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________________ १८२ भारतके दिगम्बरजैन तीर्थ ___ इसके निकट ही चट्टानोंमें उकेरी हुई जैन तीर्थंकरोंकी पद्मासन मूर्तियां मिलती हैं। इनकी कई पंक्तियाँ हैं । संख्यामें ये ५० के लगभग होंगी। इनके पास ही एक गाय और बछड़ा बने हुए हैं और एक सुखासीन चतुर्भुजी देवी बनी हुई है। उसकी गोदमें एक बालक है। उसके दायीं ओर एक-दूसरेके ऊपर पांच शूकर बने हुए हैं। इसी प्रकार उसके बायीं ओर जोड़ोंमें आठ शूकर एकदूसरेके ऊपर बने हुए हैं । सम्भवतः यह षष्ठी देवी है। ____किलेमें एक भव्य मानस्तम्भ बना हुआ है। उसके ऊपर सैकड़ों जैन प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। इस पहाड़के चारों ओर तलहटीमें और जंगलमें अनेक जैन मूर्तियां बिखरी पड़ी हैं । अजयगढ़ गाँवमें एक प्राचीन मन्दिर है। यहाँ दिगम्बर जैनोंके कुछ घर हैं । शिलालेख यहाँ दुर्गमें छोटे-बड़े मिलाकर १६ शिलालेख उपलब्ध हुए हैं जो वि. सं. १२०८ से वि. सं. १३७२ तकके हैं । ये सभी चन्देल राजाओंके काल में लिखे गये हैं। इनसे कई ऐतिहासिक महत्त्वकी बातोंपर प्रकाश पड़ता है तथा चन्देल राजाओंकी वंशावली भी ज्ञात होती है। इनमें से एक शिलालेखमें, जो १५ पंक्तियोंका है तथा संवत् १३१२ का है, चन्देल राजा कीर्तिवर्मासे चन्देलवंशी राजाओं तकके नाम दिये गये हैं । वे इस प्रकार हैं चन्द्रवंशमें उत्पन्न राजा कीर्तिवर्मा, सुलक्षण वर्मा (जिसने मालवापर विजय प्राप्त की थी)। जयवर्मा, पृथ्वीवर्मा, मदनवर्मा, त्रैलोक्यवर्मा और उसके दो पुत्र-यशोवर्मा और वीरवर्मा। इन दोनोंमें-से वीरवर्मा राजा बना। कारीतलाई अवस्थिति ___ कारीतलाई गांव कैमूर पर्वत-श्रेणियोंकी पूर्वी मालाओंमें, मैहरसे दक्षिण-पूर्वमें ३५ कि. मो., कटनीसे ४६ कि. मी. उत्तर-पूर्वमें और उचहरासे दक्षिणमें लगभग ५० कि. मी. है। __ कारीतलाईका प्राचीन नाम कर्णपुर या कर्णपुरा था। अवशेष वर्तमान कारीतलाई गांवके उत्तरमें पहाड़ीके किनारे जैन और हिन्दू मन्दिरोंके अवशेष विद्यमान हैं। उन अवशेषोंके पूर्व में आधा मोल लम्बा सागर ताल है। इन कलावशेषोंमें बहत-सा सामान–पाषाण, स्तम्भ और मूर्तियां-गांववालोंने अपने घरोंमें लगा लिया है। कुछ खण्डितअखण्डित प्रतिमाएँ तालाबके किनारे पड़ी हुई हैं तथा कुछ मूर्तियां, अभिलेख, ताम्रपट आदि जबलपुर और रायपुरके संग्रहालयोंमें सुरक्षित रखे हुए हैं। गांववालोंने ईंट-पत्थरोंके लिए यहाँके कई स्थानोंपर खुदाई की है। इसमें ८ फुट गहराई तक प्राचीन इंटोंकी दीवार मिली है। कहते हैं, विजय-राघोगढ़के किलेका निर्माण कारोतलाईके प्राचीन पत्थरोंसे हुआ था।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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