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________________ १७६ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ उस समयकी है, जब रानी युद्धमें जानेसे पूर्व भगवान्को नमस्कार कर रही है। उसकी भक्तिसे प्रसन्न होकर देवी उसे आशीर्वाद दे रही है। स्त्रीको पीठपर बना हुआ पंजा देवीके आशीर्वादका ही प्रतीक है। यहाँ एक चबूतरेपर एक शिलाफलकमें भी स्त्रीका एक पंजा बना हुआ है। पंजा आशीर्वादमुद्रा में है। शिलाफलकके पंजे और स्त्रीकी पीठपर बने पंजेमें निश्चय ही सम्बन्ध है और दोनों एक ही घटना-शृंखलाको कड़ी प्रतीत होते हैं। कुछ लोग इसे सती-चौरा कहते हैं। धर्मशालाएँ यहां यात्रियोंके लिए कई लम्बे दालान बने हुए हैं तथा ४० कमरे भी हैं। क्षेत्रपर बिजली है । जलके लिए कुआं है । मेले आदिके अवसरोंपर गाँवके कुएंसे टंकियोंमें जल मँगाया जाता है। वार्षिक मेला क्षेत्रका वार्षिक मेला प्रत्येक वर्ष २५ दिसम्बरसे १ जनवरी तक होता है। इस अवसरपर ४-५ हजार व्यक्ति एकत्र हो जाते हैं। सन् ११३९ में शान्तिनाथ भगवान्का महामस्तकाभिषेकसमारोह हुआ था। इस अवसरपर सहस्रों व्यक्ति यहाँ एकत्र हुए थे। व्यवस्था - क्षेत्रकी व्यवस्था मेलेके अवसरपर एकत्र समाजमें से चुनी हुई प्रबन्ध समिति करती है। . क्षेत्रकी आर्थिक दशा सन्तोषजनक है । क्षेत्रके पास कुछ भूमि भी है। उसमें खेती करायी जाती है, जिससे क्षेत्रको अच्छी आय हो जाती है। पटनागंज अवस्थिति और मार्ग - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पटनागंज सागर जिलेमें रहलीके पास अवस्थित है। मध्य रेलवेकी बीना-कटनी लाइनपर सागर है, जहाँसे ४२ कि. मी. दूर रहली है। दमोहसे रहली ५३ कि. मी. है । वहाँ तक पक्की सड़क है । बसें बराबर मिलती हैं । रहली सुवर्णभद्र नदीके तटपर बसा हुआ है और तहसीलका मुख्यालय यहींपर है। नदीके उस तटपर मैदानमें पटनागंज क्षेत्र है। नदीपर पुल बना हुआ है । क्षेत्रके पास भी बस्ती है किन्तु व्यापार रहलीमें है। इसका पोस्ट ऑफिस भी रहली है। क्षेत्र-दर्शन . इस क्षेत्रपर कुल मिलाकर २५ मन्दिर हैं। इनके चारों ओर पक्का अहाता बना हुआ है। यहाँका प्राकृतिक दृश्य आकर्षक है। सदातोया स्वर्णभद्रा नदी इस क्षेत्रके चरणोंको धोती है। मन्दिरोंके पृष्ठभागमें खेतोकी हरियाली सुषमा बिखेरती है। कोलाहलसे दूर, एकान्त शान्तिपूर्ण वातावरण में व्यक्तिके मनमें भगवान्की भक्ति मुखर हो उठती है। ऐसा ही है यहाँका वातावरण, किन्तु फिर भी निर्जनता नहीं है।
SR No.090098
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1976
Total Pages440
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size19 MB
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