रदान की गयी है। एक अन्य प्रतिमा ४ फुट ६ इंच उन्नत है और पद्मासनासीन है। इसकी दक्षिण भुजा और वाम धटना खण्डित हैं। शेष परिकर यथापूर्व है। भगवानका शासन-देव गोमख दक्षिण पार्श्वमें और सेविका यक्षी चक्रेश्वरी वाम पार्श्वमें ललितासनसे बैठे हैं। एक अन्य प्रतिमामें देवी अपने वाहन गरुड़पर आरूढ़ है। एक प्रतिमामें चक्रेश्वरीके स्थानपर अम्बिका यक्षीकी प्रतिमा बनायी गयी है। मध्य कालमें नेमिनाथकी यक्षी अम्बिकाको विशेष महत्त्व प्राप्त हो गया। फलतः इस कालमें सभी तीर्थंकरोंके साथ अम्बिकाकी प्रतिमा बनानेकी परम्परा चल पड़ी। चौबीसी प्रतिमाएँ एक प्रतिमा २ फुट ३ इंच ऊँची पद्मासनस्थ है। इसके स्कन्धोंपर लहराते हुए केशोंका अंकन अत्यन्त कलापूर्ण है। इस प्रतिमाके दोनों पार्यो में २३ तीर्थकरोंकी लघु मूर्तियाँ हैं। दक्षिण पावकी मूर्तियाँ पद्मासनमें और वाम पाश्र्वको मूर्तियां खड्गासनमें हैं। चौकीके मध्यमें वृषभ लांछन और उसके नीचे चक्र अंकित है। चक्रके दोनों ओर सिंह और उसकी बगलमें कोनोंपर यक्ष-यक्षी बने हुए हैं।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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