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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ इस गर्भगृहके द्वारपर दो खड्गासन और एक पद्मासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। द्वारकी चौखटपर मिथुन-मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इससे आगे बढ़नेपर टिन शेडवाले जिनालयके दूसरी ओर दालान है। इसके एक सिरेपर ३ फुट १० इंच ऊँची पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। इसके परिकरमें भामण्डल, छत्र, दुन्दुभिवादक, गज, गन्धर्व, चमरवाहक, यक्ष-यक्षी और दो पद्मासन मूर्तियाँ हैं। दालानके स्तम्भोंपर भी देव-देवियोंकी मूर्तियाँ बनी हुई हैं।
___ मन्दिर नं. ४-टिन शेडके पास ही जीना है। उससे जाकर ऊपर एक कोठरीमें एक वेदी है। वेदीपर भगवान् नेमिनाथकी कृष्ण पाषाणकी एक पद्मासन प्रतिमा विराजमान है । इसकी अवगाहना १ फुट ४ इंच है।
मन्दिर नं. २, ३ और ४ एक ही अहाते में हैं, बल्कि कहना चाहिए कि ये तीनों मन्दिर एक ही मन्दिरके पृथक्-पृथक् भाग हैं। ___मन्दिर नं. ५-इस मन्दिरसे निकलनेपर एक कुआं मिलता है। उसके निकट ही गन्धकुटी मन्दिर है। इसमें पहुंचनेके लिए ५ मार्ग हैं। प्रत्येक दिशामें ४० सीढ़ियां बनी हुई हैं। पाँचवाँ मार्ग मेरु मन्दिरोंके समान चक्राकार प्रदक्षिणा-पथ है। गर्भगृह छोटा है और गोलाकार है। मध्य वेदीपर एक पाषाण-स्तम्भमें तीन दिशाओंमें अर्हन्त प्रतिमाएं बनी हुई हैं। चौथो दिशामें उपाध्यायकी मूर्ति उत्कीर्ण है। एक हाथमें वे शास्त्र लिये हुए हैं तथा दूसरा हाथ उपदेश-मुद्रामें उठा हुआ है। उनके पीठासनमें कमण्डलु और पीछी बनी हुई हैं। इस मूर्ति-स्तम्भकी बगलमें दो श्वेतवर्ण तीर्थंकर मूर्तियाँ संवत् १५४८ की प्रतिष्ठित हैं।
दायीं ओरकी वेदीमें एक पाषाण-फलकमें भगवान् चन्द्रप्रभकी कायोत्सर्गासनमें ३ फुट ६ इंच अवगाहनावाली मूर्ति अंकित है। भगवान्के ऊपर छत्रत्रय है। उनके दोनों ओर देव आकाशसे पुष्पवर्षा करनेके लिए पुष्प लिये हुए हैं। भगवान्के दोनों ओर चमरेन्द्र सेवामें खड़े
___ बायीं ओरकी वेदीमें ऋषभदेवकी खड्गासन मूर्ति एक शिलाफलकमें उत्कीर्ण है। अवगाहना ३ फुट ६ इंच है। भगवान्के परिकरमें भामण्डल, तीन छत्र, गज, गन्धर्व और चमरवाहक हैं।
इस मन्दिरके परिक्रमा-पथमें दीवारों और द्वारोंके सिरदलोंपर कुछ मूर्तियां उत्कीर्ण हैं। इन मूर्तियोंपर सफेदी पोती हुई है । इससे मूतियोंका सौन्दर्य तो नष्ट हो ही गया है, उनके विवरण भी धूमिल पड़ गये हैं। इन मूर्तियोंका परिचय इस प्रकार है
(१) गोमेद यक्ष और अम्बिका यक्षी सुखासनासीन हैं। उनके शीर्ष भागपर नेमिनाथ तीर्थंकर पद्मासनमें विराजमान हैं।
( २ ) यह भी गोमेद, अम्बिका और नेमिनाथकी पूर्ववत् मूर्तियाँ हैं ।
( ३ ) तीर्थंकर माता लेटी हुई हैं । दिक्कुमारिकाएँ माताकी चरण-सेवा कर रही हैं । ऊपर पद्मासनमें तीर्थंकर-मूर्ति बनी हुई है।
(४) तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथकी माता वामादेवी शय्यापर लेटी हुई हैं। उनके सिरके ऊपर सपं-फणमण्डप है। देवी चरण-सेवा कर रही है। मूर्तिके शीर्ष भागपर पद्मावती देवी बैठी है। उसके ऊपर उसका चिह्न सर्पफण भी बना हुआ है । इससे ऊपर देवियाँ नृत्य-गान करके अपना मोद प्रकट कर रही हैं। सम्भवतः माता वामादेवीकी यह मूर्ति पाश्र्वनाथके गर्भावस्थाकी है। माता वामादेवीकी यह मूर्ति अद्भुत है । ऐसी अन्य कोई मूर्ति अभी तक देखनेमें नहीं आयी।