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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
१८१ उल्लेखनीय मेला हुआ। इस अवसरपर यहां पंचकल्याणकपूर्वक बिम्ब-प्रतिष्ठा एवं गजरथका आयोजन हुआ। इस मेलेमें यहाँ कई लाख व्यक्ति एकत्र हुए थे। व्यवस्था
क्षेत्रको व्यवस्था मेलेके अवसरपर निर्वाचित प्रबन्ध समिति करती है।
अजयगढ़
स्थिति और मार्ग
अजयगढ़ पन्ना जिलेमें एक छोटा-सा गाँव है। गांवके निकट एक पहाड़ीपर चन्देल राजाओंका बनवाया हआ एक प्राचीन किला है। यह सडक-मार्गसे कालिंजरके दक्षिण-पश्चिममें लगभग ३२ कि. मी. है । यह किला समतल भूमिसे ७००-८०० फुट ऊंचा बना हुआ है। यह उत्तरसे दक्षिणकी ओर एक मील लम्बा और पश्चिमसे पूर्वकी ओर इससे कुछ कम चौड़ा है।
_____ अजयगढ़का निर्माण किसी अजयपाल नामक राजाने कराया था। किन्तु यहाँके उपलब्ध शिलालेखोंमें इसका नाम कहींपर भी अजयगढ़ नहीं दिया गया है, बल्कि इन शिलालेखोंमें सर्वत्र जयपुर दुर्ग दिया हुआ है। इस दुर्गमें दो द्वार हैं-एक उत्तरकी ओर, जिसे दरवाजा कहते हैं। शिलालेखोंमें इसका नाम कहीं-कहीं कालिंजर-द्वार भी दिया हुआ है क्योंकि यहींसे सीधा कालिंजरको मार्ग जाता है और वह यहाँसे केवल ३२ कि. मी. है। दूसरे द्वारका नाम 'तारहीनी द्वार' है। यह दक्षिण-पूर्वकी ओर है। यहाँसे पहाड़की तलहटीमें बसे हुए तारहौन गांवको रास्ता जाता है, इसीसे द्वारका नाम 'तारहीनी द्वार' पड़ गया।
उत्तरी द्वारमें प्रवेश करते ही चट्टानोंमें खुदे हुए दो तालाब मिलते हैं। इनका गंगा-यमुना नाम प्रचलित है। दुर्गके बीचों-बीच एक बहुत बड़ा तालाब बना हुआ है। इसे 'अजयपालका तालाब' कहते हैं। तालाब काफी प्राचीन लगता है। इस तालाबके किनारे अजयपालका मन्दिर है, जिसमें काले पाषाणकी चतुर्भुजी विष्णुकी मूर्ति है। तालाबके दूसरी ओर घिरी हुई चौकोर दीवारमें भगवान् शान्तिनाथकी खड्गासन प्रतिमा है। यह लगभग १५ फुट ऊंची है और ११वीं-१२वीं शताब्दीको लगती है। तालाबके आसपास प्राचीन जैन मन्दिरोंके भग्नावशेष और खण्डित प्रतिमाएँ बिखरी पड़ी हैं। दुर्गके दक्षिणी सिरेपर एक बडा ताल है जिसे परमाल ताल कहा जाता है। इसके निकट चन्देल राजाओंके कालके तीन जीर्ण-शीर्ण मन्दिर खड़े हैं। इनमें सबसे बड़ा मन्दिर ६० फुट ४४० फुट है और इसका द्वार पश्चिमाभिमुखी है। इसके उत्तरी भागकी दोवारें तो गिर चुकी हैं किन्तु जो दीवारें अभी तक खड़ी हैं, उनकी शिल्पकला और उच्च कोटिका अलंकरण दर्शनीय है। दूसरा मन्दिर भो इतना हो लम्बा-चौड़ा है तथा तीसरा मन्दिर इनसे कुछ छोटा ५४ फुट x ३६ फुट है।
तारहीनी द्वारके निकट एक चट्टानपर अष्ट-देवी-मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं, जिन्हें अष्टशक्ति कहा जाता है। ये श्री चण्डी, श्री चामुण्डा, श्री कालिका आदि हैं। इनके नाम भी मूर्तियोंके नीचे अंकित हैं। इनके निकट ७ फुट लम्बा और २ फुट ४ इंच चौड़ा चित्र-वर्णमें लिखा हुआ एक शिलालेख चट्टानमें खुदा हुआ है । इसमें चन्देल वंशके कीर्तिवर्मासे लेकर भोजवर्मा तकके राजाओंके नाम मिलते हैं।