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________________ मध्यप्रदेशके विगम्बर जैन तीर्थ १७७ यहां एक सभा-भवन है। यह भवन शास्त्र-सभा अथवा व्याख्यान-सभाके उद्देश्यसे सेठ नारायणदासजीकी धर्मनिष्ठ माता केशरबाईने निर्मित कराया था। दीवारोंपर पौराणिक आख्यान चित्रित किये गये हैं । नीतिपरक छन्द भी लिखे गये हैं। यहाँके मन्दिरों और मूर्तियोंका विवरण इस प्रकार है मन्दिर नं. १-भगवान् शान्तिनाथकी पीत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। अवगाहना ३ फुट ४ इंच है । मूर्ति-लेखके अनुसार प्रतिष्ठा-काल सं. १८६४ है। __ मन्दिर नं. २-भगवान् चन्द्रप्रभ पीतवर्ण, पद्मासन हैं। अवगाहना ३ फुट है और संवत् १८६४ में प्रतिष्ठित हुई है। ___ मन्दिर नं. ३-यह मेरु-मन्दिर है। गन्धकुटी तीन कटनियोंके ऊपर स्थित है और गन्धकुटी तक पहुँचनेके लिए चक्राकार परिक्रमा-पथ बना हुआ है। गन्धकुटीमें शान्तिनाथ भगवान्की श्वेत पाषाणकी १० इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसकी प्रतिष्ठा संवत् १९५१ में हुई। मन्दिर नं. ४-इस मन्दिरमें १ फुट १० इंच ऊंची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। पादपीठपर कोई लांछन नहीं है। मन्दिर नं. ५-इसमें नन्दीश्वर जिनालय और समवसरणकी रचना है। नन्दीश्वरके मेरु रंगीन हैं । इनकी रचना कोनीके नन्दीश्वर जिनालयकी अनुकृतिपर हुई लगती है। इसका निर्माणकाल संवत् १८३५ है । समवसरणकी रचना इसीके निकट है और उसके समकालीन है। ___मन्दिर नं. ६-मूलनायक भगवान् महावीरकी कत्थई वर्णकी यह प्रतिमा पद्मासनमें ध्यानावस्थित है। इसकी ऊंचाई ४ फुट है और इसकी प्रतिष्ठा संवत् १८३५ में हुई थी। इस वेदीमें संवत् १८३५ और संवत् १५४८ की अनेक मूर्तियाँ हैं। दो मतियाँ दायीं और बायीं दीवारमें कायोत्सर्गासनमें अवस्थित हैं। इन दोनों मूर्तियोंपर कलचुरि शैलीका प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। सम्भवतः ये मूर्तियाँ १२वीं शताब्दीकी हैं। दायीं ओरकी शिलामें पांच मूर्तियाँ खड्गासन मुद्रामें उत्कीर्ण हैं-१ मध्यमें और २-२ दोनों पाश्ॉमें । इसके परिकरमें छत्र, भामण्डल, ऊपर दोनों कोनोंपर देव-देवियाँ कमलपुष्प लिये हुए पुष्पवर्षा के लिए तैयार प्रतीत होते हैं। नीचे गजारूढ़ चमरेन्द्र भगवान्की सेवामें स्थित हैं । बायीं ओरकी मूर्ति भी खड्गासन मुद्रामें है। इस वेदीपर पाषाणको ६१ और धातुकी १० मूर्तियाँ हैं। पाषाणके ढाँचेमें २० धातुकी छोटी मूर्तियाँ जड़ी हुई हैं । पाँच मेरु हैं । पाषाणको दो चौबीसी हैं। मन्दिर नं. ७-यह मन्दिर सहस्रकूट जिनालय कहलाता है। यह ९ फुट ऊँचा है और इसकी गोलाई ३२ फुट है । इसमें १००८ अर्हन्त-मूर्तियाँ बनी हुई हैं । ये दोनों ही आसनोंमें उत्कीर्ण हैं-खड्गासन और पद्मासन। एक दीवार-वेदीमें तीन प्रतिमाएं विराजमान हैं। उनमें से एक प्रतिमा पार्श्वनाथकी है । दो प्रतिमाओंपर कोई लेख या लांछन नहीं है। ये प्रतिमाएँ सोनागिरकी कुछ प्रतिमाओंकी शैलीकी हैं। मन्दिर नं.८-भगवान् ऋषभदेवकी लगभग १ फुट ऊंची प्रतिमा है । यह पद्मासन है और संवत् १८४२ की प्रतिष्ठित है। मन्दिर नं. ९-भगवान् महावीरकी यह पद्मासन प्रतिमा १ फुट ४ इंच ऊँची है और संवत् १८४२ में प्रतिष्ठित है। मन्दिर नं. १०-भगवान् सम्भवनाथकी १ फुट ७ इंच ऊंची यह पद्मासन प्रतिमा संवत् १८४२ में प्रतिष्ठित हुई। ३-२३
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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