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मध्यप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ (५) द्वारके सिरदलपर अष्ट मातृकाओंकी मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। इन अष्ट मातृकाओंके नाम इस प्रकार हैं-इन्द्राणी, वैष्णवी, कौमारी, वाराही, ब्रह्माणी, महालक्ष्मी, चामुण्डी और भवानी।
(६) चक्रेश्वरी देवी ललितासनमें बैठी है। दायीं ओर भी चक्रेश्वरी देवी त्रिभंग मुद्रामें खड़ी है।
(७) सिरदलपर मध्यमें सरस्वती विराजमान है। बायीं ओर अष्ट मातृकाएँ बनी हुई हैं तथा दायीं ओर नवदेवता बने हुए हैं।
मन्दिर नं.६–मन्दिर नं. १ के सामने एक छोटा मन्दिर बना हुआ है। उसके ऊपर शिखर नहीं है, जबकि अन्य सभी मन्दिर शिखरबद्ध हैं। मानस्तम्भ
अभी तक क्षेत्रपर मानस्तम्भ नहीं था। अतः मानस्तम्भकी आवश्यकताका अनुभव करके अब यहाँ उसके निर्माणकी तैयारियां चल रही हैं। मानस्तम्भका समूचा ढाँचा खण्डोंमें मकरानेसे आ चुका है। मानस्तम्भकी नींव खुद गयी है और चौकी तैयार हो रही है। आशा है, यह शीघ्र तैयार हो जायेगा। पुरातत्त्व
___यहां कुछ प्राचीन मूर्तियोंका संग्रह किया गया है। कुछ मूर्तियाँ गन्धकुटीकी सीढ़ियोंके पास खुले मैदानमें रखी हुई हैं। कुछ मूर्तियां मन्दिरोंकी बाह्य भित्तियों, स्तम्भों और शिखरोंमें जड़ दी गयी हैं । जो मूर्तियां मैदानमें रखी हुई हैं, वे धूल, वर्षा और धूपसे विरूप होती जा रही हैं और जो भित्तियों आदिमें जड़ी गयी हैं, उन्हें चूना-सफेदी पोतकर विरूप कर दिया गया है।
ये मूर्तियाँ प्रायः खण्डित हैं। इनमें से कुछ मूर्तियां अखण्डित भी हैं। किन्तु इन सभी प्रकारकी मूर्तियोंका पुरातात्त्विक और कलात्मक महत्त्व है। ये मूर्तियां मेडखेड़ा, अमरगढ़, ईश्वरपुर, बिजौरा, बीना आदि निकटवर्ती स्थानोंसे प्राप्त हुई हैं। इनमें से कुछ मूर्तियाँ भूगर्भसे प्राप्त हुईं, कुछ नदीसे तथा कुछ मूर्तियाँ ईश्वरपुरके जैन मन्दिरकी हैं। पहले वहां जैन मन्दिर था। गाँवमें जैनोंकी आबादी थी। भगवान्की पूजा यथावस्थित रीतिसे होती रहती थी। किन्तु आजीविका आदिके कारणोंसे ईश्वरपुरके जैन अन्य नगरोंमें चले गये। धीरे-धीरे मन्दिर नष्ट हो गया। तब वहांकी मूर्तियां यहां लाकर रख दी गयीं। इन तमाम मूर्तियोंमें तीर्थंकर-प्रतिमा, देवता-मूर्ति और स्तम्भ आदि हैं। जिन्होंने इन मूर्तियोंका यहां संग्रह किया है, उन्होंने वस्तुतः बड़ा स्तुत्य कार्य किया है।
तीर्थंकर-मूर्तियोंमें ८ मूर्तियाँ खड्गासन हैं और ४ पद्मासन हैं। कुछ तीर्थंकर मूर्तियोंके कुछ खण्डित भाग रखे हुए हैं। ये मूर्तियाँ १ फुट ६ इंच से लेकर ३ फुट ७ इंच तकको मापकी हैं। इनमें से किसीका मुख खण्डित है, किसीका कोई अन्य भाग। इनमें महावीर और ऋषभदेवकी ही प्रतिमाएं हैं । कुछ प्रतिमाओंके चिह्न अस्पष्ट हैं या उनकी चरण-चौकी ही नहीं है।
पंचांग नमस्कार करती हुई एक स्त्रीको पाषाण-मूर्ति भी यहां रखी हुई है। स्त्री अलंकारोंसे सुसज्जित है। उसके एक हाथमें कटार है। उसकी पीठपर स्त्रीका पंजा बना हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह मूर्ति गोंडवानानरेश बेनुकी रानी कमलावतीकी है। उसके सम्बन्धमें यह अनुश्रुति प्रसिद्ध है कि वह शीलवती थी। उसे पद्मावती या अन्य किसी देवीका इष्ट था। देवीके प्रसादसे उसके पास एक पंखा था, जिसे तोड़ने मात्रसे शत्रु-सेना नष्ट हो जाती थी। प्रस्तुत मूर्ति